सुप्रीम कोर्ट ने 48 दिन से दिल्ली की किसान घेरेबंदी की वजह बने कृषि क़ानूनों पर अमल रोक दिया है। इसके साथ ही सर्वोच्च अदालत ने एक कमेटी का गठन कर दिया है। अदालत ने कह ही इसका संकेत देते हुए केंद्र सरकार को कड़ी फटकार लगायी थी।
हालाँकि किसान संगठनों ने कमेटी बनाने के प्रस्ताव पर सहमति नहीं जतायी थी लेकिन अदालत ने कहा कि उसे कमेटी बनाने से कोई नहीं रोक सकता। अदालत के मुताबिक जमीनी हालत जानने के लिए कमेटी गठित की जा रही है। कमेटी में कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी, भूपिंदर सिंह मान, प्रमोद जोशी, और अनिल धनावत को रखा गया है। अगले आदेश तक कृषि कानूनों पर रोक रहेगी। कमेटी की सिफारिशों के आधार पर आगे फ़ैसला होगा।
कृषि कानूनों की वैधता को एक किसान संगठन और वकील एमएल शर्मा ने चुनौती दी है। याचिकाओं में कहा गया है कि केंद्र सरकार को कृषि से संबंधित विषयों पर कानून बनाने का अधिकार नहीं है। इसी के साथ दिल्ली बार्डर पर आंदोलन से हो रही दिक्कतों का भी सवाल था। कोर्ट ने कल कहा था कि किसान आंदोलन जारी रख सकते हैं लेकिन जगह के बारे में विचार करना पड़ेगा। अदालत ने कहा कि अगर कानून स्थगित हो जाये तो अच्छे महौल में बातचीत हो सकती है। वह चाहती है कि बच्चे, बुज़ुर्ग और महिलाएं घर लौटें।
कोर्ट ने फटकार लगाते हुए केन्द्र से कहा था कि हमें नहीं पता कि सरकार समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का। कुछ लोग आत्महत्या तक कर चुके हैं पर सरकार कोई समाधान नहीं निकाल पायी। सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से सवाल किया कि कृषि कानूनों पर आप रोक लगाएंगे या हम लगाएँ। कोर्ट ने कहा कि हम अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञ नहीं हैं, आप बताएं कि सरकार कृषि कानून पर रोक लगाएगी या हम लगाएँ। केंद्र सरकार ने नए कृषि कानूनों पर रोक लगाने का विरोध किया। अटॉर्नी जनरल केके. वेणुगोपाल ने कोर्ट से कहा कि किसी कानून पर तब तक रोक नहीं लगाई जा सकती, जब तक वह मौलिक अधिकारों या संवैधानिक योजनाओं का उल्लंघन न करें।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर कुछ गलत हुआ तो हममें से हर एक जिम्मेदार होगा। कृषि कानूनों की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई करते सीजेआई ने कहा कि हम किसी का खून अपने हाथ पर नहीं लेना चाहते हैं। उच्चतम न्यायालय ने केन्द्र से पूछा, ” क्या चल रहा है? राज्य आपके कानूनों के खिलाफ बगावत कर रहे हैं। हमारे समक्ष एक भी ऐसी याचिका दायर नहीं की गई, जिसमें कहा गया हो कि ये तीन कृषि कानून किसानों के लिए फायदेमंद हैं।
सुप्रीम कोर्ट के रुख पर आभार जता रहे किसान संगठन कमेटी को लेकर सशंकित हैं। सुप्रीम कोर्ट ने 26 जनवरी को प्रस्तावित ट्रैक्टर रैली को लेकर नोटिस जारी कर दी है। इसके अलावा कमेटी में जो नाम आ रहे हैं, उसे लेकर भी उत्साह नहीं देखा जा रहा है क्योंकि इनमें ज़्यादातर वही हैं जिन्होंने कृषि कानूनों को रद्द करने के ख़िलाफ़ सार्वजनिक बयान दिये हैं।
उधर किसान संगठनों ने फ़ैसले के बाद कहा कि हमने मध्यस्थता की माँग नहीं की थी इसलिए आंदोलन जारी रहेगा। संयुक्त किसान मोर्चा ने साफ़ कहा है कि किसान किसी कमेटी की मध्यस्थता को स्वीकार नहीं करेंगे। किसानों की लड़ाई कृषि कानूनों को रद्द कराने की है, ऐसे में आंदोलन जारी रहेगा।