‘आरक्षण बचाओ मोर्चा’ भाजपा-जेडीयू का ‘नया पैंतरा’, हमारा इससे कोई सरोकार नहीं-माले

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आरक्षण पर सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद इस मसले पर एक बार फिर राजनीति तेज हो गई है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा था कि आरक्षण मौलिक अधिकार नहीं है। तमिलनाडु के मेडिकल कॉलेजों में ओबीसी उम्मीदवारों के लिए कोटा को लेकर दाखिल कई याचिकाओं पर सुनवाई करने हुए कोर्ट ने यह टिप्पणी की थी। डीएमके, सीपीआई, एआईएडीएमके समेत तमिलनाडु की कई पार्टियों ने एनईईटी के तहत मेडिकल कॉलेजों में 50 फीसदी ओबीसी आरक्षण के लिए याचिका दायर की थी।

सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी के बाद केंद्रीय मंत्री रामविलास पासवान ने आरक्षण को 9वीं अनुसूची में डालने की मांग की है। रामविलास पासवाने ने ट्वीट कर कहा कि “लोक जनशक्ति पार्टी सभी राजनीतिक दलों से मांग करती है कि पहले भी आप सभी इस सामाजिक मुद्दे पर साथ देते रहे हैं, फिर से इकठ्ठा हों। बार-बार आरक्षण पर उठने वाले विवाद को खत्म करने के लिए आरक्षण संबंधी सभी कानूनों को संविधान की 9वीं अनुसूची में शामिल करने के लिए मिलकर प्रयास करें।’’

रामविलास पासवान के इस बयान पर भाकपा माले ने तीखी प्रतिक्रिया दी है। माले ने कहा कि “विपक्षी पार्टियों से अपील करने से पहले पासवान जी आरक्षण को 9वीं अनुसूची में डालने की मांग अपनी सरकार और भाजपा से क्यों नहीं करते?” माले ने कहा कि आरक्षण को खत्म करना भाजपा-आरएसएस का मकसद है। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव के मद्देनजर ये ताकते आरक्षण बचाने का नारा देकर दलितों-पिछड़ों की आंखों में धूल झोकना चाहती हैं। माले ने कहा कि बिहार में आरक्षण बचाओ मोर्चा भाजपा-जदयू का नया पैंतरा है, माले का इस मोर्चे से कोई सरोकार नहीं है। हम आरक्षण बचाने वाली ताकतों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ते रहेंगे।

भाकपा माले बिहार राज्य सचिव कुणाल ने कहा बिहार में भाजपा-जदयू ने इस बार एक नई चाल ही चली है। दलितों-पिछड़ों का आरक्षण खत्म करने वाले ये लोग आज आरक्षण बचाने के नाम पर सभी राजनीतिक दलों के अनुसूचित जाति व जनजाति के विधायकों को एक मंच पर आने की बात कह रहे हैं। यह मोर्चा अपने आप में दलितों-पिछड़ों की आंखों में धोखा देने के सिवा कुछ नहीं है। ये ताकतें इस नाम पर दलितों-पिछड़ों का वोट ठगकर फिर से विधानसभा चुनाव जीत लेने का सपना देख रही हैं।

भाकपा-माले का भाजपा-जदयू के नेतृत्व वाले इस प्रकार के मोर्चे से कोई लेना देना नहीं है। आरक्षण को भाजपा-जदयू का विश्वासघाती ठगबंधन नहीं, बल्कि इन ताकतों के खिलाफ लड़कर ही उसे बचाया जा सकता है।

उन्होंने कहा कि भाकपा-माले विधायक सत्यदेव राम का नाम बिना उनकी सहमति के इस तथाकथित मोर्चे में डाल दिया गया था। भाकपा-माले और विधायक सत्यदेव राम का इस मोर्चे से कोई लेना देना नहीं है। हमारी पार्टी भाजपा के आरक्षण विरोधी वास्तविक चरित्र का पर्दाफाश करते रहेगी। भाजपा-जदयू द्वारा आरक्षण पर लगातार हो रहे हमले के खिलाफ हम आरक्षण बचाने वाली ताकतों के साथ मिलकर लड़ाई लड़ते रहेंगे।

माले राज्य सचिव कुणाल ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा तमिलनाडु में नीट पोस्ट ग्रेजुएशन मामले में रिजर्वेशन को लेकर की गई टिप्पणी संविधान की मूल भावना के खिलाफ है। माले राज्य सचिव ने इसे दुर्भाग्यपूर्ण टिप्पणी करार देते हुए कहा कि आरक्षण की परिकल्पना सामाजिक व शैक्षणिक रूप से पिछड़े समुदायों के अधिकारों की रक्षा के लिए की गई है। यह कोई भीख में दी गई चीज नहीं है, जिसके बारे में ऐसी कोई टिप्पणी की जा सकती है।

उन्होंने आगे कहा कि हर कोई जानता है कि भाजपा व आरएसएस का सबसे बड़ा हमला दलितों-पिछड़ों के आरक्षण पर ही है और ये ताकतें लगातार उसे खत्म करने की कोशिश में लगी हुई रहती हैं। इनका बस चले तो ये संविधान को बदलकर मनुस्मृति का शासन  देश पर थोप दें। लेकिन बिहार विधानसभा चुनाव को देखते हुए भाजपाइयों ने आरक्षण पर नया भ्रम फैलाना आरंभ कर दिया है और ऐसा लग रहा है कि वही आरक्षण बचाने के लिए प्रतिबद्ध है। दरअसल, उनको अच्छे से याद है कि विगत बिहार विधानसभा चुनाव में आरक्षण पर मोहन भागवत के विवादित बयान ने भाजपा की हार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इसलिए, इस बार ये ताकतें बिहार में नया खेल खेल रही हैं। भाजपा के साथ गलबहियां किए हुए रामविलास जी कहते हैं कि आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाला जाना चाहिए। सवाल यह है कि रामविलास जी यह मांग किससे कर रहे हैं? उनको यह मांग तो पहले भाजपा से करनी चाहिए। अपनी सरकार से करनी चाहिए। वे ऐसा क्यों नहीं कर रहे हैं? यदि रामविलास जी इस मसले पर सभी पार्टियों की एकता चाहते हैं, तो सबसे पहले उन्हें दलितों-पिछड़ों का आरक्षण खत्म कर देने के लिए नित्य नई चालें चलने वाली संविधान व लोकतंत्र विरोधी भाजपा से नाता तोड़ना ही होगा।


प्रेस विज्ञप्ति पर आधारित

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