सुप्रीम कोर्ट ने कथित लव जिहाद रोकने के लिए जारी अध्यादेश को लेकर यूपी और उत्तराखंड की बीजेपी सरकार को नोटिस जारी किया है। यह नोटिस दोनों राज्यों में जारी इन अध्यादेशों की संवैधानिक वैधता को भी चुनौती देने वाली याचिका पर दिया गया है।
जानकारी के मुताबिक जस्टिस एसए बोबडे, जस्टिस वी रामासुब्रमणियन और एएस बोपन्ना के पीठ ने विशाल ठाकरे एवं अन्य और तीस्ता सीतलवाड़ के एनजीओ ‘सिटिज़न फॉर जस्टिस एंड पीस’ की ओर से दायर याचिकाओं पर बुधवार को सुनवाई की। पीठ ने लेकिन उस प्रावधान पर स्टे देने से मना कर दिया जिसमें शादी के लिए धर्म–परिवर्तन से पहले इजाज़त लेने की बात कही गयी है।
नवंबर में उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने ‘विधि विरुद्ध धर्म संपरिवर्तन प्रतिषेध अध्यादेश 2020’ जारी किया था जिसके मुताबिक़ कोई व्यक्ति महज़ धर्म–परिवर्तन के लिए शादी करता है या ज़बरदस्ती धर्म–परिवर्तन करवाता है तो उसे दस साल की सज़ा हो सकती है। अध्यादेश के मुताबिक अगर कोई व्यक्ति अपनी मर्ज़ी से धर्म परिर्वतन करना चाहता है तो उसे डीएम या एडीएम को 60 दिन पहले लिख कर देना अनिवार्य होगा।
वहीं, उत्तराखंड के फ्रीडम ऑफ रिलीजन एक्ट 2018 में भी प्रावधान है कि अगर धर्म परिवर्तन के लिए शादी की जाए या ज़बरदस्ती धर्म–परिवर्तन करवाया जाए तो उसे अवैध माना जाएगा। लाइव लॉ वेबसाइट के मुताबिक़ बुधवार को सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई में पहले तो पीठ ये मामला सुनना ही नहीं चाहती थी और याचिकाकर्ताओं को अपने–अपने हाई कोर्ट जाने को कहा था। लेकिन याचिकाओं से जुड़े वकीलों ने ज़ोर दिया कि वे दो राज्यों के क़ानून को चुनौती दे रहे हैं जिनकी वजह से समाज में व्यापक समस्या खड़ी हो रही है। वकीलों ने कहा कि मध्य प्रदेश और हरियाणा भी इसी तरह के क़ानून ला रहे हैं।वकीलों ने कहा कि जब एक से ज़्यादा हाईकोर्ट में मामला चल रहा हो तो बेहतर है कि सुप्रीम कोर्ट उस मामले का संज्ञान ले।
वकीलों के तर्क को स्वीकार कते हुए पीठ ने दोनों राज्यों को नोटिस जारी किया जिस पर उन्हें चार हफ़्ते में जवाब देना है।