लॉकडाउन के बाद मज़दूरों का रोज़गार और मेहनताना आधा हो गया- ज्यां द्रेज़


2015-16 के केंद्र सरकार के बजट में पहले ही सामाजिक सुरक्षा के लिए राशि घटायी गयी है। इस बार और अधिक कटौती की गयी है। सात साल में देखा जाये तो स्थिति भयावह होती जा रही है।


विशद कुमार विशद कुमार
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जाने माने अर्थशास्त्री और सामाजिक कार्यकर्ता प्रोफेसर ज्यां द्रेज़ ने कहा “अज़ीम प्रेमजी संस्थान के शोध से सामने आया है कि लॉकडाउन के बाद मजदूरों के रोजगार और मेहनताना आधे हो चुके हैं, जो कि अति गंभीर मसला है। कोविड की वजह से भूख और कुपोषण में वृद्धि हुयी है। केंद्र सरकार का बजट जन विरोधी है। 2015-16 के केंद्र सरकार के बजट में पहले ही सामाजिक सुरक्षा के लिए राशि घटायी गयी है। इस बार और अधिक कटौती की गयी है। सात साल में देखा जाये तो स्थिति भयावह होती जा रही है। मीड डे मील में अंडों की संख्या घटाई गयी है। सरकार को सुझाव है कि आने वाले 3-4 सालों में सम्पूर्ण सामाजिक सुरक्षा लागू करने की दिशा मे आगे बढ़ना चाहिए।”

प्रोफेसर ज्यां द्रेज़ ने ये बातें भूख व कुपोषण मुक्त झारखंड एवं आदिवासी व दलित तथा संपूर्ण सामाजिक सुरक्षा हेतु झारखंड राज्य का बजट 2021-22 कैसा हो विषय पर आयोजित सम्मेलन में कही। नागरिक संगठनों का ये दो दिवसीय सम्मेलन, भोजन का अधिकार अभियान और झारखंड की सिविल सोसाइटी के द्वारा आयोजित किया गया है।

सम्मेलन के पहले दिन बोलते हुए भोजन के अधिकार अभियान के वरिष्ठ सामाजिक कार्यकर्ता व सुुप्रीम कोर्ट के पूर्व राज्य सलाहकार बलराम जी ने कहा कि झारखंड सरकार 2021-22 के बजट पेश करने वाली है। दलित और आदिवासी समुदाय के लिए बजट में मौलिक व समानता के अधिकार का ख्याल रखा जाना चाहिए। उन्होंने कहा कि सामाजिक सुरक्षा योजनाओं पर विशेष ध्यान देने की आवश्यकता है। बागवानी और कृषि कार्य की संस्कृति जो भारतीय और खास करके झारखंडी समुदाय के बीच आदि काल से रही है उसे फिर से पुनर्जीवित करने की आवश्यकता है। सरकार स्पेशल इकोनॉमिक ज़ोन बनाती है। लेकिन स्पेशल कृषि ज़ोन बनाने की अवश्यकता है। यह एक क्रांति लेकर आएगी। सरकार के पास काफी फ़ंड है, जैसे टीएसपीए एससीएसपी और डीएमएफ़टी इत्यादि, जिसका विचलन होता रहा है। सरकार को चाहिए कि ग्राम सभा से परामर्श के साथ इस राशि का इस्तेमाल हो जिससे जमीनी स्तर पर बदलाव दिखे।

बिन्नी आजाद ने कहा कि पेंशन इत्यादि में केंद्र सरकार का अंशदान 200 रुपए काफी पुराने समय से चला आ रहा है। जिसे बढ़ाने की आवश्यकता है। सरकार के पास हर स्तर पर काफी इनफ्रास्ट्रक्चर है, जिसे इस्तेमाल के लायक बनाना जरूरी है। कई जगह भवन बने पड़े हैं लेकिन उनमें पानी बिजली इत्यादि मूलभूत सुविधाएं नहीं हैं, जिससे समुदाय इन्हें इस्तेमाल नहीं कर पाता है, इन्हे्ं सुदृढ़ बनाने की आवश्यकता है।

सम्मेलन को संबोधित करते हुए प्रेम शंकर ने कहा कि कोविड के दौरान आए हुये संकट से जूझते हुये नागरिक समाज के बीच काफी मंथन हुआ है, जिससे बहुत सारे सुझाव निकल के आए हैं। पोषण को ध्यान में रखते हुये मोटे अनाज जैसे मड़ुवा का उत्पादन तथा आँगनबाड़ी और मध्याह्न भोजन में इनके इस्तेमाल पर ज़ोर देना चाहिए ताकि कुपोषण की समस्या दूर हो सके। कृषि योग्य भूमि का इस्तेमाल और हस्तांतरण गैर कृषि कार्य के लिए न हो इसके लिए ठोस उपाय किए जाने की आवश्यकता है। बिरसा हरित ग्राम योजना एक अच्छी योजना है और इसकी संभावनाएं बहुत अधिक है। उन्होंने कहा कि वनाधिकार मुद्दे पर दावों का निपटारा पारदर्शी तरीके से नहीं हो पा रहा है। सरकार को इस दिशा मे अधिक संवेदनशील होने की आवश्यकता है।

जेम्स हेरेंज ने झारखंड में नरेगा की दशा पर विस्तृत रिपोर्ट प्रस्तुत किया और कहा कि कम मजदूरी दर सबसे बड़ी समस्या है, इसलिए मनरेगा की तरफ लोगों का रुझान कम हो रहा है। उन्होंने कहा कि मनरेगा में कम मजदूरी एक बहुत बड़ी समस्या है, इसलिए इस बार के बजट में मजदूरी बढ़नी चाहिए और इसका बजट में प्रावधान होना चाहिए। उन्होंने कहा कि मनरेगा योजनाओं का चयन ग्राम सभा से होना चाहिए, ऐसा मनरेगा अधिनियम की धारा 16 में प्रावधान है। मगर प्रशासनिक अधिकारी ग्राम सभा को नजरअंदाज कर योजनाओं के चयन करने की कोशिश करते हैं। उन्होंने कहा कि किसी भी योजना के लागू करने के लिए ग्राम सभा से सुझाव व बजट आना चाहिए, ऐसा नहीं होने से सरकार काल्पनिक बजट बनाती है, जो समुदाय के लिए उपयोगी नहीं होता।

दलित आर्थिक अधिकार आंदोलन-एनसीडीएचआर के राज्य संयोजक मिथिलेश कुमार ने कहा कि छात्रों के लिए जो योजनाएं चलायी जाती है, जैसे पोस्ट मैट्रिक स्काॅलरशिप और प्री-मैट्रिक स्काॅलरशिप में बजट की राशि बढ़ायी जाए और सभी दलित आदिवासी छात्र-छात्राओं को छात्रवृत्ति से जोड़ने के लिए सरल और सुगम आवेदन की प्रक्रिया शुरू किया जाये, ताकि अधिक से अधिक दलित व आदिवासी छात्र-छात्राएं छात्रवृति योजनाओं का लाभ ले सकें। इसके साथ झारखंड में मुख्यमंत्री छात्रवृति योजनाओं से सभी दलित व आदिवासी छात्रों को स्काॅलरशीप दी जाये। उन्होंने कहा कि झारखंड टीएसीपी और एससीएसपी के लिए कानून बनाकर बजट के विचलण को रोका जाये।

बजट परिचर्चा में जाॅनसन, आशा, फादर सलोमन, जीवन जग्रनाथ, गुलाचंद, विश्वनाथ, कृष्णा , हलधर महतो, दीपक बाड़ा, अनिमा बा, उमेश ऋषी, मेरी निशा सहित कई लोगों बजट परिचर्चा में अपने-अपने विचार रखा। बजट पूर्व परिचर्चा में झारखंड के विभिन्न दो दर्जन से अधिक नागरिक संगठन के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। बजट पूर्व परिचर्चा का संचालन भोजन के अधिकार अभियान के राज्य संयोजक अशर्फी नंद प्रसाद ने किया ।


विशद कुमार, स्वतंत्र पत्रकार हैं।