पूर्व केंद्रीय मंत्री कांग्रेस के वरिष्ठ नेता शशि थरूर को पत्नी सुनंदा पुष्कर की मौत के मामले में 18 अगस्त 2021 को दिल्ली की एक अदालत ने सभी आरोपों से राहत दे दी है। शशि थरूर अपने ऊपर लगे सभी आरोपों से बरी हो गए है। विशेष न्यायाधीश गीतांजलि गोयल ने ऑनलाइन माध्यम से सुनवाई करते हुए यह आदेश पारित किया। जिसके बाद शशि ने कहा, “ये साढ़े सात साल का वक्त मेरे लिए बहुत ही यातना भरा था। मैं इस फैसले के लिए शुक्रगुजार हूं।”
शशि थरूर पर उनकी पत्नी की मौत का आरोप लगा था। करीब 7.5 साल बाद वह अपराध मुक्त हुए है। यह उस समय काफी हाईप्रोफाइल केस बना था। पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने केस की जांच के दौरान ही शशि थरुर को अपराधी घोषित कर दिया था। लेकिन अब कोर्ट ने उन्हें बाइज्जत बरी कर दिया है। मामला अदालत तक पहुंचा था।
पूरा मामला..
दरअसल, सुनंदा पुष्कर दिल्ली के एक फाइव स्टार होटेल में 17 जनवरी, 2014 को संदिग्ध हालत में मृत पाई गई थीं। वहीं मौत से कुछ दिनों पहले उन्होंने पति शशि थरूर पर एक पाकिस्तानी पत्रकार के साथ संबंध होने का आरोप लगाया था। शशि थरूर पर पत्नी को आत्महत्या के लिए उकसाने और क्रूरता से पेश आने का आरोप भी था। जिसके बाद दिल्ली पुलिस ने शशि थरूर के खिलाफ धारा 307, 498 A के तहत केस दर्ज किया था। इन्हीं कारणों के चलते शशि थरूर शक के घेरे में थे और सुनंदा पुष्कर की मौत का आरोप उन पर लगा था।
लेकिन इस आरोप की जांच के बीच रिपब्लिक भारत के पत्रकार अर्नब गोस्वामी ने एक प्रोग्राम के दौरान दावा किया था कि उन्होंने सुनंदा पुष्कर केस की पुलिस से बेहतर जांच की है और इस बात में शक नहीं है कि सुनंदा पुष्कर की हत्या की गई थी। अर्नब ने जांच के ट्रायल के दौरान व अदालत के फैसले से पहले ही शशि थरूर को अपराधी घोषित कर दिया था। जबकि कोर्ट ने मई 2017 में ही कह दिया था की चैनल थरूर को अपराधी नहीं कह सकता है। सिर्फ केस से जुड़े तथ्य सामने रख सकता है।
इसके बावजूद अर्नब ने जब केस की समानांतर जांच चलाई तो पिछले साल सितंबर में कोर्ट ने उनकी पत्रकारिता पर सवाल भी खड़े कर दिए। कोर्ट ने खुले अल्फाजों में कहा की लोगों को पहले क्रिमिनल ट्रायल का कोर्स करना चाहिए और फिर पत्रकारिता में जाना चाहिए। एक बार पुलिस जांच शुरू हो गई तो मीडिया समानांतर जांच नहीं कर सकता है। जांच की ‘शुद्धता’ बनी रहनी चाहिए।
कोर्ट ने अर्नब गोस्वामी को भाषा की मर्यादा बरकरार रखने को कहा था…
आपको बता दें कि 29 सितंबर 2014 को AIIMS के मेडिकल बोर्ड ने सुनंदा के शव की पोस्टमार्टम रिपोर्ट दिल्ली पुलिस को सौंपी थी। इस रिपोर्ट में यह साफ़ तौर पर कहा गया था कि सुनंदा पुष्कर की मौत जहर से हुई है। लेकिन इसके बाद भी चैनल लगातार कांग्रेस नेता को दोषी बताता रहा। जबकि 2017 में भी कोर्ट कह चुका था की प्रेस किसी को दोषी करार नहीं दे सकती। ऐसे मामलों में प्रेस को सावधानी बरतनी चाहिए जिनमें जांच या ट्रायल चल रहा हो।
जब सही मुद्दों, सरकार की नाकामियों पर सवाल उठाने की बात आती है, तो गोदी मीडिया के ऐसे लोग चुप्पी धारण कर लेते हैं। पत्रकार सवाल उठा सकते हैं लेकिन आरोपी को दोषी साबित करने के लिए अदालत है। आपने पहले ही जिसे दोषी साबित किया कोर्ट ने उसे आज निर्दोष साबित कर दिया। पहले ही इस मामले पर कोर्ट ने अर्नब को संयम बरतें और मामले को कवर करते हुए भाषा पर ध्यान देने को कहा था। इस मामले पर विपक्ष ने भी शशि को घेर था, वहीं अर्नब ने भी उन्हें अपराधी बता दिया था।
SIT जांच सभी आरोपों से मुक्त करती है..
शशि पर भारतीय दंड संहिता की धारा 306 (खुदकुशी के लिए उकसाने) समेत विभन्न इल्ज़ामों में आरोप तय करने का पुलिस ने अदालत से आग्रह किया था। लेकिन थरूर की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील विकास पहवा ने अदालत से कहा कि SIT द्वारा की गई जांच राजनीतिक नेता को उनके खिलाफ लगाए गए सभी आरोपों से मुक्त करती है। फिलहाल अब पूर्व केंद्रीय नेता शशि थरूर को पूरी तरह राहत है।