सुप्रीम कोर्ट सख़्त: जजों की सुरक्षा संबंधी सूचना न देने के लिए राज्यों पर एक लाख का जुर्माना

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सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को सुनवाई के दौरान राज्यों पर एक लाख रुपये का जुर्माना लगाया और सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में जमा करने के निर्देश दिए। यह निर्देश सुप्रीम कोर्ट ने सभी न्यायिक अधिकारियों को एक्स श्रेणी की सुरक्षा मुहैया कराने की मांग वाली याचिका पर सुनवाई करते हुए दिए है। राज्य जजों की सुरक्षा के उपायों के विवरण के बारे में शीर्ष अदालत को सूचित करने में विफल रहे। इसी के मद्देनजर कोर्ट ने निर्देश दिया।

दरअसल, वकील विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से अपील की थी कि केंद्र और राज्य सरकारों को सभी जजों, न्यायिक अधिकारियों और वकीलों की सुरक्षा के लिए जरूरी दिशा-निर्देशों को लागू करने का निर्देश दिया जाए। विशाल तिवारी ने अपनी याचिका में कहा था कि देश भर में जजों और वकीलों को धमकियां मिल रही हैं। न्यायिक अधिकारियों पर हमले बढ़े हैं। ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए अदालत को तुरंत हस्तक्षेप करने की जरूरत है।

10 दिनों के अंदर राज्यों को दाखिल करने हैैं जवाब: SC

धनबाद में एडीजे उत्तम आनंद की हत्या के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेते हुए सुनवाई शुरू की थी। सीजेआई एनवी रमना, जस्टिस सूर्यकांत और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने राज्यों को 10 दिनों के भीतर अपना जवाब दाखिल करने के लिए कहा, नही तो वह जुर्माना जमा करें। पीठ ने चेतावनी दी कि अगर राज्यो के द्वारा सुप्रीम कोर्ट के आदेश का अनुपालन नही किया गया तो सुप्रीम कोर्ट राज्यों के संबंधित चीफ सेक्रटरी को पेश होने के लिए कहेगा।

SC संबंधित राज्यों के चीफ सेक्रटरी को बुलाएगा..

पीठ ने कहा कि “केरल राज्य की ओर से पेश हुए वकील ने जवाबी हलफनामा दायर करने के लिए आज से 10 दिनों का समय मांगा, समय दिया गया,  इस शर्त के अधीन कि उक्त राज्य सुप्रीम कोर्ट में जमा करने के लिए एक लाख रुपये के जुर्माने का भुगतान करेगा। यह जुर्माना बार एसोसिएशन एडवोकेट्स वेलफेयर फंड में जमा किया जाएगा। न्यायालय ने कहा, ‘‘अब तक हलफनामा दाखिल नहीं करने वाले शेष राज्यों को भी आज से 10 दिनों के अंदर इसे दाखिल करना होगा। जिसके विफल होने पर हम संबंधित राज्यों के मुख्य सचिवों की उपस्थिति की मांग करने के लिए मजबूर होंगे।”

पुलिस व्यवस्था राज्यों का विषय…

चीफ जस्टिस एनवी रमणा ने जजों की सुरक्षा को लेकर केंद्र से सवाल किया, तो सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा- पुलिस व्यवस्था राज्यों का विषय है। 2007 में ही गृह मंत्रालय ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के जजों की सुरक्षा के लिए एक गाइडलाइन जारी की थी। गाइडलाइंस को मार्च 2020 में भी दोहराया गया था। इसमें DGP को कहा गया था कि जजों की सुरक्षा के लिए स्पेशल ब्रांच की पुलिस और इंटेलिजेंस यूनिट के जवान होने चाहिए। 11 सितंबर 2020 को केंद्र की ओर से इस मामले में हलफनामा दाखिल किया गया था। अब राज्यों को इस पर रिपोर्ट देनी थी।

सुप्रीम कोर्ट ने राज्यों के सुस्त रवैये पर नाराज़गी जाते हुए कहा कि सवाल यह है कि गाइडलाइन मौजूद है, लेकिन जजों और न्यायालयों की सुरक्षा के लिए इनको कितना लागू किया गया? केंद्र सरकार DGP को निर्देश दे कर सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है।

किस तरह की सुरक्षा प्रदान की गई है: SC

राज्यों का कहना है कि उनके पास फिलहाल सुरक्षा मुहैया करवाने के लिए फंड नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि आंध्र प्रदेश , मिज़ोरम, झारखंड, तेलंगाना, मणिपुर गोवा, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु, महाराष्ट्रा की राज्य सरकारों ने निर्देश दिए जाने के बाद भी अपना जवाब अब तक दाखिल नहीं किया है।  न्यायालय ने  न्यायाधीश उत्तम आनंद के मामले में झारखंड राज्य की लापरवाही को चिह्नित करते हुए सभी राज्यों को जवाब देने और न्यायिक अधिकारियों को किस तरह की सुरक्षा प्रदान की है। इस संबंध में एक स्टेटस रिपोर्ट दाखिल करने को कहा है।