सुप्रीम कोर्ट का फ़ैसला – शिंदे की सरकार रहेगी लेकिन राज्यपाल के फ़ैसले पर सवाल

मयंक सक्सेना मयंक सक्सेना
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11 मई देश में साल 2023 में शायद उस सुनवाई पर सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का दिन था, जिसे पिछले 1 साल का सबसे बड़ा संवैधानिक मामला माना जा सकता है। भारत के मुख्य न्यायाधीश चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ समेत जस्टिस एमआर शाह, जस्टिस कृष्ण मुरारी, जस्टिस हेमा कोहली और जस्टिस पीएस नरसिम्हा की संविधान पीठ ने महाराष्ट्र के जून 2022 के सरकार गिरने और नई सरकार के गठन को लेकर उठे संवैधानिक प्रश्नों पर अपना फ़ैसला सुनाया। फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने जहां एक ओर साफ कि वह उद्धव ठाकरे की अगुआई वाली सरकार को बहाल करने का आदेश नहीं दे सकता, वहीं राज्यपाल के फ़ैसले को भी कटघरे में खड़ा करते हुए ग़लत बताया।

क्या कहा संविधान पीठ ने?

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने शिवसेना के टूटने और नई सरकार के गठन के मामले में फ़ैसला सुनाते हुए कहा कि वह उद्धव सरकार को बहाल का आदेश नहीं दे सकती क्योंकि उन्होंने फ्लोर टेस्ट का सामना करने से पहले ही इस्तीफा दे दिया था। लेकिन बेंच ने ये भी माना कि फ्लोर टेस्ट का राज्यपाल का और व्हिप नियुक्त किए जाने का स्पीकर का फैसला गलत था। इस को लेकर सबसे बड़ी अदालत ने अहम न्यायिक, संवैधानिक और एथिकल सवाल खड़े किए हैं।

क्या थी याचिकाएं?

इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट ने 14 फरवरी, 2023 को सुनवाई शुरू की थी। लेकिन इसमें पहली याचिका एकनाथ शिंदे ने जून 2022 में दल-बदल को लेकर संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत बागी विधायकों के विरुद्ध उस समय के डिप्टी स्पीकर द्वारा जारी नोटिस को चुनौती देते हुए दायर की और फिर उद्धव ठाकरे की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर हुई, जिसमें राज्यपाल द्वारा विश्वास मत करवाने के फैसले, मुख्यमंत्री के रूप में एकनाथ शिंदे के शपथ ग्रहण, नए अध्यक्ष के चुनाव को चुनौती दी गई थी। अगस्त 2022 में तत्कालीन सीजेआई जस्टिस रमन्ना ने इस मामले के कुछ बिंदुओं को विचार के लिए संविधान पीठ के पास भेज दिया था;

  1. क्या स्पीकर को हटाए जाने का नोटिस उन्हें नबाम रेबिया में भारतीय संविधान की दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्यता की कार्यवाही जारी रखने से रोकता है?
  2. क्या अनुच्छेद 226 और 32 के तहत कोई याचिका हाईकोर्ट या सुप्रीम कोर्ट द्वारा अयोग्यता की कार्यवाही पर निर्णय लेने के लिए आमंत्रित करती है?
  3. क्या अदालत यह मान सकती है कि किसी सदस्य को उसके कार्यों के आधार पर स्पीकर के निर्णय की अनुपस्थिति में अयोग्य माना जा सकता है?
  4. सदस्यों के खिलाफ अयोग्यता याचिकाएं यदि लंबित हैं, तो उस दौरान सदन में कार्यवाही की क्या स्थिति होगी?
  5. अगर स्पीकर किसी सदस्य को दसवीं अनुसूची के तहत अयोग्य घोषित करता है, तो अयोग्यता याचिका के लंबित होने के दौरान हुई कार्यवाही की स्थिति क्या होगी?
  6. दसवीं अनुसूची में पैरा 3 को हटाए जाने का क्या संवैधानिक प्रभाव पड़ेगा?
  7. विधायी दल के व्हिप और सदन के नेता के निर्धारण के लिए स्पीकर की शक्ति का दायरा क्या होगा?
  8. दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के संबंध में परस्पर एक्शन्स क्या हैं?
  9. क्या पार्टी के अंदर के सवाल न्यायिक समीक्षा के अंतर्गत आ सकते हैं? इसका दायरा क्या होना चाहिए?
  10. किसी व्यक्ति को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित करने की राज्यपाल की शक्ति क्या है और क्या वह न्यायिक समीक्षा के अधीन है?
  11. किसी पार्टी के भीतर एकपक्षीय विभाजन को रोकने के संबंध में चुनाव आयोग की शक्तियों का दायरा क्या है?

इस पर सुप्रीम कोर्ट में 9 दिनों तक दोनों पक्षों को सुना गया, मार्च में इस पर फ़ैसला सुरक्षित रख लिया गया था। 11 मई को फ़ैसला सुनाते हुए सुप्रीम कोर्ट ने जो बातें कहीं वो हैं;

“शिंदे के सीएम बनने के पूर्व की स्थिति बहाल नहीं की जा सकती क्योंकि श्री उद्धव ठाकरे ने फ्लोर टेस्ट का सामना नहीं किया और इस्तीफा दे दिया। इसलिए राज्यपाल ने सबसे बड़ी पार्टी भाजपा के समर्थन से श्री शिंदे को शपथ दिलाई।”

लेकिन साथ ही अदालत ने राज्यपाल के फ़ैसले को भी ग़लत ठहराते हुए टिप्पणी की;

“विपक्षी दलों ने अविश्वास प्रस्ताव जारी नहीं किया था। राज्यपाल के पास सरकार के बहुमत (विश्वास) पर शक करने के लिए कोई ऑब्जेक्टिव आधार नहीं था। राज्यपाल ने जिस प्रस्ताव पर भरोसा किया उसमें ये संकेत नहीं था कि विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते थे। हो सकता है कि विधायक सरकार से बाहर निकलना चाहते थे, लेकिन उन्होंने केवल एक गुट का गठन किया था, न कि समर्थन वापसी का एलान किया था”

शपथ के बाद शिंदे, फड़नवीस और राज्यपाल कोशियारी

बेंच ने कहा कि न ही संविधान और न ही कानून, राज्यपाल को राजनैतिक क्षेत्र में प्रवेश कर के, इंटर-पार्टी या इंट्रा-पार्टी विवादों में भूमिका निभाने का अधिकार देता है। अदालत ने राज्यपाल के फ़ैसले पर टिप्पणी की;

“राज्यपाल ने जिस पत्राचार पर भरोसा किया उसमें ऐसा कुछ भी नहीं था जिससे यह संकेत मिले कि असंतुष्ट विधायक सरकार से समर्थन वापस लेना चाहते थे। राज्यपाल ने शिवसेना के विधायकों के एक गुट के प्रस्ताव के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि श्री ठाकरे ने विधायकों के बहुमत का समर्थन खो दिया है। विधायकों द्वारा ज़ाहिर सुरक्षा चिंता का सरकार के समर्थन पर कोई असर नहीं पड़ता। यह एक बाहरी विचार था जिस पर राज्यपाल ने भरोसा किया। राज्यपाल को पत्र पर भरोसा नहीं करना चाहिए था… पत्र यह नहीं कह रहा था कि कि उद्धव ठाकरे ने समर्थन खो दिया। श्री फडणवीस और 7 विधायक अविश्वास प्रस्ताव ला सकते थे। ऐसा करने से कोई चीज उन्हें रोक नहीं रही थी।”

इस मामले में शिंदे पक्ष की ओर से तर्क दिया गया था कि ये राजनैतिक मामला है और इसमें कोर्ट हस्तक्षेप कर के सरकार की स्थिति तय नहीं कर सकता है। यही नहीं शिंदे पक्ष ने ये भी कहा था कि जो परिस्थिति थी, उसमें राज्यपाल के पास शक्ति परीक्षण करवाने के सिवा कोई विकल्प नहीं था। शिंदे पक्ष ने चुनाव आयोग के उनको शिवसेना का चुनाव चिह्न और मान्यता दिए जाने को भी अपने पक्ष में तर्क की तरह रखा था। उन्होंने प्रश्न किया था कि अगर उद्धव ठाकरे के पास बहुमत था तो फिर उन्होंने इस्तीफ़ा क्यों दिया।

प्रेस कांफ्रेंस में एकनाथ शिंदे और देवेंद्र फड़नवीस

फ़ैसले के बाद

फ़ैसले के बाद ये अब तय हो चुका है कि शिंदे सरकार अपना कार्यकाल पूरा करेगी। हालांकि इससे जुड़े सवालों को व्यापक मंथन के लिए बड़ी बेंच के पास भेज दिया जाएगा। सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले के बाद, जहां उद्धव ठाकरे ने एकनाथ शिंदे से नैतिकता के आधार पर इस्तीफ़ा देने को कहा,

महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे और डिप्टी सीएम देवेंद्र फड़नवीस ने प्रेस कांफ्रेंस कर के इसे अपनी जीत बताया और उद्धव ठाकरे से कहा कि उनको नैतिकता की बात नहीं करनी चाहिए।

ज़ाहिर है कि अब महाराष्ट्र की राजनैतिक गर्मी और बढ़ेगी क्योंकि उद्धव ठाकरे अदालत के फ़ैसले को अपनी नैतिक शक्ति के तौर पर जनता के बीच लेकर जाएंगे और शिंदे समेत भाजपा इसे अदालत द्वारा उनके क्रियाकलाप की वैधता के तौर पर जताएंगे। उद्धव ठाकरे ने अपनी ओर से पहला बयान दे दिया है कि उनको इस्तीफ़ा नहीं देना चाहिए था लेकिन उन्होंने जनता और नैतिकता के लिए इस्तीफ़ा दिया। 2024 में ही महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव भी हैं, जिसके पहले लोकसभा चुनाव हैं और उससे साफ हो जाएगा कि दरअसल बाज़ी अदालत में और बाहर किसके हाथ आई है।

मुंबई से मयंक सक्सेना के साथ दिल्ली ब्यूरो की रिपोर्ट