उच्चतम न्यायालय ने 26 जुलाई को मॉब लिंचिंग को लेकर लगाई गई एक याचिका पर सुनवाई करते हुए केन्द्रीय गृह मंत्रालय सहित दस राज्यों से पूछा है कि उन्होंने इसे रोकने के लिए क्या कदम उठाए हैं. शुक्रवार को चीफ जस्टिस रंजन गोगोई की अगुवाई वाली एक बेंच ने केन्द्र, राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग और उत्तर प्रदेश,बिहार,दिल्ली और राजस्थान सहित 10 राज्यों को याचिका पर कार्रवाई को लेकर नोटिस जारी किया.
Supreme Court issues notice to Ministry of Home Affairs (MHA), on hearing a PIL seeking proper implementation of the 2018 judgement with respect to mob lynching cases. pic.twitter.com/FkiJ3UBYv5
— ANI (@ANI) July 26, 2019
याचिका में कहा गया था कि 2018 में विस्तृत गाइडलाइन जारी की थी, लेकिन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद कई राज्य सरकारें लिंचिंग को नहीं रोक पा रही हैं और पुलिस और स्थानीय प्रशासन ने भी कारगर कदम नहीं उठाए हैं.
सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर कर मॉब लिंचिंग को रोकने के लिए 2018 के कोर्ट के दिशानिर्देशों पर कठोरता से अमल कराने की मांग की गई है. सुप्रीम कोर्ट ने बीते वर्ष मॉब लिंचिंग मामले में केंद्र और राज्य सरकारों को निर्देश जारी किया था.
सर्वोच्च न्यायालय ने जुलाई 2018 के अपने फैसले में कहा था कि राज्यों को शांति बनाए रखने की जरूरत है. अदालत ने गोरक्षा के नाम पर हुई हत्याओं के सिलसिले में निवारक, उपचारात्मक और दंडनीय दिशानिर्देश जारी करते हुए कहा था कि संसद को इसके लिए कानून बनाना चाहिए. जिसमें भीड़ द्वारा हत्या के लिए सजा का प्रावधान हो. साथ शीर्ष अदालत ने सरकार से कहा था कि भीड़ हिंसा को एक अलग अपराध की श्रेणी में रखा जाए.
अदालत ने सभी जिलों में नोडल पुलिस अधिकारियों की नियुक्ति, उन क्षेत्रों में कुशल गश्त करने का आदेश दिया था जहां ऐसी घटनाओं की संभावना थी, और इन मामलों में छह महीने के भीतर मुकदमा पूरा करने की बात कही थी. वहीं अदालत ने केंद्र सरकार से इसको लेकर नया कानून बनाने के संबंध में जानकारी मांगी थी.
हाल ही में मॉब लिंचिंग और ‘जय श्री राम’ के बहाने हिंसा पर चिंता वक्त करते हुए 49 चर्चित हस्तियों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र भी लिखा था.