वैधता तय होने तक, क्यों दर्ज हों राजद्रोह के नए मामले? 24 घंटे में जवाब दे केंद्र – सुप्रीम कोर्ट

दिवाकर पाल दिवाकर पाल
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भारत के सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को, राजद्रोह (Sedition) क़ानून और उसके अंतर्गत दर्ज किए जाने वाले मामलों पर अपना जवाब देने के लिए 24 घंटों का समय दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने पूछा है कि क्या केंद्र सरकार सभी राज्यों और केंद्र-शासित प्रदेशों को निर्देश देगी कि केंद्र सरकार की भारतीय दंड संहिता की धारा 124-A के पुनरीक्षण और समीक्षा का कार्य सम्पन्न होने तक राजद्रोह के मामलों को दर्ज करने पर रोक लगा दी जाए? केंद्र सरकार को बुधवार तक अपना जवाब कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत करना है।



ग़ौरतलब है, पिछले साल जुलाई में देशद्रोह कानून के दुरुपयोग को लेकर केंद्र और राज्यों की व्यापक आलोचना से चिंतित सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से पूछा था कि ब्रिटिश राज में बने, और ब्रितानी राज के ख़िलाफ़ आवाज़ को उठाने से रोकने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किए गए राजद्रोह सम्बंधित भारतीय दंड संहिता के प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही है?



पिछले शनिवार को केंद्र ने इस मामले के जवाब में देशद्रोह कानून और संविधान पीठ के 1962 के फैसले का बचाव करते हुए और इसकी वैधता को बरकरार रखने के इरादे ज़ाहिर करते हुए कहा था कि लगभग छह दशकों तक “समय की कसौटी” का सामना किया जा चुका है और इसके दुरुपयोग के उदाहरणों को लेकर कभी भी इस पर पुनर्विचार करने को उचित नहीं ठहराया जा सकता। परंतु दो दिन बाद ही सोमवार को केंद्र ने एक नए हलफ़नामे में कहा कि सरकार ने राजद्रोह क़ानून के प्रावधानों की फिर से जाँच और पुनर्विचार करने का फ़ैसला किया है।



“आजादी का अमृत महोत्सव (स्वतंत्रता के 75 वर्ष) की भावना और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दृष्टि में, भारत सरकार ने धारा 124ए, देशद्रोह कानून के प्रावधानों का पुनरीक्षण और पुनर्विचार करने का निर्णय लिया है.”



इसी हलफ़नामे पर सुनवाई करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से जवाब माँगा है कि आईपीसी राजद्रोह प्रावधानों और सम्बंधित UAPA की समीक्षा के दौरान इस क़ानून के अनुपालन पर केंद्र की क्या राय है, और ऐसे मामलों का क्या होगा जिनमें इन धाराओं के तहत लोगों पर केस चल ही रहे हैं, या फिर नए मामलों के दर्ज होने पर केंद्र के क्या विचार हैं? इस मामले में अगली सुनवाई बुधवार 11 मई को होगी।