भारत के संसदीय लोकतंत्र में निर्वाचित सरकारों द्वारा एक साल या पांच साल की उपलब्धियों को मनाने का रिवाज़ रहा है. पहली बार नरेंद्र मोदी जब 2014 में सत्ता में आये, तो उन्होंने अपने 100 दिन का रिपोर्ट कार्ड पेश किया। फिर भी गनीमत रही कि केवल विज्ञापन दिए गए, भाषण दिए गए और सम्मेलन किए गए. खुद को श्री राम के आशीर्वाद से और नरेंद्र मोदी के मार्गदर्शन पर चलने वाला बताते हुए गोरक्षपीठाधीश्वर से सबसे बड़े सूबे के मुख्यमंत्री बने महंत योगी आदित्यनाथ उर्फ अजय सिंह बिष्ट ने सारे पिछले रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए हैं. गुरुवार को अपनी सरकार के तीन साल पूरा होने पर उन्होंने न सिर्फ परंपरागत प्रचार के काम किए, बल्कि अंग्रेज़ी और हिंदी के अखबारों में खुद अपनी बाइलाइन से प्रचारात्मक लेख छपवाकर अपनी पीठ खुजा ली.
प्रभु श्री राम के आशीर्वाद और आदरणीय PM श्री @narendramodi जी के मार्गदर्शन में उत्तर प्रदेश सरकार 23 करोड़ प्रदेशवासियों की अपेक्षाओं और आकांक्षाओं को पूरा करने हेतु अहर्निश सेवारत है।
आपकी सरकार ने 3 साल का क्षण-क्षण जनकल्याण व विकास को अर्पित किया है। यह क्रम सतत जारी रहेगा।
— Yogi Adityanath (मोदी का परिवार) (@myogiadityanath) March 18, 2020
दैनिक हिंदुस्तान, अमर उजाला, दैनिक जागरण, हिंदुस्तान टाइम्स और इंडियन एक्सप्रेस तक में योगी आदित्यनाथ के नाम व चेहरे के साथ उत्तर प्रदेश के कायाकल्प की कहानी प्रकाशित है. इसे प्रचार की नयी रणनीति कह सकते हैं और मजबूरी भी क्योंकि महंतजी के अलावा सूबे में दूसरा एक व्यक्ति नहीं है जो उनकी पीठ खुजलाने को तैयार हो. कारण वाजिब हैं− सरकार इस मौके पर अपनी जो उपलब्धियों गिनवा रही है, ज़मीनी हालात उसके ठीक उलट हैं.
On the way UP
Three years of trust, development and good governance have transformed Uttar Pradesh from being one of the laggard states to one with new model of development, which bears the responsibility to change lives of 23 crore people.
Read my article in Indian Express. pic.twitter.com/AN3rzFgK6p
— Yogi Adityanath (मोदी का परिवार) (@myogiadityanath) March 18, 2020
योगी आदित्यनाथ की गिनवायी उपलब्धियों की मीडियाविजिल ने सरकारी आंकड़ों के सहारे पड़ताल की है. यह पड़ताल समाज के प्रत्येक क्षेत्र से जुड़ी है. जो आंकड़े सामने आये हैं, वे दिल दहलाने वाली तस्वीर पेश करते हैं.
मीडियाविजिल एक-एक कर के अलग-अलग क्षेत्रों की ज़मीनी हक़ीकत पाठकों के सामने रख रहा है.
रोजगार
पिछले विधानसभा चुनाव के मौके पर भारतीय जनता पार्टी ने युवाओं के लिए 70 लाख नौकरियों का वादा किया था. योगी सरकार के तीन साल बीतने के बाद रोजगार के हालात बदतर हुए हैं. सेंटर फार मानिटरिंग इंडियन इकानमी (CMIE) के हवाले से आउटलुक में छपी एक रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में बीते वर्ष 2019 में 2018 की तुलना से लगभग दोगुना बेरोजगारी बढ़ी है. 2018 में औसत बेरोजगारी दर 6 फीसद थी, वह 2019 में बढ़कर 10 फीसद हो गयी.
उत्तर प्रदेश के श्रम व सेवा नियोजन मंत्री स्वामी प्रसाद मौर्य ने विधानसभा में एक सवाल के जवाब में श्रम मंत्रालय के हवाले से बताया कि 7 फरवरी 2020 तक करीब 33.93 लाख बेरोजगार पंजीकृत हुए हैं जबकि जून 2018 तक उत्तर प्रदेश में पंजीकृत बेरोजगारों की संख्या 21.39 लाख थी. इन आंकड़ों के मुताबिक यूपी में पिछले दो साल में 12 लाख से अधिक युवाओं ने खुद को बेरोज़गार पंजीकृत करवाया है. इस बीच तमाम सरकारी परीक्षाओं का आयोजन रद्द किया गया या फिर अनियमितताओं के चलते मामले अदालतों में फंस गये.
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उत्तर प्रदेश के औद्योगिक विकास के लिए योगी सरकार ने फरवरी 2018 में निवेशक सम्मेलन का आयोजन किया था. इस सम्मेलन में देश के सभी बड़े उद्योगपती शामिल हुए थे. इस सम्मेलन के बाद सरकार की तरफ से दी गयी जानकारी के मुताबिक 1,045 व्यापारिक सौदे (एमओयू) साइन किए गए जिससे 4.28 लाख करोड़ का प्रस्तावित निवेश बताया गया. इस मसले पर योगी आदित्यनाथ ने इंडियन एक्सप्रेस में गुरुवार को जो लेख लिखा है, उसमें योगी ने दावा किया है कि इन्वेस्टर समिट की 371 परियोजनाओं पर काम शुरू हो चुका है. इससे 33 लाख लोगों को प्रत्यक्ष व अप्रत्यक्ष रोजगार मिलेगा.
यह दावा उन्हीं की कैबिनेट में औद्योगिक विकास मंत्री सतीश महाना के कहे के उलट जाता है जिन्होंने बताया था कि इन्वेस्टर समिट के दौरान साइन किए गए 1,045 एमओयू में से अभी तक केवल 90 परियोजनाओं पर काम शुरू हुआ है. अब यह तय करना लोगों के हाथ में है कि योगी झूठ बोल रहे हैं या उनके मंत्री।
कानून व्यवस्था
बलात्कार
योगी आदित्यनाथ प्रदेश की कानून व्यवस्था में लगातार सुधार का दावा करते रहे हैं. उन्होंने दावा किया है कि पिछले तीन साल में प्रदेश में बलात्कार, लूट, डकैती व हत्या की घटनाएं कम हुई हैं जबकि राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के आंकड़े दूसरी ही कहानी बयां कर रहे हैं. एनसीआरबी के आंकड़ों के मुताबिक 2017 में 56,011 और 2018 में 59,445 अपराध के मामले दर्ज हुए जो देश भर से अधिक हैं.
महिलाओं से अपराध के मामले में कई बीजेपी नेताओं पर भी आरोप लगे. इनमें उन्नाव रेप कांड में बीजेपी के विधायक रहे कुलदीप सेंगर दोषी पाये गये. कानून की छात्रा से रेप के मामले में बीजेपा नेता व पूर्व गृह राज्यमंत्री चिन्मयानंद पर आरोप लगा. बढ़ते दबाव के कारण सेंगर को पार्टी से निष्कासित किया गया. इस बीच बीजेपी ने सेंगर को बचाने की पूरी कोशिश की. चिन्मयानंद मामले में आरोप लगाने वाली छात्रा को भी वसूली के आरोप में जेल जाना पड़ा. योगी आदित्यनाथ ने महिलाओं की सुरक्षा के लिए 2017 में एंटी रोमियो स्कवाड का गठन किया था लेकिन तीन साल बाद किसी को नहीं पता कि एंटी रोमियो स्कवाड का क्या हुआ.
उन्नाव और चिन्मयानंद के मामलों में पीड़िता के साथ जो सुलूक हुआ, उसने एक ट्रेंड पैदा कर दिया कि यदि आप रसूखदार अपराधी के खिलाफ बोलेंगे तो अपराधी आपको ही मान लिया जाएगा. महिलाओं से बलात्कार के अलावा पत्रकारों पर हमलों के मामले में भी यह ट्रेंड यूपी में साफ उजागर होता है जिस पर विस्तार से आगे सूचना है.
एनकाउंटर
अपराध पर लगाम कसने के लिये सरकार ने अपराधियों को खत्म करने का तरीका अपनाया. इसके लिए यूपी पुलिस ने खूब एनकाउंटर किये. कल्याण सिंह ने भी एक ज़माने में यही मॉडल अपनाया था और बाद में राज्य के मुख्यमंत्री बने राजनाथ सिंह ने भी एक के बदले दस मारने की बात पुलिस से कही थी, जो काफी चर्चित रही. सरकार के ही आंकड़ों के मुताबिक प्रदेश में करीब 3600 एनकाउंटर हुए हैं जिसमें 73 अपराधी मारे गये, 8,251 अपराधी गिरफ्तार किए गए जबकि चार पुलिसकर्मी शहीद हुए.
सरकार की एनकाउंटर नीति को विपक्ष, मानवाधिकार आयोग और सुप्रीम कोर्ट की आलोचनी भी झेलनी पड़ी. विपक्ष ने आरोप लगाया कि सरकार उनके नेताओं को मार रही है. एनकाउंटर के मसले पर दो बार एनएचआरसी भी यूपी सरकार व पुलिस को तलब कर चुकी है. इसके बावजूद मुठभेड़ की नीति पर असर नहीं पड़ा है।
मुख्यमंत्री बनने के पहले साल ही योगी ने अपराध को लेकर मीडिया से बात करते हुए कहा था कि अपराधी या तो यूपी छोड़ देंगे या फिर एनकाउंटर में मारे जाएंगे. यही नहीं, हाल ही में एंटी-सीएए प्रोटेस्ट के दौरान हुई हिंसा के बाद योगी ने दोषियों से हर्जाना वसूलने की बात कही थी और बाद में इस पर एक कानून भी लाया गया, जो फिलहाल अदालत में है. इसके बाद पूरे लखनऊ में हिंसा के आरोपितों के नाम और पता सार्वजनिक करते हुए पोस्टर लगाये गये. इसको लेकर सरकार को कोर्ट की आलोचना झेलनी पड़ी है और इलाहाबाद हाइकोर्ट ने 25 मार्च तक सरकार को जवाब दाखिल करने का वक्त दिया है.
संयुक्त राष्ट्र संघ भी इस मामले में संज्ञान ले चुका है और भारत सरकार के माध्यम से योगी सरकार को चेता चुका है. जनवरी 2018 में संयुक्त राष्ट्र संघ मानव अधिकार संगठन (UNHR) इस मामले में चिंता जता चुका है लेकिन योगी आदित्यनाथ के कान पर जूं तक नहीं रेंगी है। कुछ स्वतंत्र मानवाधिकार संगठनों द्वारा किए गए सर्वे में यह बात सामने आयी है कि प्रदेश में एनकाउंटर में मार गये ज्यादातर लोग अल्पसंख्यक, ओबीसी और दलित हैं।
भ्रष्टाचार
योगी आदित्यनाथ लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी सरकार देश भर की सरकारों में सबसे ईमानदार सरकार है जिस पर भ्रष्टाचार का एक भी दाग नहीं है. आदित्यनाथ के इस दावे की हवा उनके ही विधायकों ने ही निकाल दी जब 100 से ज्यादा विधायक विधानसभा के बाहर सरकार के खिलाफ ही धरने पर बैठ गये. भ्रष्टाचार के मसले को और ज्यादा हवा तब मिली जब गाजियाबाद की लोनी सीट से विधायक नंद किशोर गुर्जर ने पुलिस और प्रशासन पर कमीशन मांगने का आरोप लगाया. इसके पहले डिप्टी सीएम केशव मौर्य ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर एलडीए (लखनऊ डेवेलपमेंट अथाॅरिटी) में हुए घोटालों की लिस्ट भेजी थी. ये पत्र मीडिया में लीक हो गया. इसके बाद एलडीए को 11 कॉन्ट्रैक्टर के फर्म को ब्लैक लिस्ट करना पड़ा था.
यूपी में 2267 करोड़ का बिजली विभाग का डीएचएफएल घाेटाला सुर्खियों में रहा है जिसमें योगी आदित्यनाथ के निर्देश पर ही वरिष्ठ अफसरों की गिरफ्तारी की गयी. आरोप लगा कि उन्होंने पिछली समाजवादी पार्टी सरकार के करीबी अफसरों को टार्गेट किया है, लेकिन बाद में सिलसिलेवार गिरफ्तारियों ने दिखा दिया कि यह घाेटाला जो पिछले लंबे समय से जारी था, भाजपा की सरकार में भी चलता रहा.
फर्जी स्टाम्प पेपर घाेटाले की बात बीच में उठी थी लेकिन उसे उच्च स्तर से दबा दिया गया. वरिष्ठ पत्रकार प्रभात रंजन दीन ने दो किस्तों में राजस्व विभाग में हुए इस घाेटाले पर रिपोर्ट की थी और बताया था कि कैसे केंद्रीय निर्वाचन आयोग में एक चुनाव आयुक्त के करीबी दो व्यक्तियों ने फर्जी स्टाम्प पेपर पर पश्चिमी यूपी में लाखाें हेक्टेयर ज़मीनें खरीदी हैं. यह मामला पहले नौकरशाहों के दबाव में सीबीआइ को भेजा गया, लेकिन इस में चुनाव आयुक्त के करीबियों की संलिप्तता के चलते केंद्र की ओर से फाइल बंद करवा दी गयी, यह बात अब आम हो चुकी है.
ध्यान देने वाली बात है कि इस घाेटाले को खुद योगी सरकार के तीन विधायकों ने 2017 में सरकार आने के बाद ही खाेला था और योगी को इस बाबत पत्र लिखे थे. उसी के दबाव में योगी को यह मामला सीबीसीआइडी को सौंपना पड़ा था, जो बाद में सीबीआइ को सौंपा गया और अंततः बिना किसी परिणाम के बंद हो गया.
राजद्रोह
राजद्रोह का काला कानून, जो अंग्रेजों ने आज़ादी की आग को दबाने के लिए बनाया था, उसका इस्तेमाल योगी सरकार आलोचना की आवाज़ों को दबाने के लिए कर रही है. ताज़ा मामला वामपंथी छात्र संगठन आइसा के कार्यकर्ता नितिन राज का है. उसको केवल इसलिए गिरफ्तार किया गया कि जेल में बंद निर्दोष लोगों की रिहाई की वह मांग कर रहा था. आजमगढ़ जिले में सीएए के विरोध में प्रदर्शन कर रहे 135 लोगों पर राजद्रोह का चार्ज लगाया गया था.
किसानों की आत्महत्या
एनसीआरबी की रिपोर्ट के मुताबिक यूपी में केवल 2017 में 10,665 व 2018 में 10,349 खेती किसानी से जुड़े लोगों मे आत्महत्या की है. हाल के समय में किसानों के लिए आवारा पशु गंभीर समस्या बन कर उभरे हैं. उत्तर प्रदेश में आवारा पशुओं की समस्या इतनी गंभीर है कि सड़क पर चलते हुए लोग कहते हैं कि दूर हट जाओ, योगी जी आ रहे हैं.
भारतीय जनता पार्टी ने अपने चुनावी घोषणापत्र में किसानों की कर्ज़ माफ़ी की घोषणा की थी जिसको सरकार बनते ही पूरा करने की कोशिश की गयी. यहां तक कि पहली कैबिनेट बैठक ही किसान कर्जमाफी के वादे को पूरा करने के लिए की गयी. बैठक के बाद सरकार ने क़रीब 86 लाख लघु और सीमांत किसानों के 36 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़ माफ़ करने की घोषणा की.
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इस घोषणा के बाद किसानों में उम्मीद जगी कि कुछ अच्छा होगा. जब योजना धरातल पर उतरी तो किसान एक बार फिर ठगे गये. लाखों किसान दो रुपये और चार रुपये के कर्ज़ माफ़ी के प्रमाण पत्र लिये यहां-वहां भटकते रहे. किसानों की बड़ी आबादी है जो आज भी कर्ज माफ होने की उम्मीद में है. जिन किसानों का कर्ज माफ नहीं हुआ उनको सरकार ने नोटिस भेजना शुरू कर दिया जिसके कारण कई किसानों ने सदमे में आकर आत्महत्या कर ली.
पत्रकारों पर हमले
योगी सरकार में पत्रकारों पर हमले तेज़ हुए हैं. न केवल हत्याएं की जा रही हैं बल्कि अपने नियमित काम यानी खबरनवीसी के चलते पत्रकारों पर सरकारी काम में बाधा पहुंचाने और राजद्रोह जैसे केस लगाये जा रहे हैं. बीते तीन साल में सबसे चर्चित मामला मिर्जापुर जिले के पत्रकार पवन जायसवाल का रहा है जिसे नमक रोटी कांड के नाम से जाना जाता है। जनसंदेश टाइम्स के लिए काम करने वाले इस संवाददाता ने एक सरकारी स्कूल में बच्चों की नमक रोटी खाती वीडियो वायरल कर दी थी, जिसके बाद इस पर मुकदमा किया गया। मामला दिल्ली तक पहुंचा और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठा। मुकदमा अब भी खत्म नहीं हुआ है, भले ही डीाएम और एसपी का तबादला हो गया है।
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इसी किस्म का एक मामला प्रशांत कनौजिया नाम के दिल्ली स्थित पत्रकार का था जिसे यूपी पुलिस ने दिनदहाड़े दिल्ली से उठाया और ले गयी। करीब हफ्ते भर बाद उस पत्रकार की ज़मानत हो सकी। विश्वस्त सूत्रों के अनुसार यह मामला सीधे सूचना विभाग के वरिष्ठ अफसरों के निर्देश पर अंजाम दिया गया था जिसमें रंजिश का भी एक आयाम था। इस मामले में सीधे नौकरशाही द्वारा पुलिस को गिरफ्तारी के लिए कहा गया था।
योगी सरकार के पिछले तीन साल में कम से कम 60 पत्रकारों को राजकीय दमन और हिंसा झेलनी पड़ी है। कुल पांच पत्रकारों की हत्या की गयी है, हालांकि इनमें सभी मामले खबरनवीसी से नहीं जुड़े हैं। कुशनगर में राधेश्याम, ग़ाज़ीपुर में राजेश मिश्र, बिल्हौर में नितिन गुप्ता, सहारनपुर में आशीष कुमार और बलरामपुर में अंजनी मौर्य के पांच मामले हत्या के हैं। इन मामलों में केवल राजेश मिश्र का मामला अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों जैसे सीपीजे आदि ने उठाया है, लेकिन बाकी चार मामले पत्रकारों पर हमले के विरुद्ध समिति (CAAJ) की सालाना रिपोर्ट का हिस्सा हैं जिसे जल्द ही जारी किया जाएगा।
सिंगरौलीः शक्तिनगर के पत्रकार पर जानलेवा हमला, बनारस में भर्ती
हत्या के प्रयास के दो मामले इन तीन वर्षाें में सामने आए हैंः एक पीलीभीत में सत्येंद्र गंगवार का और दूसरा सोनभद्र से, जहां यूपी में काम कर रहे एक पत्रकार को मध्यप्रदेश के सिंगरौली में धारदार हथियारों से मारा गया।
योगी आदित्यनाथ पत्रकारों के मामले में बिलकुल नरेंद्र मोदी की राह पर चल रहे हैं, इसका पता इस तथ्य से लगता है कि उन्होंने प्रदेश भर के सभी मान्यता प्राप्त पत्रकारों के नए आइडी कार्ड बनवाने के निर्देश दिए हैं। सूचना विभाग इन पत्रकारों की नयी आइडी पर काम कर रहा है। गोरखपुर, जहां महंतजी का मठ है, वहां के पत्रकारों को आइडी कार्ड जारी किए जा चुके हैं। इस कदम के पीछे बताया जा रहा है कि योगी को डर है कि पत्रकारों के वेश में हमलावर न उनके पास घुस आए। बताया जा रहा है कि योगी को भी मोदी की तरह पत्रकारों से अपनी जान का खतरा नज़र आ रहा है।