न समाज ने अन्‍न दिया, न दिल्‍ली ने काम, लटक कर मर गया कासगंज का पूरन सिंह

Mediavigil Desk
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उत्‍तर प्रदेश के कासगंज में पूरन सिंह शुक्रवार की शाम पेड़ से लटक कर मर गया। उसके परिवार में दो दिन से चूल्‍हा नहीं जला था। चार-पांच दिन से घर में न पैसा था, न अन्‍न। पत्नी भूखी थी। बच्‍चे भूखे थे। दिल्‍ली कमाने की आस में गया था रक्षाबंधन के बाद। काम नहीं मिला। खाली हाथ वापस आया। लटक कर जान दे दी। उसे पेड़ से लटका सबने देखा। बेटी ने भुखमरी की बात कही। मां ने भी। तहसीलदार ने भी। पुलिस ने रोज़नामचे में पैर फिसलकर रहस्‍यमय तरीके से मौत दिखा दी है।

मीडियाविजिल के पास शुक्रवार देर शाम बिलग्राम से एक सामाजिक कार्यकर्ता का फोन आया। उन्‍होंने बताया कि कुम्‍हार समुदाय का एक बेहद गरीब व्‍यक्ति आर्थिक तंगी से आजिज़ आकर लटक गया है। उन्‍होंने तस्‍वीरें भेजीं। उनके माध्‍यम से पूरन की पत्नी से फोन पर बात हुई। उसने सिसकते हुए बताया, ”दो दिन से खाना नहीं बना है। गए थे दिल्‍ली। वापस आए और आज ये हो गया। फांसी लगा लिए।” इसके बाद रामकली रोने लगीं। बेटी को फोन थमाया गया तो वह रोने लगी।

देर रात तक मीडियाविजिल ने ‘भूख से हुई खुदकुशी” के इस मामले में पड़ताल की। कहीं से कोई अतिरिक्‍त सूचना नहीं मिली। कासगंज के किसी पत्रकार को इस खुदकुशी की ख़बर नहीं थी। रात भर लाश दरवाजे पर पड़ी रही। मौके पर मौजूद लोगों से देर शाम फोन पर बात हुई। वे कह रहे थे कि आने-जाने वाले परिवार को दस रुपये बीस रुपये देकर जा रहे हैं, बड़ी बुरी स्थिति है। सुबह पत्रकारों को इस बारे में पता चला तो भीड़ जुट गयी। लाश को पोस्‍टमॉर्टम के लिए ले जाया गया और रोज़नामचे में यह दर्ज कर लिया गया:

मीडियाविजिल ने दोपहर में छोटे लाल को फोन किया। छोटे लाल के बयान के आधार पर पुलिस की डायरी एन्‍ट्री है। उस वक्‍त छोटेलाल मरघट में लाश को फूंकने के इंतज़ाम में व्‍यस्‍त थे। फोन किसी और ने उठाया। बात नहीं हो सकी। परिवार में एक चादर तक नहीं थी जिसमें पूरन की लाश को लपेटा जा सके। पड़ोसी के यहां से चादर मंगवायी गयी।

मौके पर पहुंची नायब तहसीलदार कीर्ति चौधरी से मीडिया वालों ने पूछा कि जब पूरन भुखमरी के कारण फांसी से लटक गया तो पुलिस ने रोज़नामचे में पैर फिसलने से हुई मौत क्‍यों दिखायी। इस पर चौधरी ने सफाई से बचते हुए कहा कि पोस्‍टमॉर्टम में मौत की वजह साफ़ हो जाएगी। यह और बात है कि वे खुद भुखमरी की बात और फासी के फंदे के साक्ष्‍य की बात भी इसी बाइट में कह रही हैं। उन्‍होंने यह भी कहा कि सप्‍लाई अधिकारी से कह कर परिवार में राशन भिजवा दिया गया है।

सुबह पत्रकारों को जब इस खुदकुशी की खबर लगी तो पहली धारणा यह थी कि शराब पीने से मौत हुई है। शुक्रवार की रात लाश के इर्द-गिर्द लोग इस तरह की बातें करते नज़र भी आ रहे हैं।

यह बात और है कि फांसी पर लटकी हुई तस्‍वीर अपने आप में गवाह है और बच्‍चे भी, जो भूख और गरीबी की बात को स्‍वीकार कर रहे हैं।

पूरन की मां पहले ही दुर्घटना में चल बसी हैं। बच्‍चों की देखभाल अब रामकली के हाथ में है, लेकिन कागज़ों पर प्रथम दृष्‍टया यह स्थिति बना दी गयी है कि इस मौत को खुदकुशी न माना जाए। भुखमरी और गरीबी तो दूर की बात है। जाहिर है, फिर मुआवजे की बात ही नहीं रह जाती।

पूरन के राशन कार्ड में सप्‍लाई के सरकारी राशन का कोई जिक्र नहीं है। रिश्‍तेदारों की ओर से भी मदद नहीं मिली और पड़ोसियों की तरफ से भी कोई सहयोग नहीं मिला। मरने के बाद सबने मुंह खोला है। अब सब गरीबी की बात कह रहे हैं, लेकिन पुलिस ने अपना काग़ज़ पक्‍का कर लिया है। उसके लिए यह मौत पैर फिसलने से हुई है, तो बात खत्‍म है।

ख़बर लिखे जाने तक छोटेलाल से बात नहीं हो सकी। वे अंत्‍येष्टि में जुटे थे। परिवार के पास अब कोई रास्‍ता नहीं है जीने का। परंपरा के हिसाब से देखें पोस्‍टमॉर्टम में कोई खास उम्‍मीद नहीं दिखती कि भूख या गरीबी की पुष्टि हो सके। इस देश के लिए यह कोई नयी बात नहीं है। ठीक वैसे ही जैसे तमाम बयानात के साथ इस ख़बर को लिखे जाने का भी कोई खास मतलब नहीं है।

फिर भी एक अदृश्‍य उम्‍मीद है, कि कोई इस ख़बर का संज्ञान ले और परिवार के बाकी सदस्‍यों को मरने से बचा ले।


कासगंज से अतुल कुमार के साथ


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