ग्राउंड रिपोर्ट: झारखंड में जनजातियों के हिस्से का अनाज, भ्रष्टाचार की भेंट!

विशद कुमार विशद कुमार
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पूरी दुनिया कोरोना से जंग लड़ रही है और भारत भी इससे अछूता नहीं है। लेकिन लॉकडाउन के चलते देश के करोड़ों गरीब-मजदूर रोजगार और भूख से परेशान हैं। एक तरफ सरकार किसी को भूख से नहीं मरने देने की घोषणा पर घोषणा कर रही है. वहीं दूसरी ओर देश की नौकरशाही आपदा की घड़ी में भी अपनी संवेदनहीनता से बाज नहीं आ रही है। खासकर झारखंड का आपूर्ति विभाग जो भूखों के निवाले पर कुण्डली मारे बैठा है।

झारखंड में लॉकडाउन के चलते आदिम जनजातियों की हालात खराब है. उनके लिए दो जून की रोटी का संकट खड़ा हो गया है. झारखंड सरकार ने डाकिया योजना के तहत 35 किलो खाद्यान पैकेट इन परिवारों तक पहुंचाने की योजना बनायी है लेकिन सरकारी मशीनरी में व्याप्त भ्रष्टाचार के चलते इसका लाभ इन परिवारों तक नहीं पहुंच रहा है.

पलामू जिले के डालटनगंज सदर प्रखंड के सुआ पंचायत के बिन्हुआ टोला में करीब 35 आदिम जनजाति परहिया परिवार रहते हैं. ये पहले से ही अत्यन्त गरीबी की हालत में जिन्दगी गुजार रहे हैं. अब कोरोना लॉकडाउन से इनकी हालत और खराब हो गई है. इस टोला के परहिया परिवारों को एमओ द्वारा अप्रैल एवं मई 2020 का खाद्यान्न मुहैया कराया जाना था, लेकिन लाभार्थियों को सिर्फ एक माह का राशन दिया गया है. जबकि उनके कार्ड में जून 2020 तक राशन की मात्रा दर्ज कर दी गई है. इसकी जानकारी वहां के लोगों को तब हुई जब झारखंड नरेगा वाच के राज्य संयोजक जेम्स हेरेंज ने अपनी टीम के साथ वहां जाकर यह जानने की कोशिश की कि उन्हें सरकारी सुविधा का लाभ मिल रहा है या नहीं? वैसे भी यहां के इस परहिया समुदाय के लोगों में साक्षरता नगण्य है. उन्हें जब उनके कार्ड में दर्ज मात्रा की जानकारी मिली तो वे लोग आक्रोशित तो हुए, परंतु इस संकट की घड़ी में ये लोग इस डर से शिकायत दर्ज कराने से पीछे हट गए, कि कहीं उनको जो भी कुछ खाने को मिल रहा है, वह भी न बंद हो जाये.

टीम द्वारा जब एक-एक कार्ड की जांच की गई, तो राशन चोरी के कई अन्य मामले भी सामने आए. यहां दो ऐसे आदिम जनजाति परिवार मिले जिनके नाम से दो-दो राशन कार्ड बने हैं. जबकि इन्हें एक कार्ड से खाद्यान्न दिया जा रहा है. मनोहर बैगा, पिता गिरवर बैगा के नाम से 2 राशन कार्ड बनाये गये हैं जिसकी संख्या 202005051112 व 202005574268 है. जबकि लाभार्थी को एक कार्ड से खाद्यान्न दिया जा रहा है. ऑनलाइन रिकॉर्ड के अनुसार दूसरे कार्ड से प्रत्येक माह राशन निकाला जा रहा है.

कोरोना काल में राशन कार्ड में ग़लत एंट्री के ज़रिए भ्रष्टाचार हो रहा है

इसी प्रकार कार्ड सं0 202005574126 है, जो अन्छू परहिया के नाम से है, जबकि वह बहुत पहले ही मर चुका है. इस मामले का सबसे भ्रष्टतम और शर्मनाक पहलू यह है कि उसके नाम से भी हर माह 35 किलो का राशन लिया जा रहा है.

दूसरी तरफ बसन्ती कुअंर जिसकी कार्ड सं0 20200557426863 है, को कार्ड रहने के बावजूद उसे अप्रैल 2018 के बाद से खाद्यान्न वितरित नहीं किया गया है, जबकि इसके कार्ड में भी ऑनलाइन रिकॉर्ड बताता है कि उसे नियमित राशन वितरित किया गया है.

जब डालटनगंज सदर प्रखंड के प्रखंड आपूर्ति पदाधिकारी से इन आदिम जनजातियों के अनाज वितरण में गड़बडी के मामले पर जब सवाल पूछा गया तो उन्होंने बताया कि आदिम जनजाति को डाकिया योजना के तहत मिलने वाले अनाज के लिए कोई दुकानदार नियुक्त नहीं है. इसे प्रखण्ड आपूर्ति पदाधिकारी ही देखते हैं. मतलब कि वे खुद इसे देखते हैं.

जब एक परिवार के दो-दो राशन कार्ड के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने कहा, ‘मेरे संज्ञान में नहीं है, मैं मामले को देखता हूं और जांच करता हूं.’ राशन लाभुकों के घर तक पहुंचाने के सवाल पर उन्होंने कहा कि राशन लाभुकों के घर तक पहुंचाने का काम स्वयंसेवक उपेन्द्र करते हैं. अगर कोई गड़बड़ी हो रही है तो वही कर रहे होंगे.

अब आते हैं गुमला जिला के ग्राम नरेकेला. नरेकेला के ललित साहू को राशन लेने गांव से 35-40 किलोमीटर दूर टेलोंग्सेरा गांव जाना पड़ता था. दरअसल ललित साहू का राशन कार्ड जिसकी संख्या 202006623478 थी को टोलोंग्सेरा गांव के राशन डीलर रामावतार साहू से जो़ड़ दिया गया था. मतलब कि ललित साहू को अपना पीडीएस का राशन लेने के लिए 35-40 किलोमीटर के सफर में किराया खर्च के अलावा दैनिक मजदूरी का भी नुकसान उठाना पड़ता था. अब ललित का वह राशन कार्ड भी रद्द हो गया है.

दरअसल जिला आपूर्ति कार्यालय में बैठे कम्प्यूटर ऑपरेटर ने नरेकेला में रहने वाले ललित साहू के कार्ड संख्या 202006623478 को उसके घर से 35-40 किलोमीटर दूर टोलोंग्सेरा गांव के राशन डीलर रामावतार साहू के साथ टैग कर दिया था. लाभुक उक्त डीलर से बात करके हर दो महीने पर एक बार राशन लेने जाता था. दो महीने का 30 किलो राशन लेने के लिए उसे दिनभर की मजदूरी भी गंवानी पड़ती थी. साथ ही इसके लिए वह बसिया सिमडेगा रोड में पुटरी टोली तक बस से जाता और फिर वहां से तोलोंग्सेरा गांव 15 किलोमीटर अपनी साईकिल से जाकर राशन लेकर वापस आता. पुन: बस से बसिया तक आकर अपने घर आता था.

पिछले वर्ष मई जून का राशन लेने वह नहीं जा सका था. क्योंकि वह गंभीर रूप से बीमार हो गया था. जब वह जुलाई में राशन लेने गया तो मशीन में अंगूठा मिलान नहीं होने के कारण डीलर ने उसे राशन नहीं दिया. डीलर रामावतार ने शंका जाहिर करते हुए बताया था कि शायद उसका कार्ड उसके ही गांव के स्थानीय डीलर को हस्तांतरित हो गया हो. डीलर द्वारा राय दिए जाने पर उसने बसिया एम०ओ० को आवेदन दिया. आज जब लॉकडाउन में उसके परिवार में खाद्य संकट गहरा गया है, उसका परिवार भूखों मरने कगार पर है, तब कार्ड की स्थिति जांच करने से पता चल रहा है कि उसका कार्ड रद्द हो गया है. आज उसके पास न कोई रोजगार है और न ही कोई सरकारी राहत सामग्री उस तक पहुंची है. उसके परिवार में कुल 6 सदस्य हैं, जिसमें पत्नी और चार छोटे बच्चे शामिल हैं. आज उसे सरकारी मदद का इंतजार है, मगर अभी तक उसे सरकारी मदद नहीं मिल पाई है.

बताते चलें कि गढ़वा जिले कुरून गांव में पिछले 2 अप्रैल को 70 वर्षीय सोमारिया देवी की भूख से मौत हो गयी थी. यह गांव गढ़वा मुख्यालय से करीब 55 कि0 मी0 दूर और भण्डरिया प्रखण्ड मुख्यालय से करीब 30 कि0 मी0 उत्तर पूर्व घने जंगलों के बीच बसा है. 700 की अबादी वाला इस आदिवासी बहुल्य गांव में सोमरिया देवी अपने 75 वर्षीय पति लच्छू लोहरा के साथ रहती थी. उसकी कोई संतान नहीं थी. मृत्यु के पूर्व यह दम्पति करीब 4 दिनों से अनाज के अभाव में कुछ खाया नहीं था. इसके पहले भी ये दोनों बुजुर्ग किसी प्रकार आधा पेट खाकर गुजारा करते थे.

इसी गांव की 80 वर्षीय मुल्का देवी और उनके पति दोनों काफी बुजुर्ग हैं और विकलांग भी हैं, जिनका राशन कार्ड सं0 202002703136 है. इन्हें कई महीनों से राशन नहीं मिलने की खबर है. ये बताते हैं कि लगातार 8-10 दिनों तक डीलर के पास जाते हैं, लेकिन डीलर उन्हें राशन नहीं देता है.

लोहरदगा जिला अंतर्गत सेन्हा बांधटोली की रहने वाली महिला चिन्तामुनी कुमारी अकेली रहती है. वह अत्यन्त गरीब है. उसने पी0 एच0 कार्ड जिसकी संख्या 202002191351 है, उसने उसे संभाल कर रखा है. लेकिन राशन लेने जाने पर उससे कहा जाता रहा है कि उसका कार्ड डिलीट हो गया है. चेक करने पर पता चला कि उस नंबर पर प्रमिला नामक किसी दूसरे परिवार को कार्ड निर्गत कर दिया गया है.

7 दिसम्बर 2019 को बोकारो जिले के भूखल घासी (42 वर्ष) की मौत भूख से हो गई थी. खबर थी कि भूखल घासी के घर में चार दिनों से चूल्हा नहीं जला था. मतलब साफ था कि भूखल को चार दिनों से अनाज का दाना भी नसीब नहीं हुआ था.

देश के कई राज्यों से गरीब-मजदूरों की भूख से बिलबिलाने की खबरें सूर्खियों हैं. ऐसे में सवाल खड़ा होता है कि इस कोरोना के खौफनाक संकट में आम गरीब, भूख की समस्या से परेशान लोग अपनी फरियाद लेकर किसके पास जाये? और किसी के पास ये सवाल और फ़रियाद लेकर वो जाएंगे भी तो ये कैसे सुनिश्चित होगा कि उनके हिस्से का अनाज, भ्रष्टाचार की भेट नहीं चढ़ेगा?