कांग्रेस को बढ़ाने की ज़िम्मेदारी तो पीके को मिल सकती थी, कांग्रेस चलाने की नहीं – रिपोर्ट

दिवाकर पाल दिवाकर पाल
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600 स्लाइड का प्रेज़ेंटेशन, 46 शब्द की ट्वीट

प्रशांत किशोर और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी के बीच क़रीब एक महीने तक चली लम्बी बातचीत के सिलसिले अंतत: किसी फ़ैसले के बिना समाप्त हुए। प्रशांत किशोर ने अफ़वाहों, अंदाज़ों और समाचारों के बीच अपनी ओर से ट्वीट कर के साफ़ कर दिया कि वे कांग्रेस के साथ फिलहाल नहीं जा रहे हैं। लेकिन दरअसल अपने पुराने एरोगेंट से और ‘सर्वज्ञ’ अंदाज़ में ट्वीट कर के, कांग्रेस पर ही निशाना साध दिया। वही पुराना अंदाज़, जिसमें डील फाइनल न हो तो क्लाइंट को ही बुरा-भला कहने लगो। ट्वीट पढ़ ही लीजिए;

वहीं इस पर कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने ट्वीट कर जानकारी दी कि प्रशांत किशोर को कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गाँधी ने पार्टी में नवगठित एम्पावर्ड ऐक्शन ग्रुप (आधिकारिक कार्य समूह) 2024 में शामिल होने का न्योता दिया था, जिसे किशोर ने ठुकरा दिया। प्रशांत किशोर पूरी छूट के साथ कांग्रेस में काम करने की आजादी चाहते थे।

“प्रशांत किशोर के प्रजेंटेशन और उनसे चर्चा के बाद कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने एंपावर्ड ऐक्शन ग्रुप 2024 का गठन किया था और उन्हें इस समूह के सदस्य के तौर पर जुड़ने का प्रस्ताव दिया था, इसमें उनकी जिम्मेदारी भी चिन्हित की गई थी, लेकिन उन्होंने इससे इनकार कर दिया। हम पार्टी के प्रति उनके सुझावों और प्रयासों की सराहना करते हैं।”

प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर कहा – “मैंने कांग्रेस के एंपावर्ड ऐक्शन ग्रुप के हिस्से के तौर पर कांग्रेस पार्टी में शामिल होने के प्रस्ताव को विनम्रतापूर्वक माना कर दिया है। मेरी एक विनम्र सलाह है कि मुझसे ज्यादा गहरी जड़ें जमा चुकीं संरचनात्मक समस्याओं और बड़े सुधारों के लिए मुझसे ज्यादा पार्टी को ज्यादा नेतृत्व और सामूहिक इच्छाशक्ति की जरूरत है।”

क्या चाहते थे प्रशांत किशोर?

अंदरख़ाने के सूत्रों के मुताबिक प्रशांत किशोर, कांग्रेस को बढ़ाने के लिए बुलाए गए थे लेकिन वो दरअसल कांग्रेस को चलाना चाहते थे। ज़ाहिर है कि कांग्रेस ये अधिकार और जगह किसी को नहीं दे सकती है। ऐसे में प्रशांत किशोर की ओर से रखी गई मांगें, कांग्रेस ने अस्वीकार कर दी। इनमें से जो बातें हमको अब तक पता चली हैं, वो एक बार जान लेते हैं;

  • कांग्रेस पार्टी के अंदर प्रियंका गांधी की ज़िम्मेदारी बदली जाए और उनको अध्यक्ष बनाने पर फ़ैसला लिया जाए। हालांकि कई मीडिया संस्थानों ने ये ख़बर, भाजपा के नज़रिए से कयास लगाते हुए, ये कहकर छापी कि प्रशांत किशोर गांधी परिवार को ही शीर्ष नेतृत्व से हटाना चाहते थे। लेकिन ये ख़बर बाद में निराधार साबित हो गई, ज़ाहिर है कि गोदी मीडिया, किसी भी बहाने गांधी परिवार को निशाने पर लाना चाहती थी और कारण किसी से छिपा नहीं है।
  • सोनिया गांधी, यूपीए की प्रमुख का पद संभालें – जैसा कि वे यूपीए सरकार के समय संभालती थी – ज़ाहिर है कि कांग्रेस के अंदर के कई वरिष्ठ नेता, अध्यक्ष की कुर्सी पर निगाह जमाए हैं और ऐसे में ये उनके लिए मनमुताबिक़ नीति नहीं थी। 
  • प्रशांत किशोर चाहते थे कि उनके हाथ में कांग्रेस में संगठनात्मक बदलाव की ताक़त सौंप दी जाए – सवाल ये है कि आख़िर कोई भी कांग्रेस सरीख़ा दल, अपने संगठन में बदलाव की ताक़त बाहर से आए किसी व्यक्ति को कैसे दे सकता है?
  • एक बाहरी संगठन, जो कि माना जा रहा है कि आई-पैक ही होता – के ज़रिए रणनीति बनाने और उसे ज़मीन पर उतारने का काम किया जाए – जिसके लिए एक बड़ा बजट भी सामने रख दिया गया था।
  • प्रशांत किशोर केवल और केवल 2024 के लोकसभा चुनाव के लिए कांग्रेस की रणनीति पर काम करें, विधानसभा चुनावों के लिए उन पर कोई दबाव न हो
  • प्रशांत किशोर चाहते थे कि कांग्रेस अभी से 2024 के लिए गठबंधन बनाने, बाकी दलों के साथ सीटों के बंटवारे पर कोई फॉर्मूला तैयार करने को तैयार हो जाए – ज़ाहिर है कि कोई भी दल, ऐसा फ़ैसला अभी क्यों लेना चाहेगा, जिसमें वायदा कारोबार जैसी स्थिति आ जाए?
तस्वीर – आर्काइव से, पुरानी प्रतीकात्मक

जो चाह थी, वहां राह नहीं थी

अब बात करते हैं कि आख़िर महीने भर की बातचीत, प्रेज़ेंटेशन और मीटिंग्स के दौर के बाद, ये सारा मामला अटक कहां गया? क्या कांग्रेस पार्टी किसी तरह की मदद या अपने पुनरुत्थान की ज़रूरत नहीं महसूस करती है? ज़ाहिर है कि करती है…उसे मदद भी चाहिए। तो फिर आख़िर क्यों प्रशांत किशोर, कांग्रेस का हिस्सा नहीं बन सके? कुछ बाते हैं, जो सब कुछ साफ़ कर देंगी;

  • कांग्रेस किसी भी एक व्यक्ति और वो भी किसी बाहरी को संगठन में अपनी मर्ज़ी से फेरबदल करने नहीं दे सकती है – कांग्रेस में एक केंद्रीय कमेटी है, जिसे सब एआईसीसी के नाम से जानते हैं, इसके अलावा कई और समितियां हैं। इसके साथ ही राज्यों की अपनी, अलग-अलग कमेटी हैं और संगठन में किसी भी तरह के फेरबदल के लिए इनकी अनुशंसा, सलाह और मर्ज़ी के साथ ही काम होते हैं। कांग्रेस अपने वरिष्ठ नेताओं, पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं की नाराज़गी, अनदेखी की कीमत पर किसी तरह का सांगठनिक बदलाव नहीं कर सकती है। कांग्रेस चूंकि काडर आधारित पार्टी नहीं है तो उसके लिए ये मामला आम आदमी पार्टी, टीएमसी या डीएमके के मुक़ाबले कहीं अधिक मुश्किल हो जाता है। 
  • कांग्रेस के अध्यक्ष का फ़ैसला, प्रशांत किशोर नहीं कर सकते हैं – कांग्रेस में न केवल वरिष्ठ नेताओं की एक पूरी मंडली है, जो कि  नया अध्यक्ष चाहती है लेकिन इस तरह से नहीं। वे चाहते हैं कि उनमें से ही कोई, इस पद पर बैठे लेकिन भले ही अध्यक्ष प्रियंका गांधी ही बन जाएं, वे किसी बाहरी व्यक्ति को ये फ़ैसला लेने का अधिकार नहीं सौप सकते। ज़ाहिर है कि पार्टी में पहले ही जारी फूट, अलग स्तर पर पहुंच जाएगी। ये फ़ैसला प्रशांत किशोर भाजपा में भी नहीं ही कर सकते थे। 
  • कांग्रेस को एक समय बाद प्रशांत किशोर की बातों से ये लगने लगा था कि वे कांग्रेस के उद्धार के लिए नहीं, बल्कि अपने दूसरे क्लाइंट्स की ओर से 2024 में कांग्रेस पर दबाव डालने की नीयत से बात कर रहे हैं। सादा भाषा में कहें तो ‘Conflict of Interest’ – प्रशांत किशोर, जिस तरह से अभी से गठबंधन को लेकर बात कर रहे थे, उसने इस शंका को बढ़ा दिया। प्रशांत किशोर की चुनाव प्रबंधन कंपनी आईपैक, पश्चिम बंगाल में टीएमसी का चुनाव प्रबंधन देखती है, तेलंगाना में टीआरएस का और आम आदमी पार्टी के लिए भी वो ये काम कर चुके हैं। उनको ममता बनर्जी, के चंद्रशेखर राव और अरविंद केजरीवाल का करीबी भी माना जाता है। ये तीनों ही, अपने-अपने राज्यों में कांग्रेस के प्रमुख प्रतिद्वंदी दल हैं। ममता और अरविंद केजरीवाल ये भी साफ कर चुके हैं कि गठबंधन को कांग्रेस लीड करे, ये उनको स्वीकार नहीं है। साथ ही ये दोनों, प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष तरीके से ख़ुद को पीएम पद का उम्मीदवार भी ज़ाहिर करते रहे हैं। ऐसे में प्रशांत किशोर कांग्रेस को समझाते रहे कि I-PAC और वो अलग-अलग दो यूनिट हैं, जबकि कांग्रेस को पता है कि ये दोनों अलग न हैं, न होने वाले हैं।
  • बजट – प्रशांत किशोर ने कांग्रेस के रिवाइवल के लिए जो तौर और जो बजट कांग्रेस के सामने रखा था, वो फिलहाल पार्टी की हैसियत से न केवल बाहर है, कांग्रेस ऐसा जुआ नहीं खेलना चाहती है – जो वो हारे, तो हर तरह से, हमेशा के लिए हार जाए।  

सूत्रों के अनुसार, तेलंगाना में I-PAC (आई॰पी॰ए॰सी॰) और तेलंगाना राष्ट्र समिति के बीच हुआ समझौता कांग्रेस और प्रशांत किशोर के बीच की बातचीत में बड़ा रोड़ा बन गया। हालांकि प्रशांत का पक्ष था कि अब उनके और I-PAC के बीच कोई रिश्ता नहीं है।  लेकिन ये भी सच है कि पीके के इस संगठन को छोड़ देने के बावजूद वहाँ उनका गहरा प्रभाव है। कांग्रेस से बातचीत के दौरान भी वे दो दिन तक वे तेलंगाना सरकार के मेहमान रहे थे, और कई कांग्रेसी नेताओं ने इस बात को लेकर नाराज़गी भी जताई।

ग़ौरतलब है कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने प्रशांत किशोर को कांग्रेस में शामिल करने और उनके 2024 के लिए मिशन के प्रस्तावित विजन को आगे बढ़ाने पर विचार करने के लिए समिति का गठन किया था। इस 13 सदस्यीय समिति ने अपनी रिपोर्ट कांग्रेस अध्यक्ष को सौंप दी थी। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी समेत कई नेता प्रशांत किशोर को कांग्रेस में लाए जाने के पक्ष में थे, लेकिन दिग्विजय सिंह समेत कई सीनीयर नेताओं ने इसको लेकर अपनी आशंकाएं जाहिर की थीं।

सवाल ये है कांग्रेस के लिए अब आगे रास्ता क्या है, क्योंकि प्रशांत किशोर तो कहीं न कहीं, किसी न किसी तरीके से ख़ुद को एडजस्ट कर ही लेंगे। वे अपने लिए राष्ट्रीय राजनीति में लांचिंग पैड तलाश रहे हैं और उसके लिए वो भाजपा के सामने खड़ी किसी राष्ट्रीय पार्टी में जगह तलाश रहे थे। उनको वो जगह नहीं भी मिली तो राजनैतिक सलाहकार के तौर पर वो अपना काम करते ही रहेंगे। लेकिन कांग्रेस की ओर से इस बारे में संकेत आए हैं कि उसकी आगे की रणनीति क्या है। कांग्रेस ने 2024 की तैयारी के लिए पार्टी के सीनियर नेताओं को शामिल कर के, 6 समितियां बनाई हैं। इन समितियों की रिपोर्ट और अनुशंसा, उदयपुर में होने वाले पार्टी के चिंतन शिविर में सामने रखी जाएगी।

इन समितियों के विषय और रूपरेखा को देखकर, ये कहा जा सकता है कि कांग्रेस चिंतन तो कर रही है। लेकिन अतीत को देखें तो इस तरह के चिंतन और समितियों का अंजाम क्या रहा है, ये भी सब जानते ही हैं। फिलहाल प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर के, कांग्रेस पर अप्रत्यक्ष निशाना साधा है जबकि कांग्रेस की ओर से जो ट्वीट की गई है, वह काफी विनम्र भाषा में है। ऐसे में भविष्य में प्रशांत किशोर की कोई जगह कांग्रेस में प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बन भी जाए तो कोई हैरानी की बात नहीं होनी चाहिए।

दिवाकर पाल के साथ मयंक सक्सेना