भारतीय मीडिया, ख़ासतौर पर न्यूज़ चैनल जब 24 घंटे अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत की मौत की गुत्थी सुलझाने में जुटे हैं, अर्थव्यवस्था की गुत्थी सुलझाने की कोशिशों में जुटे रिज़र्व बैंक ने एक गंभीर चेतावनी दी है। आरबीआई ने कहा है कि आने वाले दिनों में ग़रीब और ग़रीब हो सकते हैं। आरबीआई के मुताबिक हालात सुधरने में अभी समय लगेगा। आरबीआई की इस स्वीकारोक्ति पर कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने कहा है कि जिस बात को लेकर वे महीनों से चेताते रहे हैं, आरबीआी ने उसी की पुष्टि की है। उन्होंने कहा कि मीडिया के ज़रिये मुद्दे से भटकाने की नीति से समस्या का हल नहीं होगा।
रिजर्व बैंक का कहना है कि कोरोना काल में हुए लॉकडाउन से गरीबों पर सबसे मुश्किल मार पड़ी है। गरीब तबका और गरीब हो सकता है। लोगों ने ख़र्च करना बेहद कम कर दिया है। त्योहारी मौसम में भी उपभोक्ता मांग बढ़ने की उम्मीद नहीं है। परिवहन, सेवा, होटल, मनोरंजन और सांस्कृतिक गतिविधियां विशेष रूप से प्रभावित हैं। इन क्षेत्रों में खपत की हिस्सेदारी जीडीपी का करीब 60 प्रतिशत है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र और राज्य सरकारों के पास वैश्विक वित्तीय संकट में उपलब्ध संसाधनों को देखते हुए कोविड-19 से निपटने को लेकर काफी कम गुंजाइश है।
भारत की जीडीपी वृद्धि दर 2019-20 में 4.2 प्रतिशत रही जो एक दशक पहले वैश्विक वित्तीय संकट के बाद सबसे कम है। वहीं इस साल कई एजेंसियों ने अर्थव्यवस्था में 20 प्रतिशत तक की गिरावट की आशंका जतायी है।
वहीं, अर्थव्यवस्था के मुद्दे पर काफ़ी मुखर रहने वाले कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गाँधी ने इस संबंध में छपी एक ख़बर को ट्वीट करके कहा है कि आरबीआी ने उसी की पुष्टि की है जिसके वे महीनों से चेतावनी दे रहे हैं। उन्होंने लिखा-
आरबीआई ने अब पुष्टि की है कि मैं महीनों से क्या चेतावनी दे रहा हूं।
सरकार की जरूरत है:
अधिक खर्च करे, न कि अधिक उधार दे।
गरीबों को पैसा दो न कि उद्योगपतियों के टैक्स में कटौती करो।
खपत बढ़ाकर अर्थव्यवस्था को दोबारा शुरु करें।
मीडिया के जरिए भटकाने से न गरीबों को मदद होगी और न ही आर्थिक आपदा ही ख़त्म होगी।
RBI has now confirmed what I have been warning for months.
Govt needs to:
Spend more, not lend more.
Give money to the poor, not tax cuts to industrialists.
Restart economy by consumption.Distractions through media won’t help the poor or make the economic disaster disappear. pic.twitter.com/OTDHPNvnbx
— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) August 26, 2020
अजब बात है कि देश गहरे आर्थिक संकट में है, लेकिन भारत के मीडिया के लिए सिर्फ सुशांत की मौत ही मुद्दा है। चौबीस घंटे सिर्फ इसी मुद्दे पर उलझाया जा रहा है ताकि असल मुद्दों पर बात न हो। हालांकि खुद मीडिया कर्मियों की नौकरियाँ बड़े पैमाने पर जा रही हैं।
ज़ाहिर है, राहुल गाँधी ने मीडिया के ज़रिये समस्या हल करने की बात कहकर सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर निशाना साधा है। उन्हें लगता है कि महंगाई, बेरोज़गारी और अर्थव्यवस्था का संकट मीडिया को नज़र नहीं आता तो यह संयोग नहीं है। इसके पीछे हेडलाइन मैनेजमेंट का खेल है। अपनी भाषण कला को लेकर चर्चा में रहने वाले पीएम मोदी भी इस मुद्दे पर गहरी चुप्पी साधे हुए हैं। मीडिया में उनकी विश्रांत (थकान मिटाने) मुद्रा में मोर को दाने खिलाने की तस्वीर ख़ूब चर्चित हुई।
लेकिन भूखे भारतीयों के पेट पर दाने कैसे पहुँचें, यह सवाल उठाने की हिम्मत मीडिया में नहीं बची। वह असल मुद्दों पर सुशांत हो चुका है। जानकारों का मानना है कि भारत की जीडीपी ऋणात्मक हो चुकी है। -5% से -10% की गिरावट चल रही है। इसे भारतीय अर्थव्यवस्था की चमकदार कहानी का दुखांत न कहें तो क्या कहें। त्रासदी ये कि जिनके हाथ में सरकार है वो विश्रांत मुद्रा में हैं।