धर्मेंद्र सिंह
हाल ही में पीएम मोदी ने वाराणसी दौरे के समय अपनी सरकार के कृषि कानूनों पर की तारीफ़ करते हुए चंदौली जिले में काला चावल उगाने वाले किसानों का ज़िक्र किया था। उन्होंने कहा था कि काला चावल प्रजाति के चावल के निर्यात से चंदौली के किसान मालामाल हो गये. लेकिन पीएम मोदी के दावे को जमीनी हकीकत खारिज करती है.
वाराणसी से अलग करके बनाये गये जिस चंदौली जनपद के किसानों के कसीदे मोदी जी पढ़ रहे थे वह नीति आयोग के अनुसार देश के सर्वाधिक पिछड़े जनपदों में एक है। प्रदेश सरकार ने जब ‘वन डिस्ट्रिक्ट वन प्रोडक्ट’ की बात शुरू की तो चंदौली जनपद में शुगर फ्री चावल के नाम पर ‘चाको हाओ’ यानि काला चावल (Black rice) की खेती शुरू करा दी गयी। इस काले चावल की खेती में और विपणन और प्रचार प्रसार मे सरकार की कोई प्रत्यक्ष भूमिका नहीं है। इसके लिए एक गैर सरकारी संगठन ‘चंदौली काला चावल समिति’ बनाई गई है जो इसे बेचने और पैदा करने से जुडी़ समस्याओ को हल करने मे लगी है।
सन 2018 में करीब 30 किसानों ने इसकी खेती की शुरूआत की तो उन्हे काफी महंगे दर पर बीज मिला। इन किसानों ने एक से लेकर आधा एकड़ मे धान लगाया। ऐसे करने वाले जमुड़ा (बरहनी ब्लाक) और सदर ब्लाक के दो किसानों ने बातचीत में बताया कि कृषि विभाग के सलाह मशवरे से उन्होंने खेती की। करीब बारह कुन्तल धान पैदा हुआ लेकिन उसका न तो कोई बीज में खरीदने वाला मिला और न तो चावल लेने वाला। जो चावल उनके पास है उसका उपयोग वह खुद कर रहे है।
समित के अध्यक्ष शशिकांत राय पहले साल आधे एकड़ मे नौ कुन्तल चावल पैदा होने और कुम्भ मेले के दौरान 51 किलो चावल बिकने की बात बताते हैं। कृषि विभाग के अनुसार 2018 में 30 किसानों ने 10 हेक्टेयर, सन् 2019 में 400 किसानों ने 250 हेक्टेयर और सन 2020 मे 1000 किसानों ने काला चावल वाले धान की खेती की। अनुमानतः सन् 2019 मे 7500 कुन्तल धान पैदा हुआ जिसमे से मात्र 800 कुन्तल धान ‘सुखवीर एग्रो,. गाजीपुर’ ने रूपया 85/-प्रति किलो की दर से खरीदा है। बाकी चावल किसानों ने खुद ही उपयोग किया। जिसे निर्यातक बताया जा रहा है वह भी इस साल खरीदने मे रूचि नहीं ले रहे हैं। उनके पास आज भी 6700 कुन्तल धान है जो बर्बाद हो रहा है।
प्रधान मंत्री मोदी के वाराणसी दौरे के दौरान काला चावल की तारीफ के बाद अधिकारियों द्वारा बैठकों का दौर शुरू है। लेकिन काले चावल के भविष्य को लेकर इसके उत्पादक बहुत आशान्वित नही दिख रहे हैं। समिति के अध्यक्ष बड़े ग्राहक न होने की बात स्वीकार करते हैं जिनकी तलाश समिति और इसके प्रमोटर पिछले तीन सालों से कर रहे हैं। काला चावल का उत्पादन जिले में खरीदार के अभाव मे कभी भी बंद हो सकता है। भारतीय चावल अनुसन्धान संस्थान, हैदराबाद की रिपोर्ट के मुताबिक जिंक की मात्रा जहां सामान्य चावल में 8.5 पीपीएम तो काला चावल मे 9.8 पीपीएम है। वहीं पूर्व में पैदा होने वाले काला नमक (धान की एक किस्म) में यह 14.3 पीपीएम है। आइरन की बात करें तो यह काला चावल मे 9.8 पीपीएम और काला नमक मे 7.7 पीपीएम है।
कुल मिलाकर काले चावल की खेती मोदी जी के कृषि कानूनों की तरह ही महज एक सब्जबाग है इससे ज्यादा कुछ नहीं है। अमित शाह के शब्दों मे कहे तो जुमला है।
(लेखक खुद किसान है और चंदौली जनपद में अधिवक्ता हैं। साथ ही मजदूर किसान मंच के जरिये किसानों को कारपोरेट परस्त नीतियों के खिलाफ संगठित कर रहे हैं)