इलाहबाद हाईकोर्ट ने आज स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत एक महीने की सार्वजनिक नोटिस देने की शर्त को खत्म कर दिया। अदालत ने कहा कि नोटिस देना निजता का उल्लंघन। इस के तहत नोटिस बोर्ड पर शादी करने वालों की फोटो लगती थी ताकि किसी को कोई आपत्ति हो तो दर्ज कराये। महीने भर तक इंतज़ार करना पड़ता था। अब फ़ौरन शादी हो सकेगी।
यूपी में जिस तरह से योगी सरकार ने कथित लव जिहाद को लेकर अध्यादेश लागू किया था उसके बाद अंतर्धार्मिक शादियाँ मुश्किल हो गयी थीं। लोग एक महीने की नोटिस की अनिवार्यता की वजह से स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी करने से कतराते थे। हाईकोर्ट ने आज ऐसे लोगों को बड़ी राहत दे दी है। इसे लव जिहाद के अभियान को झटका भी माना जा रहा है।
स्पेशल मैरिज एक्ट 1954 के तहत अंतरधार्मिक शादी करने वालों को जिलाधिकारी कार्यालय को लिखित नोटिस देना अनिवार्य है। इसके बाद इस नोटिस को बोर्ड पर महीने भर के लिए चिपकाया जाता है ताकि कोई चाहे तो आपत्ति कर सके। मंगलवार को दिये अपने 47 पेज के फ़ैसले में जस्टिस विवेक चौधरी ने कहा है कि अब शादी करने वाले जोड़े जिलाधिकारी कार्यालय को नोटिस को सार्वजनिक न करने को कह सकते हैं। अगर वे खुद ऐसा करने कोन नहीं कहते हैं तो विवाह अधिकारी न तो नोटिस का प्रकाशन करेगा और न किसी तरह की आपत्ति को स्वीकार करेगा।
अदालत ने यह फ़ैसला एक मुस्लिम महिला की याचिका पर दिया जिसने हिंदू व्यक्ति से शादी के लिए हिंदू धर्म स्वीकार कर लिया था। उसने कहा था कि उसके पिता उसे अपने पति के साथ रहने की इजाज़त नहीं दे रहे हैं। अदालत ने पूछा कि स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत शादी क्यों नहीं की, जिस पर उन्होंने बताया कि एक महीने तक नोटिस बोर्ड पर फोटो चिपका रहता है, साथ ही नाम पता भी होता है जिससे काफ़ी धमकी वगैरह मिलती है। इस पर अदालत ने नोटिस और बोर्ड पर फोटो चिपकाने को ग़लत बताते हुए आदेश दिया कि अगर दो बालिग शादी के लिए मैरिज आफिसर के पास आते हैं तो वह प्रमाणपत्र जारी करे। नोटिस का मामला तभी लागू हो जबकि कोई जोड़ा खुद ऐसा करना चाहे।