के.के. शैलजा केरल में वाम लोकतांत्रिक मोर्चा सरकार में स्वास्थ्य मंत्री हैं। केरल भारत का दक्षिण-पश्चिमी राज्य है जिसकी आबादी 3.5 करोड़ है। 25 जनवरी, 2020 को के.के. शैलजा ने चीन के वुहान में फैली COVID-19 की महामारी पर चर्चा के लिए एक उच्चस्तरीय बैठक बुलायी। उन्हें विशेष रूप से चिंता थी कि चीन के उस प्रांत में केरल के कई छात्र पढ़ते थे।
शैलजा ने 2018 में केरल में संकट बनकर आए निपा वायरस के हमले से निपटने के लिए उस वक़्त जिस तेजी और कुशल तरीके से अपने विभाग को लगाया था, उसके लिए उनकी व्यापक प्रशंसा हुई थी। उन्होंने आने वाले वक्त की नजाकत को भांपते हुए कहा था- “अगर वुहान से वायरस फैलता है, तो तैयारी का समय तक नहीं मिलेगा, सरकार को संभवतः संक्रमित व्यक्तियों की पहचान करने और फिर परीक्षण, शमन और उपचार के लिए तंत्र स्थापित करना होगा।” इसके बाद 26 जनवरी, 2020 को उनके विभाग ने काम के समन्वय के लिए एक नियंत्रण कक्ष स्थापित किया।
केरल का स्वास्थ्य विभाग, निपा वायरस कैंपेन के दृष्टांत का इस्तेमाल करते हुए एक्शन मोड में चला गया। उन्होंने काम करने के लिए 18 समितियों का गठन किया और और उनके कामों का मूल्यांकन करने के लिए रोजाना शाम को मीटिंग आयोजित की। इन मीटिंगों के बाद रोजाना प्रेस कान्फ्रेंस करना इसकी एक प्रमुख विशेषता थी, जहां शैलजा शांतिपूर्वक और तर्कसंगत रूप से बताया करतीं कि उनका विभाग क्या कर रहा था। इन प्रेस कॉन्फ्रेंसों के जरिये- और मुख्यमंत्री पिनाराई विजयन ने- एक आबादी को वह आवश्यक नेतृत्व प्रदान किया, जिसमें पहले वायरस की तीव्रता के बारे में जागरूक करने की आवश्यकता थी और फिर इसकी घातकता को हराने के लिए एक व्यापक जन अभियान को छेड़ने की ज़रूरत थी।
एक मेडिकल छात्र जो वुहान में था, कोरोनो वायरस लेकर घर लौटा था और 30 जनवरी को टेस्ट में पॉजिटिव पाया गया था। बाद में दो और छात्र वायरस से संक्रमित होकर वापस आए। केरल के स्वास्थ्य विभाग द्वारा स्थापित सिस्टम में उनको ले जाया गया, उनका परीक्षण किया गया और उन्हें आइसोलेट (अलग-थलग) करके रखा गया। वे वायरस इन्फेक्शन से रिकवर हो गए और उनसे कोई द्वितीयक या सामुदायिक प्रसार नहीं हुआ। केरल सरकार ने इस प्रणाली को खत्म नहीं किया क्योंकि यह तुरंत ही स्पष्ट हो गया कि यह यह वायरस वायरल होने जा रहा है, और यह इतनी आसानी से नहीं निपटेगा।
मार्च तक कोरोनोवायरस पॉजिटिव के केसों की संख्या में वृद्धि हुई क्योंकि बड़ी संख्या में लोग योरप से केरल आए। केरल की जनसंख्या असाधारण रूप से गतिशील है, जहां बड़ी संख्या में लोग दुनिया भर में पढ़ाई और कामकाज कर रहे हैं। जनसंख्या का यह अंतरराष्ट्रीय चरित्र इस राज्य को महामारी के प्रति अतिसंवेदनशील बनाता है।
चेन तोड़ो
केरल में वामपंथी सरकार ने “चेन तोड़ो” का नारा दिया था। इसके पीछे की सोच बहुत सरल है: एक महामारी तब फैलती है जब कोविड-19 पॉजिटिव व्यक्ति दूसरों के संपर्क में आते हैं। यदि वायरस संक्रमित लोग दूसरों के संपर्क में नहीं आते हैं तो फैलाव की चैन टूट जाती है। सवाल उठता है कि आपको कैसे पता चलेगा कि आपके भीतर वायरस है? विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा है कि इसे जानने का एकमात्र तरीका आबादी का टेस्ट करना है- वो सभी जिनमें इसके मुख्य लक्षण दिखाई दें- और फिर जो संक्रमित हैं वे स्वयं को quarantine (पृथक कमरे में रखना) सुनिश्चित करें।
सरकारों की अक्षमता के चलते इसके टेस्ट किट की आपूर्ति कम है। भारत सरकार स्वास्थ्य क्षेत्र में खर्च करने के बारे में उल्लेखनीय रूप से कंजूस रही है: इसने स्वास्थ्य पर सकल घरेलू उत्पाद का केवल 1.28 प्रतिशत खर्च किया है, जिसका अर्थ है कि प्रति 1,000 व्यक्तियों पर केवल 0.7 के लिए हॉस्पिटल बेड हैं, देश में केवल 30,000 वेंटिलेटर हैं और यहां प्रति 100,000 व्यक्ति पर केवल 20 स्वास्थ्यकर्मी (जो कि WHO के मानक 22 से नीचे) हैं। इससे पता चलता है कि यह देश एक वैश्विक महामारी के लिए बिलकुल तैयार नहीं है।
कम्युनिस्ट और वामपंथी दलों के गठबंधन वाली केरल सरकार ने भारत में कोरोनो वायरस के लिए अब तक के सबसे अधिक सैंपल टेस्ट किये हैं। “चेन तोड़ो” के क्रम में सरकार “कॉन्टैक्ट ट्रेसिंग” का सख्ती से संचालन और अध्ययन कर रही है कि संक्रमित व्यक्ति का किस किस से संपर्क हुआ है, ताकि संभावित संक्रमित लोगों की पूरी श्रृंखला की पहचान की जा सके और उन्हें आइसोलेशन में डाला जा सके। रूट मैप्स के जरिये उन स्थानों को दर्शाया और पब्लिश किया जा रहा है जहां संक्रमित व्यक्ति रह चुका है और उन स्थानों पर उस समय मौजूद लोगों को स्वास्थ्य विभाग से संपर्क करने के लिए कहा गया है ताकि उनकी स्क्रीनिंग और टेस्ट किया जा सके। रूट मैप्स को सोशल मीडिया और सरकार के फोन एप ‘GoK Direct’ के माध्यम से प्रचारित प्रसारित किया जा रहा है। स्थानीय सरकारी अधिकारी और आशा स्वास्थ्य कार्यकर्ताएं (महिलाएं जो स्थानीय सार्वजनिक स्वास्थ्य के स्तंभ हैं) संक्रमित लोगों को ढूंढने का काम कर रही हैं और सुनिश्चित करती हैं कि उनके संपर्क में आए लोगो को भी आइसोलेशन में रखा जाए।
शारीरिक दूरी, सामाजिक एकता
जैसे ही यह स्पष्ट हो गया कि वायरस सतहों पर देर तक टिका रहता है और हवा के माध्यम से फैलता है, राज्य सरकार ने अपने संसाधनों को हैंड सैनिटाइज़र और मास्क बनाने के लिए जुटाया। सार्वजनिक क्षेत्र की एक कंपनी ने हैंड सेनिटाइज़र का उत्पादन शुरू किया। यूथ मूवमेंट- डेमोक्रेटिक यूथ फेडरेशन ऑफ इंडिया- और अन्य संगठनों ने भी हैंड सैनिटाइज़र का उत्पादन करना शुरू कर दिया, जबकि महिलाओं की सहकारी संस्था कुडुम्बश्री (4.5 मिलियन सदस्य) मास्क बनाने के काम में लग गयी।
स्थानीय प्रशासकों ने स्वयं की आपातकालीन समितियों का गठन किया और सार्वजनिक क्षेत्रों को स्वच्छ करने के लिए समूह बनाए। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के बड़े मोर्चों ने बसों की सफाई की और यात्रियों के हाथ और चेहरे धोने के लिए बस स्टेशनों पर सिंक स्थापित किए। केरल में सबसे बड़ा ट्रेड यूनियन महासंघ– ‘सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन्स’ ने श्रमिकों से सार्वजनिक स्थानों को कीटाणुरहित करने और अपने साथी कर्मचारियों को जो संकट के चलते quarantine में हैं, उनकी सहायता करने की अपील की है। ये सामूहिक सफाई अभियान समाज पर एक शैक्षणिक वैज्ञानिक प्रभाव डालते हैं। इससे वॉलंटियर्स “चेन तोड़ो” अभियान की सामाजिक ज़रूरत के बारे में आबादी को समझाने में सक्षम हुए।
दुनिया की घनी आबादी वाले क्षेत्र में quarantine (संगरोध) कोई आसान मामला नहीं है। सरकार ने कोरोनो वायरस केयर सेंटर स्थापित करके quarantine मरीजों को सहूलियत देने के लिए खाली इमारतों को अपने कब्जे में ले लिया है और इसमें उन लोगों के लिए व्यवस्था बनाई है जिन्हें घर पर quarantine करने की जरूरत है। हर कोई जो संगरोध (quarantine) में है और इन केंद्रों में है, उसके खाने और इलाज की व्यवस्था स्थानीय स्वशासकीय इकाइयों द्वारा की जाएगी और इलाज के बिल का भुगतान राज्य द्वारा किया जाएगा।
शारीरिक आइसोलेशन और संगरोध (quarantine) के साथ एक महत्वपूर्ण समस्या मानसिक संकट की भी है। सरकार ने 241 काउंसलरों के साथ कॉल सेंटर स्थापित किए हैं, जो अब तक 23 हजार काउंसलिंग सत्र उन लोगों के लिए आयोजित कर चुके हैं जो स्थिति से डरे या घबराये हुए हैं। मुख्यमंत्री पिनराई विजयन ने नारा दिया है- “शारीरिक दूरी, सामाजिक एकता”।
जिस दिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश को टीवी पर संबोधित कर रहे थे, उसी दिन केरल के मुख्यमंत्री ने 270 मिलियन डॉलर के राहत पैकेज की घोषणा की। पैकेज में महिलाओं के सहकारी कुडुम्बश्री के माध्यम से परिवारों को ऋण देने, ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के लिए उच्च आवंटन, बुजुर्गों को दो महीने के पेंशन का भुगतान, मुफ्त खाद्यान्न और रेस्तरां में रियायती दरों पर भोजन प्रदान करना शामिल है। पानी और बिजली के बिल के साथ-साथ कर्ज भुगतानों पर ब्याज पर रोक लगाया गया।
यही वे कारण है कि एक राष्ट्र के रूप में चीन और भारतीय संघ के एक राज्य के तौर पर केरल वायरस के विस्फोट से लड़ पाने में कामयाब हुए हैं। चीन और केरल, दोनों जगह सामाजिक संस्थाएं अपेक्षाकृत अक्षुण्ण हैं; इससे भी अधिक, यहां के राजनीतिक दलों के पार्टी सदस्यों और जनसंगठनों के सदस्यों ने स्वेच्छापूर्वक अपना समय और ऊर्जा वायरस के खिलाफ लड़ाई में लगायी है।
यह टिप्पणी विजय प्रसाद और सुबिन डेनिस के लिखे लेख का संक्षिप्त और संपादित रूप है। इसे इंडिपेंडेंट मीडियाइंस्टिट्यूट के ग्लोबट्रॉटर प्रोजेक्ट द्वारा जारी किया गया था। विजय प्रसाद एक भारतीय इतिहासकार, संपादक और पत्रकार हैं। वह लेफ्टवर्ड बुक्स के मुख्य संपादक और ट्राईकॉन्टिनेंटल: इंस्टीट्यूट फॉर सोशल रिसर्च के निदेशक हैं। सुबिन डेनिस अर्थशास्त्री और शाेधकर्ता हैं। प्रस्तुति सुशील मानव की है।