ज्ञान है तो जान हैः वायरसों की अनोखी और अदृश्य दुनिया

डॉ. ए. के. अरुण
समाज Published On :


जो अदृश्य है उस पर सहसा विश्वास नहीं होता। उसे देखने के लिए या तो दर्शन की दिव्य दृष्टि चाहिए या इलेक्ट्रान अथवा आप्टिकल माइक्रोस्कोप। प्राचीन धर्मग्रन्थों का तो मुझे पता नहीं लेकिन सन् 1675 में हालैण्ड के एक साधारण व्यापारी एंटनी वान लिउनहुक ने कांच को घिस कर एक माइक्रोस्कोप बना डाला। तब दूध से दही बना देने वाला बैक्टीरिया देखा जा सका था। जैसे-जैसे शोध और यंत्रों का विकास हुआ वैसे वैसे पता चला कि जितना अनन्त आकाश है, उतनी ही विशाल है सूक्ष्मजीवों की दुनिया।

माइक्रोस्कोप के आविष्कार के लगभग 200 साल बाद सन् 1880 में यह सिद्ध हो पाया कि कुछ जानलेवा रोग जीवाणुओं के संक्रमण से होते हैं। यह जानकारी दी जर्मन चिकित्सक राबर्ट कॉक तथा फ्रांसीसी रसायनशास्त्री लुई पास्चर ने।

फिर 1792−98 के दौरान एक अन्य तरह के जीव की भी खोज हुई। यह आकार में बैक्टीरिया से भी छोटा था। इसे वायरस (विषाणु) कहा गया। यह एक सूक्ष्म कोशिका का और भी सूक्ष्म हिस्सा है। यह अपना प्रजनन खुद कर सकता है यदि इसे कोई जीवित कोशिका मिल जाए। बीमारियों के स्रोत रोगाणु हैं, यह जानकारी मिलने के बाद अनेक नई जानकारियां सामने आने लगीं। कई तरह के सूक्ष्मजीव (फफूंद) परजीवी कीट आदि का पता चला। यह भी पता चला कि तब हैजा और प्लेग से जो लाखों जानें जाती थीं उसमें इन सूक्ष्मजीवों की ही भूमिका थी।

अब आइये जान लें कि इन सूक्ष्मजीवों के लिए कैसी परिस्थितियां और वातावरण जिम्मेवार हैं। याद कीजिए, सन् 1817 से 1824 के बीच भारत के बंगाल में भयानक हैजा फैला था। इसे एशियाटिक कॉलरा का नाम दिया गया। यह महामारी साम्राज्यवाद के जहाज़ पर सवार होकर योरप पहुंची थी। सन् 1830 में दुनिया भर में कॉलरा से लाखों लोग मर रहे थे। सन् 1838 से 1854 के दौरान लन्दन कई बार हैजे की चपेट में आया। अब तक चिकित्सकों को हैजा का असल कारण पता ही नहीं था। हैजे के जीवाणु की पहचान तो 1886 ईसवीं में जर्मनी में हुई।

इसके पहले योरप के लोग इस बीमारी का कारण दूषित हवा को मानते थे। इसे “मयाज्म” कहा गया। मयाज्म को यूनानी भाषा में प्रदूषण कहते हैं। लन्दन के चिकित्सक डॉ. जॉन स्नो ने बताया कि हैजा हवा से नहीं, दूषित पानी से फैलता है, हालांकि उस समय ब्रिटिश सरकार ने डॉ. स्नो की खोज को नहीं माना लेकिन बाद में आगे चलकर उन्हें आधुनिक महामारी विज्ञान का जनक माना गया।

अब वापस अपने मूल विषय पर लौटें। वायरस या विषाणुओं की अपनी दुनिया है, अपना परिवार है, अपनी व्यवस्था है लेकिन इनकी मजबूरी है कि ये केवल जीवित कोशिकाओं में ही अपना प्रसार कर सकते हैं। ये नाभिकीय अम्ल और प्रोटीन से मिलकर गठित होते हैं। जीवित शरीर से बाहर इनकी कोई हैसियत नहीं लेकिन जीवित कोशिकाओं या शरीर के मिलते ही ये सक्रिय हो जाते हैं।

वायरस सैकड़ों वर्षों तक यों ही सुषुप्त अवस्था में रह सकते हैं और जब भी ये किसी जीवित कोशिका या जीव के सम्पर्क में आते हैं तो उस जीव की कोशिका में घुस कर उसके आरएनए और डीएनए की जेनेटिक संरचना को अपनी जेनेटिक संरचना में बदल देते हैं। फिर यह संक्रमित कोशिका अपने जैसे संक्रमित कोशिकाओं का पुनरुत्पादन शुरू कर देती है। विषाणु या वायरस विष से बना शब्द है। सबसे पहले 1796 में एडवर्ड जेनर ने पता लगाया कि चेचक (स्मॉल पॉक्स) वायरस के कारण होता है। उन्होंने इसके टीके का भी आविष्कार किया। इसके बाद सन् 1886 में एडोल्फ मेयर ने बताया कि तम्बाकू (पौधे) में मोजेक रोग एक विशेष वायरस की वजह से होता है। इसे टोबैको मोजेक वायरस का नाम दिया गया।

ऐसा नहीं है कि वायरस महज जानलेवा और हानिकारक ही होते हैं। इनमें लाभदायक वायरस भी हैं। ये जीवाणु-भोजी वायरस होते हैं। ये हैजा, टायफायड, पेचिस जैसे रोग उत्पन्न करने वाले जीवाणुओं को नष्ट कर मानव जीवन की रक्षा भी करते हैं। पोलियो वायरस, एचआइवी वायरस, एन्फ्लूएन्जा वायरस रोग/महामारी उत्पन्न करने वाले प्रमुख वायरस हैं। ये शारीरिक सम्पर्क, वायु द्वारा, भोजन एवं जल द्वारा, म्यूकस या मुंह मार्ग द्वारा शरीर में पहुंचते हैं।

अब आइये, फिलहाल चर्चित और देशव्यापी लॉकडाउन की वजह बने कोरोना वायरस की चर्चा की तरफ बढ़ते हैं। कोरोना वायरस को लेकर लोगों में यह भी चर्चा है कि यह एक “विनाशकारी जैविक हथियार” बनाने की प्रक्रिया में हुई चूक का परिणाम हो सकता है। उल्लेखनीय है कि अभी बीते हफ्ते सउदी अरब में जी-20 देशों के शिखर सम्मेलन में वैश्विक महामारी से निपटने के उपायों पर कार्ययोजना लाने की आम सहमति बनी और इसी के तुरन्त बाद भारतीय विदेश मंत्रालय ने जैविक और घातक हथियार संधि (बीटीडब्लूसी) लागू होने की 45वीं वर्षगांठ पर जैविक हथियारों पर प्रतिबन्ध लगाने की फिर से मांग की। भारतीय विदेश मंत्रालय ने हालांकि इसका कोई विस्तृत ब्यौरा नहीं दिया लेकिन कोरोना वायरस के प्रभाव के मद्देनजर विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्लूएचओ) की संस्थागत मजबूती और अन्तर्राष्ट्रीय सहयोग को बढ़ाने पर जोर दिया गया।

कोरोना वायरस को लेकर चीन पर जैविक हथियार का आरोप लग रहा है लेकिन अमरीका समेत कई देशों के वैज्ञानिक शोधों में दावा किया गया है कि यह वायरस प्राकृतिक है। इस शोध और दावे को नेचर जर्नल के ताजा अंक में प्रकाशित किया गया है। इसे अमरीका के नेशनल इन्स्टीच्यूट आफ हेल्थ, ब्रिटेन के वेलकम ट्रस्ट, योरोपीय रिसर्च काउन्सिल तथा आस्ट्रेलियन लारेट काउन्सिल ने भी प्रमाणित किया है। स्क्रीप्स इन्स्टीच्यूट के एसोसिएट प्रोफेसर क्रिस्टीन एंडरसन ने पुष्टि की है कि यह एक प्राकृतिक वायरस ही है जिसे कोविड-19 यानी कोरांना वायरस डिज़ीज़-2019 का नाम दिया गया है।


लेखक जन स्वास्थ्य वैज्ञानिक एवं राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त होमियोपैथिक चिकित्सक हैं। इस श्रृ़ंखला की अगली कड़ी में अगले हफ्ते पढ़ियेः कोरोना वायरस से क्यों थर्रा रही है दुनिया!