हाथरस में ‘साज़िश’ सूंघ रही पुलिस ने PFI के नाम पर केरल के पत्रकार को पकड़ा!

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हाथरस केस में बुरी तरह घिरी यूपी सरकार अब इसके पीछे राष्ट्रीय-अंतरराष्ट्रीय साज़िश खोज रही है। लेकिन इस चक्कर में यूपी पुलिस ने केरल के पत्रकारों को गिरफ्तार कर लिया है जिसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में हैबियस कॉर्पस यानी बंदी प्रत्यीक्षकरण याचिका दायर हो गयी है। केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्निलिस्ट ने योगी सरकार की इस हरक़त की कड़ी निंदा की है।

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट (KUWJ)ने हाथरस की घटना को कवर करने गये पत्रकार सिद्धीक कप्पन की गिरफ्तारी को अवैध बताते हुए तीखी प्रतिक्रिया जतायी है। संगठन ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर करके उन्हें तत्काल अदालत के सामने पेश करने का निर्देश देने की मांग की है।

सिद्दीक कप्पन KUWJ के महासचिव हैं और ऑनलाइन मलयालम समाचार पोर्टल एझिकुमम से जुड़े हैं। संगठन ने कहा है कि उनकी गिरफ्तारी के बाद उनके परिजनों और सहयोगियों को पुलिस ने कोई सूचना नहीं दी है सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहले जारी किये गये दिशा निर्देशों का स्पष्ट उल्लंघन है। यह गिरफ्तारी एक पत्रकार के कामकाज में बाधा डालने के लिए की गयी है।

ये गिरफ्तारी 5 अक्टूबर को हुई थी। यूपी पुलिस ने दावा किया था कि उसने हाथरस टोल प्लाजा पर कप्पन के अलावा अतीक-उर-रहमान, मसूद अहमद और आलम को गिरफ्तार किया है जो पापुलर फ्रंट ऑफ इंडिया (PFI)से संबंधित हैं और किसी बड़ी साज़िश को अंजाम देना चाहते थे। उनके मोबाइल और लैपटॉप भी ज़ब्त कर लिये गये थे।

जबकि संगठन का कहना है कि पत्रकार हाथरस केस को कवर करने गये थे और उनका किसी अन्य संगठन से कोई लेना-देना नहीं है। पुलिस ने जिस तरह के सबूत पेश किये थे, वे शुरू से ही हास्यास्पद हैं। लैपटॉप में ‘ब्लैक लाइव्स मैटर’ समेत दुनिया भर के आंदोलनों के बारे में जानकारी थी ‘जिसे यूपी में शांति व्यवस्था बिगाड़ने’ के इरादे के रूप में पेश किया गया। जबकि ऐसी चीज़ें पत्रकारों के पास आमतौर पर होती हैं।

दरअसल, हाथरस में जिस तरह से दलित युवती के गैंगरेप में पकड़े गये आरोपियों के पक्ष में सवर्ण बिरादरी गोलबंद हो रही है, उसने बीजेपी के सामाजिक समरसता अभियान को गहरा धक्का दिया है। ऐसे में योगी सरकार मसले जाति से हटाकर संप्रदाय पर लाना चाहती है। अब हाथरस को लेकर हो रहे विरोध प्रदर्शनों को सीएए-एनआरसी विरोधी आंदोलनकारियों से जोड़ने की कोशिश की जा रही है। किसी भी तरह मुस्लिम एंगल खोजने में जुटी यूपी पुलिस के लिए केरल के पत्रकारों का मुस्लिम होना ही काफी था। भाषा और लहजा भी उसे संदिग्ध ही लगा होगा।

बहरहाल, मामला अब सुप्रीम कोर्ट में है और पत्रकारों को किसी ऐसे फैसले की उम्मीद है जिसके बाद किसी सरकार को ऐसी हरकत करने की हिम्मत न पड़े।

 



 


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