समाचार और विचार वेबसाइट न्यूज़ क्लिक पर प्रवर्तन निदेशालय के छापे को स्वतंत्र पत्रकारिता के दमन की क़ोशिश क़रार देते हुए कई पत्रकार, लेखक और सांस्कृतिक संगठनों ने कड़ा बयान जारी किया है। बयानों में कहा गया है कि यह स्वतंत्र समाचार स्रोतों के तौर पर स्थापित हो रहे ऑनलाइन मीडिया के दमन की कोशिश है जो सरकार की हाँ में हाँ नहीं मिलाते।
इस बीच 11 न्यूज़ वेबसाइटों का प्रतिनिधित्व करने वाले एक संगठन डिजिपब ने न्यूज़क्लिक कार्यालय और उसके निदेशकों के घरों पर ईडी के छापे की निंदा करते हुए एक बयान जारी किया है । डिजिपब के बयान में कहा गया है कि न्यूज़क्लिक ने हमेशा पत्रकारिता की अखंडता और सत्ता के लिए सच बोलने के उच्चतम मानकों को बरकरार रखा है।
आप डीयूजे का बयान नीचे पढ़ सकते हैं–
1612871732478_Press Release on Newsclick Feb 9, 2021वहीं सात लेखक और सांस्कृतिक संगठनों ने यह बयान जारी किया है-
प्रवर्तन निदेशालय द्वारा 09/02/2021 को स्वतंत्र मीडिया पोर्टल ‘न्यूज़क्लिक’ के दफ़्तर पर तथा उसके स्वत्वाधिकारी, निदेशकों और सम्बद्ध पत्रकारों के घरों पर छापे डालना बेबाक पत्रकारिता का दमन करने की कोशिशों की सबसे ताज़ा कड़ी है।
मोदी सरकार शुरुआत से ही सच का साथ देने वाले पत्रकारों और मीडिया संस्थानों को निशाने पर लेती आई है। प्रवर्तन निदेशालय, आयकर विभाग, पुलिस—इन सभी महकमों का इस्तेमाल निडर मीडिया को डराने-धमकाने और ग़लत मामलों में फँसाने में किया जाता रहा है। सीएए विरोधी आंदोलन और किसान आंदोलन के साथ इस तरह की दमनकारी हरकतों में और तेज़ी आई है। ज़्यादा दिन नहीं हुए, अपनी आलोचनात्मक धार के लिए सुपरिचित छह पत्रकारों पर राष्ट्रद्रोह के आरोप के साथ एफआईआर दर्ज की गई थी। सिंघू बॉर्डर से पत्रकारों की गिरफ़्तारियाँ भी हुईं। कश्मीर में पत्रकारों का उत्पीड़न लगातार जारी है और उत्तर प्रदेश में हाथरस मामले की रिपोर्टिंग करते पत्रकारों को फ़र्ज़ी आरोपों के तहत गिरफ़्तार किए जाने की घटना भी अभी पुरानी नहीं पड़ी है।
‘न्यूज़क्लिक’ एक ऐसा मीडिया पोर्टल है जो इस सरकारी दहशत के माहौल में निर्भीकता से सच को लोगों तक पहुँचाता रहा है। सरकार की गोद में बैठकर लोकतंत्र की जड़ें खोदने वाले मीडिया संस्थानों के मुक़ाबले ‘न्यूज़क्लिक’ मीडिया जगत के उस छोटे हिस्से का प्रतिनिधित्व करता है जिस पर भारतीय लोकतंत्र की उम्मीदें क़ायम हैं। उसके खिलाफ़ यह जाँच सरकार द्वारा उत्पीड़न की जानी-पहचानी चाल के निर्लज्ज इस्तेमाल का नमूना है।
हम अभिव्यक्ति की आज़ादी को कुचलने के लिए प्रवर्तन निदेशालय के इस्तेमाल की निंदा करते हैं और ज़ोर देकर कहना चाहते हैं कि प्रवर्तन निदेशालय को अपना काम ज़रूर करना चाहिए, पर जाँच को उत्पीड़न का हथियार बनाना हर तरह से निंदनीय है।
जारीकर्त्ता:
जन संस्कृति मंच | दलित लेखक संघ | प्रगतिशील लेखक संघ | इप्टा | प्रतिरोध का सिनेमा | न्यू सोशलिस्ट इनीशिएटिव | जनवादी लेखक संघ
पूरा मामला समझने के लिए आप मीडिया विजिल में प्रकाशित इस ख़बर को पढ़ सकते हैं-
न्यूज़क्लिक पर ईडी का छापा, फिर उठा स्वतंत्र पत्रकारिता पर हमले का सवाल!