इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लखनऊ हिंसा मामले में योगी सरकार द्वारा जारी वसूली नोटिस को अवैधानिक बताया है. इसके साथ ही कोर्ट ने यह आदेश दिया कि क्योंकि वसूली नोटिस एडीएम सिटी, लखनऊ के मुख्य आदेश दिनांकित 17/2/2020 के अनुक्रम में है, जिसे प्रार्थी द्वारा याचिका संख्या 7899/2020 द्वारा डिवीज़न बेंच में चुनौती दी गयी है, अतः इस मामले को भी वहीँ पर उठाया जाये. अब इस मामले की सुनवाई 17 जुलाई को होगी.
दरअसल कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि किस कानून के तहत वसूली नोटिस जारी की गयी थी. जिसका जवाब देते हुए सरकारी वकील ने लखनऊ के एडीएम सिटी के 17 फरवरी, 2020 के आर्डर का हवाला दिया. इस पर याचिकाकर्ता के वकील बताया कि उस आदेश को पूर्व आईजी एस आर दारापुरी ने कोर्ट में चुनौती दे रखी है तो कोर्ट ने मामले को खारिज कर दिया. और उसी कोर्ट में सुनवाई के लिए ले जाने की छूट दे दी जहां इसकी पहले से सुनवाई हो रही है.
याचिका की सुनवाई करते हुए कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा था कि वह बताये कि घटना के समय कोई ऐसा कानून था जिसके अंतर्गत ऐसी वसूली की कार्रवाही की जा सकती है. निस्संदेह उक्त तिथि में ऐसा कोई कानून अस्तित्व में नहीं था, केवल मायावती के शासनकाल का एक अवैधानिक शासनादेश है जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है.
पूर्व आईजी एवं ऑल इंडिया पीपुल्स फ्रंट के राष्ट्रीय प्रवक्ता एस.आर. दारापुरी प्रेस ने बताया कि उन्हें लखनऊ में 19 दिसबंर 2019 को हुए सीएए विरोधी प्रदर्शन के मामले में दिनांक 18/6/2020 को तहसीलदार सदर का राजस्व संहिता, 2006 की धारा 143(3) के अंतर्गत रुo 64,37,637 का दूसरे कई लोगों के साथ वसूली का नोटिस मिला था, जिसमें कहा गया था कि यदि उन्होंने 7 दिन के अन्दर उक्त धनराशी जमा नहीं की तो उनके विरुद्ध गिरफ्तारी, संपत्ति कुर्की एवं नीलामी की कार्रवाही की जाएगी. इस पर उन्होंने तहसीलदार को उत्तर दिया था कि वर्तमान में उनकी वसूली पर रोक सम्बन्धी याचिका इलाहाबाद हाईकोर्ट में विचाराधीन है और इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कोरोना संकट के दौरान सभी प्रकार की वसूली/कुर्की पर 10 जुलाई तक रोक लगा रखी है, जो अब 31 जुलाई तक बढ़ गयी है. परन्तु इसके बाद भी 7 दिन के बाद तहसीलदार तथा एसडीएम सदर मेरे घर पर आ कर मेरे परिवार वालों को मुझे गिरफ्तार करने तथा मेरे घर को सील/कुर्क करने की धमकी देते रहे. जबकि सर्वविदित है कि मेरी पत्नी काफी लम्बे समय से लीवर, हृदयघात तथा शुगर की मरीज़ है जिसकी हालत अति नाज़ुक है तथा डाक्टरों ने उनको पूरी तरह से बेड रेस्ट दे रखा है परन्तु यह सब बताने के बावजूद भी तहसील के अधिकारी घर आ कर बराबर घुड़की धमकी देते रहे जिससे उनकी हालत में और भी गिरावट आई है.
दारापुरी ने कहा कि तहसील के अधिकारियों की उपरोक्त उत्पीडन की कारवाही को देखते हुए उन्होने तहसीलदार के उपरोक्त नोटिस को दिनांक 5 जुलाई को इलाहाबाद हाईकोर्ट में इस आधार पर चुनौती दी थी, क्योंकि उक्त नोटिस ही अवैधानिक है क्योंकि राजस्व संहिता की जिस धारा 143(3) के अंतर्गत उक्त वसूली नोटिस दिया गया है, राजस्व संहिता में उक्त धारा ही नहीं है. यह नोटिस जिस प्रपत्र 36 में दी गयी है उसमें 15 दिन का समय है जिसे मनमाने ढंग से 7 दिन कर दिया गया. दारापुरी ने कहा कि उनकी इस याचिका की प्रथम सुनवाई 10 जुलाई 2020 को हुयी थी जिसमे कोर्ट ने सरकार से पूछा था कि वह बताये कि घटना के समय कोई ऐसा कानून था जिसके अंतर्गत ऐसी वसूली की कार्रवाही की जा सकती है. निस्संदेह उक्त तिथि में ऐसा कोई कानून अस्तित्व में नहीं था, केवल मायावती के शासनकाल का एक अवैधानिक शासनादेश है जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी जा चुकी है. इस मामले की अगली सुनवाई 14 जुलाई को हुई जिसमें कोर्ट ने वसूली नोटिस को अवैधानिक बताते हुए यह आदेश दिया कि क्योंकि उक्त वसूली नोटिस एडीएम नगर, लखनऊ के मुख्य आदेश दिनांकित 17/2/2020 के अनुक्रम में है, जिसे प्रार्थी द्वारा याचिका संख्या 7899/2020 द्वारा डिवीज़न बेंच में चुनौती दी गयी है, अतः इस मामले को भी वहीँ पर उठाया जाये. अब इस मामले की सुनवाई 17 जुलाई को निश्चित है.
दारापुरी ने कहा कि इस सम्बन्ध में यह भी उल्लेखनीय है कि राजस्व संहिता की धारा 171(ए) में स्पष्ट कहा गया है कि 65 वर्ष की आयु वाले व्यक्ति की गिरफ्तारी नहीं की जा सकती है परन्तु उन्हें आज भी इसकी धमकी दी जा रही है. इसके साथ राजस्व संहिता की धारा 177 में स्पष्ट प्रावधान है वसूली हेतु किसी बकायेदार का रिहायशी घर कुर्क नहीं किया जा सकता. परन्तु इसके बावजूद उन्हें घर कुर्क करने की बराबर धमकी दी जा रही है. उन्होंने कहा कि यह भी उल्लेखनीय है कि उनके विरुद्ध लगाये गए फर्जी मुकदमें में अभी तक किसी भी अदालत में दोष सिद्ध नहीं हुए हैं बल्कि अभी तो मुकदमे की सुनवाई भी शुरू नहीं हुयी है, फिर भी उनके विरुद्ध उत्पीड़न की उक्त कार्रवाही की जा रही है. इसी तरह की अवैधानिक कार्रवाही अन्य कई व्यक्तियों के खिलाफ भी की गयी है और एक रिक्शा चालक को जेल में निरुद्ध किया गया है.
एसआर दारापुरी ने कहा कि उपरोक्त विवरण से स्पष्ट है कि उनके विरुद्ध वसूली की उपरोक्त कार्रवाही पूर्णतया अवैधानिक है तथा यह उनके राजनीतिक उत्पीडन करने के इरादे से की जा रही है. उन्होंने कहा कि वो सरकार को अवगत कराना चाहते हैं कि वो पुलिस विभाग में एक ज़िम्मेदार पद पर रहे हैं और जिस प्रकार से उन्हें अपमानित/प्रताड़ित किया जा रहा है वह अति निंदनीय एवं शर्मनाक है. दारापुरी ने कहा कि यह उम्मीद की जाती है कि उनके विरुद्ध जो भी कार्रवाही करनी है वह कानून के अनुसार की जाये और वर्तमान में चल रही अवैधानिक कार्रवाही पर रोक लगे.
एस आर दारापुरी द्वारा जारी विज्ञप्ति पर आधारित