गोरखपुर के बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऑक्सीजन सप्लाई रुकने से 30 बच्चों की मौत ने किसे नहीं हिलाया होगा। इस मसले का धुआँधार मीडिया कवरेज भी हुआ, लेकिन इस कवरेज के अंदाज़ ने अधिकतर लोगों के दिमाग़ में जो भरा है वह कुछ यूँ है—
गोरखपुर मेडिकल कालेज में बच्चे तो पहले भी मरते रहे हैं !
बेचारे योगी जी मुख्यमंत्री हैं, वे ख़ुद थोड़ी सब कुछ देखते हैं !
योगी को तो पता भी नहीं था कि गैस सप्लाई वाली कंपनी का बकाया है !
वहाँ के इंचार्ज तो डॉ.कफ़ील थे जिन्होंने यह बात योगी जी से छिपा ली !
डॉ.कफ़ील प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं, अस्पताल के ऑक्सीजन सिलेंडर अपने क्लीनिक ले जाते हैं !
डॉ.कफ़ील पर तो रेप का मुक़दमा भी चल रहा है !
वैसे इन धारणाओं के शिकार लोगों से पूछिए कि क्या वे मरने वाले किसी बच्चे या उसके माँ-बाप का नाम जानते हैं तो मुश्किल होगी। वजह यह है कि कुछ शुरुआती रिपोर्ट के बाद सारा मीडिया विमर्श इस बात पर होने लगा कि डॉ.कफ़ील कितने बड़े अपराधी हैं ! इस त्रासदी के के सामने एक नाम को खड़ा कर दिया गया-डॉ.कफ़ील ! पहले दिन मीडिया ने डॉ.कफ़ील को हीरो की तरह पेश किया था जो बच्चों को बचाने में जी-जान से जुटे थे।
लेकिन किसी कफ़ील का हीरो बनना शायद कुछ लोगों को पच नहीं पा रहा था। जल्दी ही ख़बर आने लगी कि डॉ.कफ़ील हीरो नहीं विलेन हैं। ऑक्सीजन सप्लाई को देखना उनकी ही ज़िम्मेदारी थी। वे ही असल गुनाहगार हैं। सच्चाई क्या है, यह मीडिया विजिल ने जानने की कोशिश की।
पहले बात योगी आदित्यनाथ की। प्रेस कान्फ्रेंस में भावुक योगी को देखकर किसी को भी लग सकता है कि आक्सीजन सप्लाई की समस्या के बारे में वाक़ई उन्हें पा नहीं था। लेकिन कंपनी ने 6 अप्रैल को उन्हें पत्र लिखकर सूचित कर दिया था कि मामला कितना गंभीर है।
साफ़ है कि योगी आदित्यनाथ अपनी ज़िम्मेदारी से नहीं बच सकते। पिछले 19 साल से गोरखपुर के सांसद के रूप में वैसे भी उनसे कुछ छिपा नहीं है। पुष्पा सेल ने ऐसे दर्जनों पत्र शासन-प्रशासन को भेजे थे।
और कफ़ील ? ख़बरें आईं थीं कि योगी आदित्यनाथ ने डॉ.कफ़ील को काफ़ी डाँटा था। कहा था कि तीन सिलेंडर लाकर वे मीडिया में हीरो बनने के लिए फोटो खिंचवा रहे थे। बहरहाल, सशस्त्र सीमा बल की रिपोर्ट में कहा गया है कि डॉ.कफ़ील मरीज़ों की मदद के लिए दिन रात जुटे रहे।
यही नहीं, गोरखपुर डी.एम. की रिपोर्ट में भी डॉ.कफ़ील का ज़िक्र नहीं है। इसीलिए इतने हल्ले के बावजूद ना उन्हें बरख़ास्त किया गया और ना ही निलंबित। उनसे बस कुछ जिम्मेदारियाँ वापस ली गईं जो वे अतिरिक्त रूप से निभा रहे थे। लापरवाही बरतने के लिए कई डॉक्टरों का नाम इस रिपोर्ट में है, पर कफ़ील का नहीं।
लेकिन कुछ वेबसाइट और पत्रकार डॉ.कफ़ील को ही ज़िम्मेदार ठहराने में जुटे हैं। प्राइवेट प्रैक्टिस और रेप के आरोप जैसे मामले लगातार उछाले जा रहे हैं, गोया इसका ऑक्सीजन सप्लाई रुकने से कोई रिश्ता है। मीडिया विजिल ने डॉ.कफ़ील का पक्ष जानने की लगातार कोशिश की, लेकिन वे जवाब देने को तैयार नहीं हुए। बहरहाल, उनके कुछ जानने वालों को इस घेरेबंदी से काफ़ी तक़लीफ़ हुई है और उन्होंने बतौर ‘फ्रेंड्स ऑफ कफ़ील’, मीडिया विजिल के सवालों के जवाब में कुछ दावे किए हैं।
इन दावों के मुताबिक़–
1.डॉ कफ़ील ख़ान नहीं, बल्कि बाल रोग विभाग की अध्यक्ष डॉ महिमा मित्तल हैं। डॉ कफ़ील खान vice principal भी नहीं हैं। वे बालरोग विभाग में लेक्चरर हैं।
2.पुष्पा सेल ने सारे पत्र विभागाध्यक्ष, प्रिन्सिपल BRD व DGME को भेजे हैं न की नोडल ऑफिसर (डॉ कफ़ील) को।
3.ऑक्सिजन सप्लाइ की सारी ज़िम्मेदारी डॉ सतीश कुमार (एनेस्थीशिया डिपार्टमेंट के हेड) की है, मेंटेनेंस डिपार्टमेंट वही देखते हैं।
4.डॉ. कफ़ील 2/4/2016 से 8/8/2016 तक अधीक्षक वार्ड 100 थे। अभी वो नोडल ऑफिसर NHM थे, जिसका काम स्टाफ की salary/attendance और प्रस्ताव को भेजना है। NICU की इंचार्ज डॉ.रचना भटनागर हैं ना कि डॉ.कफ़ील।
5. डॉ कफ़ील सिर्फ warmer खरीद कमेटी मे थे और किसी अन्य कमेटी मे नहीं थे (न ही ऑक्सीजन क्रय कमेटी में थे )। Warmer कमेटी द्वारा कोई warmer डॉ.कफ़ील के रहते नहीं खरीदा गया, इसलिए कमीशन या warmer लेने की बात सरासर झूठी है।
6. ऑक्सिजन सप्लाई BRD में लिक्विड ऑक्सिजन से होती है जो की 30 टन के टैंक होते हैं। तो ऑक्सिजन चोरी संभव नहीं है । ऑक्सिजन चोरी की बात सत्य से परे है।
7.डॉ कफील जुलाई 2016 तक प्राइवेट प्रेक्टिस करते थे। अभी उनकी पत्नी जो खुद डॉक्टर हैं, रुस्तमपुर मे बैठती हैं। उनकी प्राइवेट प्रैक्टिससे जुड़े सारी विज्ञपान सामग्री उसी दौर की है। अगस्त 2016 से उन्होंने प्राइवेट प्रैक्टिस बंद कर दी।
8. जो भी केस उनके ऊपर पहले थे फेक हैं, उसपर क्लोज़र रिपोर्ट लग चुकी है जिसे अदालत ने स्वीकार कर लिया है।
साफ़ है कि डॉ.कफ़ील किसी ऐसी प्रशासनिक ज़िम्मेदारी में नहीं थे जिसकी वजह से उन्हें हादसे का ज़िम्मेदार ठहराया जा सके। थोड़ी देर के लिए मान लें कि प्राइवेट प्रैक्टिस का आरोप सही है तो फिर वही क्यों, गोरखपुर में प्राइवेट प्रैक्टिस करने वाले, मेडिकल कॉलेज से जुड़े सभी डॉक्टर दोषी हैं। ख़ुद योगी आदित्यनाथ से यह बात छिपी नहीं होगी कि मेडिकल कॉलेज के कितने डॉक्टर ऐलानिया प्राइवेट प्रैक्टिस करते हैं। यही बात रेप के आरोप के संबंध में भी कही जा सकती है। तमाम डॉक्टरों पर तरह-तरह के आरोप हैं, केवल डॉ.कफ़ील पर लगे आरोप ही क्यों उछाले गए।
ज़ाहिर है, यह एम्बेडेड यानी नत्थी मीडिया का कारनामा है जिसने योगी सरकार के बचाव का रास्ता निकालने में जान लगा दी। वहीं ध्रुवीकरण की राजनीति से सत्ता की सीढ़ियाँ चढ़ रहे लोगों को भी जैसे पता चला कि अस्पताल में कोई डॉ.कफ़ील भी है, उनकी बाँछें खिल गईं। उन्होंने सारा ठीकरा कफ़ील पर फोड़कर मुस्लिमों के ख़िलाफ़ अपने दुष्प्रचार अभियान को नई धार दी और गोरखपुर में बच्चों की मौत के मुददे को डॉ.कफ़ील के कथित अपराधों की चादर से ढंक दिया।
यह बात बिलकुल सही है कि मुस्लिम होने की वजह से कोई निरपराध नहीं हो जाता। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि महज़ मुस्लिम होने की वजह कोई अपराधी भी नहीं हो जाता। निर्दोष को फँसाए जाने पर बोलना ज़रूरी है, बिना इस बात की परवाह किए कि फँसने वाला हिंदू है या मुसलनाम।
गोरखपुर बाल-संहार का असल कारण ऑक्सीजन सप्लाई का रुकना था। जिन-जिन मेज़ों पर इससे जुड़ी फ़ाइल अटकी रही, सज़ा उन सभी को मिलनी चाहिए। इस सिलसिले में कमीशनख़ोरी की चर्चा भी हो रही है, जो काफ़ी गंभीर है। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी यह कहकर बच नहीं सकते कि उन्हें मामले की जानकारी नहीं थी। उन्हे 6 अप्रैल के पुष्पा सेल के पत्र को आईना समझकर अपना चेहरा देखना चाहिए।
बर्बरीक