सृष्टि से बाहर कुछ नहीं तो स्रष्टा कैसे होगा?



चंद्रभूषण

 

क्या स्टीफन हॉकिंग (जन्म 8 जनवरी 1942, मृत्यु 14 मार्च 2018) हमारे दौर के आइंस्टाइन थे? नहीं। अच्छा होगा कि उनके फर्क को हम उनके व्यक्तित्वों से ज्यादा उनके दौरों के बीच सीमित करके देखें। आइंस्टाइन का दौर प्रयोगों के दौरान हुए ब्रेकथ्रू को समझने के क्रम में सृष्टि को देखने का नया नजरिया विकसित करने का था, जबकि स्टीफन हॉकिंग का दौर प्रयोगों के ठहराव से उपजे भौतिकी के सबसे बड़े और लंबे कन्फ्यूजन का था। वह स्थिति पिछले कुछ वर्षों में बदलनी शुरू हो गई है।

खासकर यूरोपीय संघ के साझा प्रयासों से अभी सूक्ष्म और विराट, दोनों स्तरों के निश्चयात्मक प्रेक्षण आने शुरू हो गए हैं। जिन वैज्ञानिकों के पास इन प्रेक्षणों की व्याख्या करते हुए सृष्टि के ज्यादा गहरे नियम खोजने का दम होगा, उन्हें अगले दौर के आइंस्टाइन जैसा दर्जा हासिल होगा। लेकिन स्टीफन हॉकिंग का अपना अलग क्लास है और सैद्धांतिक भौतिकशास्त्रियों में ज्यादातर अल्बर्ट आइंस्टाइन बनने का सपना देखेंगे तो कुछेक स्टीफन हॉकिंग भी जरूर बनना चाहेंगे।

एक धारणा स्टीफन हॉकिंग को वैज्ञानिक के बजाय विज्ञान प्रचारक के रूप में देखने की भी है, जो बिल्कुल गलत है। 1966 में गणितज्ञ रॉजर पेनरोज के साथ मिलकर ब्लैक होलों पर अपने गणितीय काम की शुरुआत करने से लेकर 1990 दशक के मध्य तक स्टीफन हॉकिंग गणित और मूलभूत भौतिकी की संधि पर गंभीरतम काम में जुटे रहे। इसके बीच में उनकी ऑल-टाइम बेस्टसेलर ‘द ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ टाइम’ भी आई, जिसकी कुछ धारणाओं पर वे हाल तक आगे-पीछे होते रहे। लेकिन उन्हें ब्लैक होलों को लेकर खोजे गए उनके चार नियमों के लिए जाना जाएगा, जिनके बाद में कुछ सीमावर्ती अपवाद भी उन्होंने खोजे।

उनके काम के साथ एक बहुत अच्छी और एक बहुत बुरी बात जुड़ी है। अच्छी बात यह कि ब्लैक होल ऐसी चीज है, जहां भौतिकी के दोनों मूलभूत सिद्धांत थिअरी ऑफ रिलेटिविटी (सापेक्षिकता सिद्धांत) और क्वांटम मेकेनिक्स एक ही दायरे में काम करते हैं। बाकी दुनिया के लिए पहले का रिश्ता विराट से और दूसरे का सूक्ष्म से है। बुरी बात यह कि ब्लैक होलों का सीधा प्रेक्षण लगभग असंभव है, लिहाजा उनसे जुड़े किसी सिद्धांत को सही या गलत साबित करने का कोई तरीका नहीं है। लेकिन सूक्ष्म और विराट, दोनों ही स्तरों के प्रेक्षणों की रफ्तार इक्कीसवीं सदी में इतनी तेज हो गई है कि अटकलबाजी अब ज्यादा देर टिकती नहीं।

स्टीफन हॉकिंग का दावा था कि हिग्स बोसॉन (गॉड पार्टिकल) कभी खोजा नहीं जा सकेगा। पीटर हिग्स ने कण भौतिकी के अपने मॉडल के साथ यह प्रस्थापना 1964 में दी थी, जब अपनी असाध्य बीमारी की शिनाख्त के बाद स्टीफन हॉकिंग एक गंभीर अध्येता के रूप में फंडामेंटल फिजिक्स के दायरे में घुसे ही थे। हिग्स ने 1990 के दशक में किए गए हॉकिंग के इस दावे के खिलाफ अपनी तीखी प्रतिक्रिया में कहा था कि इस वैज्ञानिक को इसके काम की तुलना में बहुत ज्यादा तवज्जो मिलती है।

बाद में लार्ज हैड्रॉन कोलाइडर के एक प्रयोग में हिग्स बोसॉन को खोज लिया गया तो हॉकिंग की काफी किरकिरी हुई। हालांकि हॉकिंग ने इस खोज के लिए हिग्स को बधाई दी और कहा कि उन्हें तत्काल नोबेल प्राइज दिया जाना चाहिए, जो अगले साल 2013 में उन्हें मिल भी गया।

आइंस्टाइन के साथ हॉकिंग की तुलना पर वापस लौटें तो हॉकिंग आजीवन आइंस्टाइन के फील्ड इक्वेशंस को ही नई-नई शर्तों के साथ हल करते रहे, जो कि ज्यादातर भौतिकशास्त्रियों का स्थायी काम है। उनकी मान्यताओं के बीच टकराव सृष्टि के प्रारंभ बिंदु को लेकर निकाले गए निष्कर्षों को लेकर था।

आइंस्टाइन की समझ में इस मुकाम पर किसी स्रष्टा की गुंजाइश बनी रहती थी, जबकि हॉकिंग के यहां वह सिरे से खारिज हो जाती थी। हॉकिंग ने साबित किया कि जिस सिंगुलरिटी से सृष्टि का प्रारंभ होता है, उसके गणित में कोई बाहरी बिंदु होता ही नहीं। ऐसे में स्रष्टा के होने की न कोई जगह बचती है, न जरूरत।

इसके अलावा अपनी किताबों में हॉकिंग ने आइंस्टाइन की सामाजिक-राजनीतिक धारणाओं की तीखी आलोचना भी की है, जिसका बतौर वैज्ञानिक उतना ज्यादा मायने नहीं है। आइंस्टाइन जब विज्ञान से दर्शन के दायरे में निकलते थे तो वहां उनकी मुलाकात घोर धार्मिक लोगों से भी होती थी। हॉकिंग के लिए दर्शन विज्ञान के भीतर ही था और बाहर निकल कर अवैज्ञानिक सोच के साथ बिरादराना कायम करने की इच्छा उनमें कभी नहीं देखी गई।

 

चंद्रभूषण वरिष्ठ पत्रकार हैं। नवभारत टाइम्स से जुड़े हैं।