इस तस्वीर को देखकर अधिकतर संघियों-भाजपाइयों को खुशी हो रही होगी, कुछ कांग्रेसियों को और कुछ मीठा बोलनेवाले सिविल सोसाइटी के लोगों को दुख भी हो रहा होगा, लेकिन यकीन मानिए मुझे बहुत दुख नहीं हो रहा है।
कारण बहुत ही साफ है। पी. चिदंबरम ने अपनी पूरी जिंदगी कॉरपरेट घरानों की सेवा में लगा दी। वित्त मंत्री के रूप में उसने देश के सारे संसाधनों को बाजार और कॉरपरेट घराने को कौड़ी के भाव लुटा दिया। वित्त मंत्री के रूप में ही उसने जनता को कंगाल बना दिया। गरीब जनता की बात तो छोड़ ही दीजिए, वह तो सबकी रक्षा के लिए सिर्फ कुर्बानी देने के लिए है, सजग मध्यम वर्ग का भी सबकुछ छीनकर उन्होंने अमीरों और पूंजीपतियों में बांट दिया।
देश भर में आदिवासियों को सबसे अधिक उन्हीं के समय में लूटा गया। अगर दूसरे शब्दों में कहें तो चिदंबरम की हर धड़कन पूंजीपतियों के हित की सुरक्षा में लगी रही। यही कारण है कि जिस दिन उन्हें गिरफ्तार किया गया उसके अगले दिन शेयर बाजार 800 प्वाइंट से अधिक गिर गया था!
उन्होंने गृह मंत्री के रूप में जगह-जगह फर्जी इनकांउटर करवाए। जनता के हितों के लिए लड़ने वालों को जेल में डाल दिया गया। वैसे बिनायक सेन को छत्तीसगढ़ में बीजेपी की रमण सिंह की सरकार ने गिरफ्तार किया था, लेकिन जेल के भीतर रखे जाने का आधा श्रेय भी चिदबंरम को जाता है। ऑपरेशन ग्रीन हंट की शुरुआत चिदंबरम ने की थी, माओवादी नेता कॉमरेड आजाद को बातचीत के बीच छल से चिदबंरम ने ही मरवाया था। कुख्यात फर्जी बटला हाउस इनकाउंटर के लिए भी चिदंबरम सीधे तौर पर जवाबदेह रहे हैं।
पिछले तीस वर्षों में देश के आर्थिक मामले में जितना भी बुरा हुआ है इसके लिए किसी न किसी रूप में चिदबंरम जवाबदेह रहे हैं। नई आर्थिक नीति की शुरूआत भले ही पीवी नरसिंहराव के समय में हुई थी, लेकिन उसे युद्धगति से आगे बढ़ाने में मनमोहन सिंह और बाद के दिनों में चिदबंरम जवाबदेह थे।
उनकी नीतियों ने देश में हाशिये पर रहने वाले लोगों को हाशिये से भी बाहर निकाल दिया। इसका सबसे अधिक भयावह परिणाम दलितों, पिछड़ों, मुसलमानों और सभी तरह के गरीबों को भोगना पड़ा। बीजेपी की जीत में इस समुदाय में पैदा हुई हताशा ने भी योगदान दिया है।
पी. चिदबंरम 1985 से लेकर आज तक, मतलब पैंतीस साल के राजनीतिक जीवन में लगभग पच्चीस वर्षों तक भारत सरकार में मंत्री रहे हैं। अंदाजा लगाइए, अगर वह व्यक्ति कानून को थोड़ा भी आम जनता के पक्ष में लचीला बनाया होता तो कानून इनके खिलाफ जाता? इसका बहुत ही साफ कारण है कि उसने कभी सोचा ही नहीं कि कोई ताकत इनके खिलाफ जाकर उन्हें भी जेल भेज सकती है!
फिर भी, जिस रूप में इन्हें तिहाड़ जेल में डाल दिया गया है वह सिर्फ यह बताने के लिए नहीं किया गया है कि उसने न्यूज एक्स वाले मामले में पैसा खाया है। यह गिरफ्तारी यह बताने के लिए की गयी है कि जब चिदंबरम को हम गिरफ्तार कर सकते हैं तो तुम जैसे चींटियों की क्या औकात है!
लेकिन जो-जो व्यक्ति उनकी गिरफ्तारी के पीछे है, उनमें से एक को छोड़कर (क्योंकि भारतीय कानून व्यवस्था में वह चाहे वर्तमान हो या फिर निवर्तमान, उसे गिरफ्तार करना लगभग असंभव है), बाद की सरकार, अगर इतनी ही बदले की भावना से काम करेगी तो उन व्यक्तियों को कौन बचा पाएगा?
इंतजार कर रहा हूं उस दिन का जब वैसा हो! वैसे, यकीन मानिए, मैं खुद प्रतिशोध में विश्वास नहीं रखता।