गहरा राज़: गुजरात के बीजेपी नेता हरेन पंड्या की हत्या आख़िर किस ने की ?



आशुतोष तिवारी


हरेन पंड्या की हत्या से जुड़ी खबरें फिर से जीवित हो उठी हैं। पिछले दिनों सोहराबुद्दीन केस के गवाह आजम खान ने अदालत के सामने गवाही दी है कि पंड्या को मारने की सुपारी पूर्व आइपीएस अधिकारी  डीजी वंजारा द्वारा सोहराबुद्दीन को दी गयी थी। दिलचस्प बात यह है कि यह वही डीजी वंजारा हैं जिन्हें हरेन पंडया की हत्या की जांच का शुरूआती जिम्मेदारी दी गयी थी। वंजारा स्वयं 21 सितम्बर 2013 को सीबीआई के सामने हरेन पंडया की हत्या को ‘राजनीतिक साजिश’ बता चुके हैं। गवाह आजम खान का बयान इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि वह सोहराबुद्दीन के दांये हाँथ तुलसी प्रजापति के साथ साबरमती जेल में भी रहा है।

गुजरात के गृह मंत्री रह चुके भाजपा के नेता हरेन पंडया की हत्या 26 मार्च 2003 को कुछ अज्ञात हमलावरों ने कर दी थी। यह बताते हुए कि यह आतंकवाद का स्पष्ट मामला है , पोटा अदालत ने  हरेन पंड्या की हत्या के लिए 12 लोगों को सजा सुनाई थी।  सीबीआई की चार्जशीट के मुताबिक हरेन पंड्या की हत्या गुजरात के दंगों का बदला लेने के लिए की गयी थी।  इसी मामले में 29 अगस्त 2011 को गुजरात उच्च न्यायलय ने जो फैसला दिया, वो चौंकाने वाला था। सीबीआई को फटकारते हुए गुजरात उच्च न्यायालय ने पोटा अदालत द्वारा दोषी ठहराए गए सभी 12 आरोपियों को हत्या के आरोप से बरी कर दिया।

उच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा कि  “ये पूरी जांच शुरू से ही गड़बड़ तरीके से, और बहुत संकीर्ण दृष्टिकोण से की गयी है। जाँच कर रहे अधिकारियों को अपनी अयोग्यता के लिए जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए,  जिसके परिणामस्वरूप, कई संबंधित व्यक्तियों के साथ अन्याय और भारी उत्पीड़न किया गया, और सार्वजनिक संसाधनों और अदालतों के सार्वजनिक समय की भारी बर्बादी की गयी। ” अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में लम्बे समय से ठंडा पड़ा हुआ है।

कौन थे हरेन पंड्या

एक सम्पन्न ब्राम्हण परिवार में जन्मे,  पेशे से मैकेनिकल इंजीनियर, अपने पिता विट्ठल भाई की तरह बचपन से ही संघ के करीब, गुजरात भाजपा के एक कद्दावर नेता हरेन पंडया ने अपना  राजनीतिक  करियर   1992 के गुजरात विधानसभा चुनावों से शुरू किया ।  पहली ही दफा एलिसब्रिज निर्वाचन क्षेत्र से  उन्होंने 42,000 मतों के अंतर से विधानसभा चुनाव जीता।  इसके बाद इसी निर्वाचन क्षेत्र से उम्मीदवार रहते हुए उन्होंने 1995 और 1998 के विधानसभा चुनाव भी भारी अंतर से जीत लिए। भाजपा के लिए यह एक सुरक्षित सीट बन गयी थी। वह गुजरात में  तत्कालीन मुख्यमंत्री केशूभाई पटेल के दाएं हाथ बन कर उभरे और  केशु भाई पटेल की ही  सरकार में उन्हें  1998-2001 के दौरान गुजरात के गृह मंत्री  बनने का मौका भी मिला।

तभी गुजरात भाजपा में  केशु भाई पटेल और शंकर सिंह वाघेला के बीच मतभेद तेज हो गये। इस अंतरकलह की वजह से नरेंद्र मोदी को दिल्ली भेज दिया गया। वे तब संगठन देखते थे। बाद में अक्टूबर 2001 में नरेंद्र मोदी को गुजरात का मुख्यमंत्री बनाया गया।  उन्होंने मुख्यमंत्री बनने के बाद हरेन पंड्या को दरकिनार करना शुरू कर दिया क्योंकि गुजरात की राजनीति में हरेन को केशु भाई पटेल का करीबी समझा जाता था।  पहले तो  पंड्या को  कोई भी मंत्रालय नहीं दिया गया।  बाद में, जब मोदी ने अपनी कैबिनेट का विस्तार किया, तो पंड्या को राजस्व के राज्य मंत्री का पद दिया।

नरेंद्र मोदी से सीट को ले कर विवाद

फरवरी 2002 में नरेंद्र मोदी विधानसभा चुनाव लड़ने के लिए एक सुरक्षित सीट की तलाश कर रहे थे। अहमदाबाद में एलिसब्रिज, पंड्या का निर्वाचन क्षेत्र भाजपा के लिए सबसे सुरक्षित सीट माना जाता था।  मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति के बाद नरेंद्र मोदी यहीं से चुनाव लड़ना चाहते थे लेकिन पंड्या ने अपनी सीट छोड़ने से इनकार कर दिया।  उन्होंने यह  भी कहा कि अगर कोई नया चेहरा यहाँ से चुनाव लड़ता तो वह इसे छोड़ सकते थे। नरेंद्र मोदी को मजबूरन राजकोट से चुनाव  लड़ना पड़ा जहां से वह विजयी भी हुए। इसी घटना से पहली बार नरेंद्र मोदी और हरेन पंड्या की अनबन सार्वजनिक हुई।

गुजरात  के दंगे और हरेन पंड्या 

27 फरवरी 2002 को गोधरा स्टेशन पर साबरमती एक्सप्रेस के एक डिब्बे में आग लगी जिसमे 59 लोग मारे गए | मृत लोगों में ज्यादातर कारसेवक थे जो अयोध्या से लौट रहे थे।  उसी दिन शाम को  मुख्यमंत्री आवास पर एक  बैठक हुयी जिसमे नरेंद्र मोदी भी शामिल हुए। इस बैठक में क्या हुआ ये आज तक जांच का विषय बना हुआ है।  गुजरात में बतौर आईपीएस तैनात संजीव भट्ट के मुताबिक़  बैठक में नरेंद्र मोदी ने कहा था कि ‘अगर हिन्दुओं में प्रतिक्रिया होती है, तो होने दिया जाए।’ इसी  27 तारीख की बैठक में एक और बड़ा फैसला हुआ था । फैसला था गोधरा से मरे हुए लोगों की लाशें  अहमदाबाद ले जाने का।  पुलिस और प्रशासनिक अधिकारियों ने इसका विरोध किया था।   मोदी सरकार में मंत्री हरेन पंड्या ने भी इसका विरोध किया था। पत्रकार और ‘द नमो स्टोरी -पोलिटिकल लाइफ’ के लेखक किंगसुक नाग के मुताबिक़ हरेन पंड्या ने उन्हें बताया था कि जब लाशों को उन्होंने अहमदाबाद लाने का विरोध किया तो मोदी मिनिस्ट्री के मंत्री एक स्वर में उन पर चिल्लाने लगे। उन सभी का मानना था कि  इससे अहमदाबाद में होने वाली प्रतिक्रिया का फायदा बीजेपी को अगले चुनाव में होगा।’  इस दौरान नरेंद्र मोदी  मोदी भी वहां मौजूद थे। लाशें अगले दिन अहमदाबाद में घुमायीं गयीं और इसके बाद दंगे हुए।

गुजरात दंगे की जांच कर रहे नागरिक ट्रिब्यूनल के सामने एक मंत्री की गवाही  

दंगो की शुरुआत के तीन महीनें बाद मई 2002 के दौरान जस्टिस वीआर कृष्ण अय्यर के नेतृत्व में एक Concerned citizen tribunal ( CCT) का गठन किया गया।  यह एक संवैधानिक निकाय नहीं था। यह एक स्वतंत्र खोजी पैनल था जो कि सच सामने लाने के लिए गुजरात दंगों के कारकों की पड़ताल कर रहा था। इसी के समक्ष  कैबिनेट के एक  मंत्री ने  अहमदाबाद में मानवाधिकार संगठन के दफ्तर  जाकर गुप्त रूप से अपना बयान दर्ज कराया था। यह बयान  बाद में मीडिया में लीक हो गया।  2 जून 2002 को  आउटलुक ने  ‘A plot from the Devil’s Lair’  शीर्षक से एक लेख छापा जिसमे कहा गया था कि आउटलुक के पास जो सूचना है इससे पता चलता है कि नरेंद्र मोदी कैबिनेट के ही एक वरिष्ठ मंत्री ने सरकार  की पोल खोल दी है। मंत्री ने ट्रिब्यूनल को बताया कि ’27 फरवरी की रात को हुयी यह बैठक दो घंटे तक चली।  मीटिंग में  मुख्यमंत्री  ने स्पष्ट किया था कि  वीएचपी ने अगले दिन जो बंद बुलाया है उसमे गोधरा के लिए न्याय होगा। उन्होंने पुलिस को भी आदेश दिया था  कि उन्हें कल  “हिंदू प्रतिक्रियावादियों ” के रास्ते में नहीं आना चाहिए। इस अनाम मंत्री ने ट्रिब्यूनल को यह भी बताया कि पुलिस कंट्रोल  रूम में 28 फरवरी को दो कैबिनेट मंत्री भी मौजूद थे। वह न सिर्फ कण्ट्रोल रूम संभाल रहे थे बल्कि व्यक्तिगत रूप से कार्यवाही की निगरानी भी कर रहे थे। बाद में सरकार को यह पता चल गया  था कि ट्रिब्यूनल के समक्ष बयान देने वाले यह मंत्री हरेन पंड्या थे | राज्य खुफिया विभाग के महानिदेशक बी.श्रीकुमार के मुताबिक यह जानने के लिए नरेंद्र मोदी द्वारा हरेन का फोन टैप करने के लिए कहा गया था।

हरेन का इस्तीफा और राष्ट्रीय कार्यकारिणी में उनका बुलावा 

4 अगस्त 2002 को पार्टी अध्यक्ष राजेंद्रसिंह राणा ने पंड्या को  ‘कारण बताओ नोटिस’ भेजा। उनसे पूछा गया कि वह समझाएं कि उन्होंने ‘नागरिक ट्रिब्यूनल’ के सामने बयान क्यों दिया है? 6 अगस्त 2002 को हरेन पंड्या ने गुजरात मंत्रालय से इस्तीफा दे दिया बल्कि कहा जाता है कि उन्हें ऐसा करने  के लिए कहा गया था।  मंत्रालय से पंड्या के इस्तीफे के बाद हरेन की परेशानियां कम नहीं हुईं। दिसंबर 2002 में होने वाले विधानसभा चुनावों में, पंड्या ने जिस निर्वाचन क्षेत्र का 10 साल से प्रतिनिधित्व किया था , वहाँ से उन्हें टिकट देने से मना कर दिया गया। आरएसएस और भाजपा के नेतृत्व ने सामूहिक रूप से इस पर आपत्ति जताई और मोदी से नरमी दिखाने के लिए  कहा लेकिन मोदी नरम नहीं पड़े।  आखिरकार 24 नवंबर को हरेन पंड्या को ही गुजरात चुनाव नहीं लड़ने के लिए मना लिया गया।

पंड्या को पार्टी के लिए मूल्यवान मानने वाले बीजेपी नेताओं ने उन्हें राष्ट्रीय कार्यकारिणी में भेजने का फैसला लिया। पार्टी अध्यक्ष ने 25 मार्च 2003  को दिल्ली बुलाने और आधिकारिक रूप से राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शामिल करने के लिए  हरेन पंड्या को एक फैक्स  भेजा | हरेन पंडया कभी दिल्ली नहीं जा पाए क्योंकि फैक्स मिलने के   ठीक एक दिन बाद 26 मार्च 2003 को, हरेन पंड्या की अहमदाबाद में दिनदहाड़े हत्या कर दी गयी। हत्या के बाद सीबीआई ने इसकी जांच की और 12 लोगों को चार्जशीट में दोषी माना.।पोटा अदालत ने उन्हें दोषी माना लेकिन गुजरात उच्च न्यायालय ने उन्हें बरी कर दिया। हरेन के परिवार का मानना था कि उनकी हत्या एक राजनीतिक साजिश के तहत हुई। इस हत्या को ले कर तमाम ऐसे सवाल भी हैं जो जिनके जवाब अभी तक नहीं मिले हैं।

कुछ अनुत्तरित सवाल  

  • 9 दिसम्बर2004 को एक चौंका देने वाली खबर आई।  हरेन पंड्या की हत्या के मुख्य साजिशकर्ता  बताये गये मुफ़्ती मोहम्मद पतंगियाँ की पत्नी रुकिय बानो दरियापुर स्थित अपने घर से ‘गायब’ हो गईं। उनकी पत्नी का होना इसलिए भी अहम था कि वह मुख्य साजिशकर्ता  तक पहुँचने का जरिया बन सकती थीं। मुफ़्ती मोहम्मद को तब तक सिटी के दो अपराधियों – सोहेल खान पठान और रसूल खान पार्ती  सहित फरार घोषित किया जा चुका था। उनके परिवार पर ऐसे वक्त में नजर रखना बेहद जरुरी था। अगर जांच एजेंसी  इतनी सतर्क थी तो मुख्य साजिशकर्ता की पत्नी अपने ही घर से कैसे गायब हो गयी, इसकी खबर आज तक किसी को नहीं है। मुफ्ती सुफियान भी हत्या के एक सप्ताह के भीतर, जबकि वह जाहिर तौर पर अभी भी पुलिस की निगरानी में  था,  देश से बाहर निकल गया। वह कहां गया? ये कोई नहीं जानता।

इस मामले की जांच में सबसे बड़ा सवाल क्राइम सीन को लेकरहै।  आज तक यह पता नहीं चल पाया कि हरेन पंड्या की हत्या ठीक किस जगह पर की गई थी। पुलिस द्वारा बताये गये क्राइम सीन और पोस्टमार्टम रिपोर्ट की तमाम बातें विरोधाभासी थीं, जिनमे से कुछ यहाँ दी जा रही हैं –

1-      पोस्टमार्टम रिपोर्ट में चोट नंबर 5, जिस गोली की वजह से हरेन की हत्या हुई, वह पंड्या के अंडकोष के निचले हिस्से से शरीर में घुसी, और ऊपर की तरफ गयी। क्या कार में बैठे एक आदमी को इस तरह मारना संभव है– वो भी  एक छोटी सी मारुति 800 में, पंड्या जैसे छह फुट लम्बे भारी भरकम आदमी को मारना।

2-      पंड्या को गर्दन, अंडकोष की थैली, बांह और सीने पर गोलियाँ मारी गयीं थीं। कार और कम से कम उनकी आगे वाली सीट को खून से भीग कर एकदम लहू-लुहान हो जाना चाहिए था। फिर भी फोरेंसिक रिपोर्ट में कार में खून के निशान का कोई सबूत नहीं मिला।

3-      जब पंड्या के शरीर को लॉ गार्डन में कार से बाहर ले जाया गया था, तो पैर में जूते थे, पर जब लाश को पोस्टमार्टम के लिए ले जाया गया तो  जूते गायब थे। उनके होने का कोई रिकॉर्ड नहीं है।

4-      हरेन की हत्या मामले में सत्य तक पहुँचने के लिए हो रही जांच में उनके फोन के कॉल रिकॉर्ड एक महत्वपूर्ण कड़ी हो सकते थे। लेकिन  जब जांच हुयी तो उस दौरान के कॉल रिकॉर्ड मौजूद ही नहीं थे। जबकि उसके ठीक पहले के कॉल रिकोर्ड मौजूद थे।

  • सीबीआई ने अपनी जांच में बताया है कि गोधरा के दंगो का बदला लेने के लिए हरेन पंड्या की हत्या की गयी।लेकिन तथ्य यह है कि हरेन ही गुजरात सरकार में वह एकलौते मंत्री थे जिन्होंने गुप्त रूप से कन्सर्न सिटिजन ट्रिब्यूनल के सामने दंगों के बारे में डिटेल में अपना बयान दर्ज कराया था। उन्होंने कैबिनेट की बैठक में भी इस बात की  वकालत की थी कि गोधरा नरसंहार के पीड़ितों के शवों  को अहमदाबाद नहीं लाया जाना चाहिए  क्योंकि इससे साम्प्रदायिक तनाव पैदा होगा। ट्रिब्यूनल  को दिए साक्षात्कार में जब उनसे पूछा जाता है कि यदि आप गृह मंत्री होते तो क्या करते? तब वह जवाब देते हैं कि वह गोधरा के दंगों को गोधरा तक ही सीमित  रखते|  ऐसा व्यक्ति गोधरा का बदला लेने के लिए बनाई गयी हिट लिस्ट में होगा, यह थ्योरी आसानी से पचती नहीं है।
  • डीजी वंजारा, जिन्होंने इस केस की शुरूआती जांच की थी, ने21 september 2013 को सीबीआई के सामने एक चौंका देने वाला बयान दिया। उस समय वह सोहराबुद्दीन केस  में जेल में बंद थे और अमित शाह और नरेंद्र मोदी से जमानत तक न मिल पाने की वजह से खासे नाराज चल रहे थे।  वंजारा ने सीबीआई को बताया कि हरेन पंड्या की हत्या एक राजनीतिक साजिश के तहत हुई थी। बाद में डीजी वंजारा को जमानत मिली और अब वह सीबीआई अदालत सोहराबुद्दीन मामले में बरी किये जा चुके हैं।
  • पंडया की हत्या के ठीक पहले ला गार्डेन का रेहड़ी मार्केट बंद करा दिया गया था।टिकट से वंचित रहने के बाद उनकी सिक्योरिटी भी हटा ली गयी थी। पंडया की हत्या के ठीक एक दिन पहले उन्हें दिल्ली आ कर राष्ट्रीय कार्यकारिणी में सक्रिय रूप से शामिल होने का फैक्स मिला था । आउटलुक को दिए गए साक्षात्कार में हरेन पंड्या ने साफ़ कहा था कि यदि उनका नाम ट्रिब्यूनल को बयान देने वाले मंत्री के रूप में सामने आया तो उनकी हत्या हो सकती है। इसीलिए उन्होंने आउटलुक से उनके छिपे हुए परिचय के रूप में ‘एक बीजेपी नेता’ या ‘एक मंत्री तक लिखने से मना किया था । हालांकि सरकार को फोन टैपिंग के जरिये यह पता चल गया था कि वह‘बागी मंत्री’ हरेन पंडया ही हैं। संयोगवश  हरेन पंड्या नाम सरकार के खिलाफ गवाही देने वाले मंत्री के रूप में उजागर भी हुआ और उनकी हत्या भी हो गयी ।

हरेन पंड्या की हत्या किसने की ?

यह मामला अभी अदालत में है इसलिए पुख्ता  तौर पर क़ानूनी रूप से किसी को  दोषी नहीं ठहराया जा सकता है। पोटा अदालत ने भी जिन लोगों को दोषी पाया था वह सभी गुजरात हाई कोर्ट द्वारा हरेन की हत्या के चार्ज से बरी किये जा चुके हैं। यदि आरोपी बनाये गये सभी लोग बरी हो गए हैं तो सवाल उठता है कि आखिर हरेन पंड्या को किसने मारा था?

इस सवाल का एक जवाब यह भी हो सकता है जिस पर विट्ठल पंड्या को पूरा यकीन था।  हरेन पंड्या को कोई क्यों मारेगा का जवाब एक सवाल में यह भी हो सकता है कि हरेन पंड्या की मौत से  सबसे ज्यादा कौन लाभान्वित होगा? उनके पिता का मानना था कि यह सीधे नरेंद्र मोदी थे। नरेंद्र मोदी आखिर हरेन की हत्या क्यों कराएँगे? उनके पिता विट्ठल पंड्या के अनुससार  हरेन ने सिटीजन ट्रिब्यूनल के समक्ष बयान दिया था। वह नरेंद्र मोदी के तानशाह रवैये को समझ चुके थे। डी.जी वंजारा, जो कि स्वयं इस मामले में शुरूआती जांचकर्ता थे, के अनुसार हरेन की हत्या एक राजनीतिक साजिश  थी।  यह  साजिश किसने की थी? आखिर राजनीती में उस वक्त हरेन पंड्या से किसको खतरा हो सकता था, जिसने उनके खिलाफ राजनितिक साजिश कर दी?  हम सिर्फ हरेन पंडया द्वारा आउटलुक को कहे गये आखिरी शब्द याद कर सकते हैं –

“They are such guys that they’ll extract my name from you. Be careful. Violence has just ended, but it may flare up again.” (वे ऐसे लोग हैं जो हमारा नाम आप से निकलवा लेंगे। सावधान रहें। हिंसा अभी खत्म हुई है लेकिन यह फिर से भडक सकती है।”)

 

लेखक युवा पत्रकार हैं।