दिल्ली के कांस्टिट्यूशन क्लब में बुधवार को ऑल इंडिया बैंक ऑफिसर्स कनफेडरेशन (एआइबीओसी), जनांदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय (एनएपीएम) और न्यू ट्रेड यूनियन इनीशिएटिव (एनटीयूआइ) की ओर से सरकारी बैंकों को बचाने के उद्देश्य से एक कार्यक्रम आयोजित किया गया। इस कार्यक्रम में नए एफआरडीआइ बिल (फाइनेंशियल रिजॉल्यूशन एंड डिपॉजिट इंश्योरेंस बिल) के खतरों पर बात की गई और इस मौके पर बिल की एक आलोचनात्मक रिपोर्ट जारी की गई। मोदी सरकार इस बिल को संसद में लाना चाहती है और माना जा रहा है कि यह पास भी हो जाएगा। इस बिल का महत्व इससे जान पड़ता है कि इस आयोजन के वक्ताओं में सीपीआइ के डी. राजा, सीपीएम से सीताराम येचुरी, उषा रामनाथन, प्रो. मीरा नांगिया, गौतम मोदी समेत तमाम वित्तीय विशेषज्ञ शामिल थे।
इस बिल की सार्वजनिक चर्चा अभी शुरू नहीं हुई है, लेकिन गिरीश मालवीय ने इसके बारे में एक संक्षिप्त नोट लिखा है और अखबारों ने इसके बारे में छापा है। लोकप्रिय भाषा में इस बिल को ‘बेल-इन’ के नाम से पुकारा जा रहा है। प्रस्तुत है मालवीय की टिप्पणी और साथ में संलग्न है पीडीएफ प्रारूप में बिल की जारी की गई आलोचना – संपादक
गिरीश मालवीय
आपने अकसर समाचारपत्रों में पढ़ा होगा या न्यूज चैनलों पर एक शब्द बार-बार सुना होगा- ‘बेलआउट पैकेज’। जैसे एयरइंडिया को बेलआउट पैकेज दिया जाएगा या आर्थिक संकट से जूझते ग्रीस को बेलआउट पैकेज देने पर सहमति आदि-आदि।
पर अब एक ओर शब्द को भी बार-बार सुनने की आदत डाल लीजिए और वह शब्द है ‘बेल इन’।
कहा जा रहा है मोदी सरकार एक नया बिल लेकर आई है जो सदन में प्रचण्ड बहुमत के कारण आसानी से पास भी हो जाएगा। इस बिल का नाम हैं Financial Resolution and Deposit Insurance (FRDI) बिल।
यह बिल बैंक और जमाकर्ता के संदर्भ में आपकी सारी समझ में आमूलचूल परिवर्तन ला देगा। इसमें एक बड़ा विशिष्ट क्लॉज दिया गया है ‘bail-in’. इस क्लॉज़ के अनुसार बैंक अपनी जिम्मेदारियों को समाप्त घोषित करने या उसका रूप बदलने को स्वतंत्र हो जाएंगे। अर्थात वे चाहें तो आपके बचत खाते के जमा (जिम्मेदारी) को खारिज कर दें या फिक्स्ड जमा को शेयर आदि में बदल देंगे, बिना आपकी मर्जी के…!
दि हिन्दू में प्रकाशित लेख की इन पंक्तियों पर जरा गौर फरमाएं:
‘The ‘bail-in’ clause changes the nature of relationship between the customer and the bank. It would mean that money is no longer safe in a bank. An account would lose its sovereign guarantee and instead become an investment. Putting away money in a bank would be akin to buying shares of a company or units of a mutual fund. The customer would need to monitor the level of toxicity of his bank with respect to its losses and accordingly keep switching bank accounts’.
नहीं नहीं, अपनी आंखों को मत मसलिए, यह बिल्कुल सच है…
जब काले धन के खिलाफ नोटबन्दी जैसी सर्जिकल स्ट्राइक की गई थी और आप प्रसन्नचित होकर अपनी बीवी का बचाया हुआ ‘काला धन’ और बच्चों की गुल्लक फोड़ कर रखा हुआ पैसा बैंको में जमा करवा रहे थे…
जब रविवार को बैठ कर आप ‘मन की बात’ सुन रहे थे….
जब भीड़ भरी रैलियों में मोदी-मोदी के नारे लग रहे थे….
…तब सरकार यह ड्राफ्ट तैयार कर रही थी और बड़े-बड़े उद्योगपतियों को बेलआउट पैकेज देने के लिए आपके खून पसीने की कमाई को ‘बेल इन’ करने की तैयारी कर रही थी।
FRDI बिल पर 29 नवंबर को दिल्ली में जारी आलोचनात्मक रिपोर्ट को यहां पढ़ें और डाउनलोड करें
FRDI critique Draft Nov 29 2017