व्यालोक
यह हंसी शैतान की है। राक्षस की है। ड्रैकुला की है। आदमी के खाल में छिपे भेड़िए की है।
यह हंसी 12 करोड़ बिहारियों के मुंह पर झन्नाटेदार तमाचा है। यह तमाचा बताता है कि बिहार में रीढ़विहीन केंचुए मात्र हैं, सरीसृप हैं, मनुष्य अब नहीं बचा है।
यह हंसी बिहारियों के मनुष्यत्व का निषेध है। यह हंसी इस बात की गर्वपूर्ण घोषणा है कि बिहार में अंधे-बहरे-लूले-लंगड़े जानवर रहते हैं, मनुष्य नहीं। यह अर्थपूर्ण तर्क है कि बिहार में नागरिक-समाज या नागरिक-प्रशासन नाम की कोई चीज नहीं बची है।
यह हंसी बिहार के सरमायेदारों को चेतावनी है, यह हंसी बिहार से सभ्यता के उठ जाने का संकेत है, यह हंसी बिहार की चेतना और देशना पर, बिहार की मनीषा और चिंतना पर सबसे बड़ा प्रहार है, सबसे घातक आक्रमण है।
यह हंसी उद्घोषणा है कि बिहार मरने के लिए अभिशप्त है…Bihar is destined to be doomed. यह हंसी दीवार पर लिखी इबारत है कि बिहार में शासन के नाम पर अपराधियों, घोटालेबाजों, हत्यारों, बलात्कारियों को परोक्ष या प्रत्यक्ष समर्थन देनेवाली सरकार है।
यह हंसी उन सभी की हंसी उड़ानेवाला अट्टहास है, जो खुद को बिहार में पत्रकार, लेखक, चिंतक, विचारक या बौद्धिक कहते हैं। उनको चुल्लू भर पानी में डूब मरना चाहिए जो इस हैवान के खिलाफ सामूहिक तौर पर इकट्ठा होकर एक साथ भर्त्सना तक नहीं कर सके हैं।
यह हंसी जद यू-भाजपा सरकार के सभी नुमाइंदों, कारकूनों और समर्थकों के मुंह पर जोरदार थूक है, जो अब तक किन्तु-परन्तु और हां-ना में उलझे हुए हैं।
यह हंसी जात के नाम पर पतन के गहरे गर्त में जा गिरे बिहारी समाज के काले चेहरे का आईना है, यह हंसी इस बात का शंखनाद है कि बिहार में कोई भी कहीं भी महफूज नहीं है।
यह हंसी उस दंभ से उपजी है, जो इस हैवान की बेटी के मोर्चा संभालने से उपजी है, इस शैतान की बीवी के बवाल काटने से पैदा हुई है। यह हंसी है अखबार या मीडिया के असली चेहरे की, जिसे एक रक्काशा के पांवों की पाजेब की तरह ये ब्रजेश सेठ जैसे दल्ले जब चाहे खनकाते हैं, जब चाहे रौंदते हैं।
यह हंसी हमारे समाज का सच है। यह हंसी हमारे समाज का कालापन है। यह हंसी मेरे, आपके, हम सबके जिंदा लाशें होने का सबूत है।
हम जी नहीं रहे, थेथरई कर रहे हैं।
यह हंसी हम सबको ज़ोरदार जवाब है… शैतान के नुमाइंदों का। हमारे भगवान की पराजय का यह सीधा संकेत है।
(विशेष नोटः जब शहाबुद्दीन जेल से बाहर निकला था, तो जिस तरह की प्रतिक्रिया बिहार के नागरिक समाज ने दी थी, क्या इस बार वैसा कुछ हुआ है? अगर नहीं तो क्यों? मेरे कानों तक यह आरोप क्यों आ रहा है कि ब्रजेश ठाकुर के लिए भाजपा के अति प्रतिष्ठित और वरिष्ठ नेता का फोन आया था, क्यों इस पर अगर-मगर की बात की जा रही है। क्यों, क्यों, क्यों?)
लेखक बिहार के तीक्ष्ण पत्रकार हैं