रामलीला मैदान में आज राम रथयात्रा के समापन पर विश्व हिंदू परिषद ने मंदिर बनाने की मांग को लेकर बड़े जुटान की योजना बनायी है।इस जुटान में दुर्भाग्यवश आरएसएस के लोग शामिल नहीं हो रहे हैं। उत्तर प्रदेशमें दो जिलों मेरठ और आगरा से बड़ा हुजूम आ रहा है लेकिन संघ की शाखाएं आज नियमितलगी हैं और कम से कम गाजियाबाद से जा रहे जत्थे में संघ के लोग शामिल नहीं हैं।क्या वजह है विहिप और संघ के बीच इस मनमुटाव की?
अयोध्या में हुए लोगों के जमावड़े के बाद ज़हनमें बार बार सवाल आ रहा है कि आखिर केंद्र में साढ़े चार साल से हिंदूवादी मोदीसरकार और उत्तर प्रदेश में हिन्दू अतिवादी योगी आदित्यनाथ की सरकार होने के बावजूदइतना हंगामा करवाने की ऐसी क्या आवश्यकता पड़ गयी कि अचानक ही देखते-देखते सभीहिन्दू अतिवादी संगठन राम मंदिर और बाबरी मस्जिद के मुद्दे को लेकर उबल पड़े. यदिमंदिर ही बनवाना है तो अयोध्या में इतना हंगामा करने के बजाय संसद का घेराव कियाजाता या सुप्रीम कोर्ट के सामने प्रदर्शन किया जाता.
इसके उलट यहां तो कुछ अलग ही मंज़र देखने को मिल रहा था. भारत के सबसे बड़े हिंदूवादी संगठन आरएसएस के प्रमुख मोहन भागवत ने अचानक राम मंदिर को लेकर केंद्र सरकार पर दबाव बनाने के लिए एक बयान जारी किया जिसमे उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार को कानून बना कर मंदिर बनाने का रास्ता साफ़ करना चाहिए. इस बयान के बाद सारी मीडिया में सिर्फ राम मंदिर ही मुद्दा बन गया और हर हिन्दू अतिवादी संगठन की ओर से बयान जारी होने शुरू हो गए. ये सब ऐसे हालात में हुआ जब पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव की प्रक्रिया चल रही है और लोगो का मानना है कि भाजपा ने हिन्दू वोटो को एकजुट करने के लिए ये ड्रामा करना शुरू कर दिया है. यह एक बिंदु हो सकता है लेकिन पूरी हक़ीक़त नहीं है.
अयोध्या में संघ, विहिप और संतों की सभा के बाद जिस प्रकार शिव सेना मैदान में उतरी उससे उलझनें और बढ़ गयीं कि आखिर अचानक इन संगठनों को हुआ क्या है जो एक दूसरे से बाज़ी मार ले जाने की कोशिश कर रहे हैं. जब केंद्र में हिंदूवादी सरकार है तो फिर मंदिर बनाने के लिए ये रास्ता क्यों चुना जा रहा है. इस सवाल का जवाब हम पडोसी देश पाकिस्तान की सियासत के उदाहरण से समझ सकते हैं. पाकिस्तान में शुरूआती दौर में मज़हब के नाम पर बहुत सारे संगठन वजूद में आ गए जिनका दावा था कि वे इस्लाम की रक्षा के लिए पैदा हुए हैं. धीरे-धीरे ये संगठन इस्लाम की रक्षा छोड़ आपसी नफरत में उलझे जिसका नतीजा ये हुआ कि पकिस्तान में मज़हबी संगठनों ने लाखो लोगों को मरवा दिया.
ऐसे ही भारत में अब तमाम संगठन हिंदुत्व की रक्षा के लिए खड़े हुए हैं. केंद्र में मोदी सरकार बनाने के लिए हर संगठन ने कोशिश की जिसमें उन्हें कामयाबी भी मिल गयी. सरकार बनने के बाद जिन मुद्दों पर इन संगठनों ने वोट मांगे थे उनमे कोई भी मुद्दा सरकार की नज़र में नहीं है. अपना वजूद क़ायम रखने के लिए हिन्दू अतिवादी सगठनो के पास मुद्दे ही नहीं हैं. मोदी सरकार जिस प्रकार आर्थिक मोर्चे व अन्य मोर्चों पर फेल हुई है उसका सबसे गंभीर असर आरएसएस पर पड़ा है. मोदी सरकार की नाकामी का ठीकरा आरएसएस पर भी फोड़ा जा रहा है. संघ परिवार को करीब से जानने वाले मानते हैं कि वह मोदी सरकार के काम से संतुष्ट नहीं है. आरएसएस ने अपनी साख बनाये रखने के लिए राम मंदिर का मुद्दा जान बूझकर उठाया है.
राम मंदिर के बहाने से आरएसएस यह सन्देश देनाचाहता है कि आरएसएस आज भी हिंदुत्व के मुद्दे पर पीछे नहीं हटा है. जब आरएसएस नेये मुद्दा उठा कर अयोध्या में विहिप के साथ सभा करने का मन बनाया तो महाराष्ट्रमें उत्तर भारतीयों के खिलाफ मुहिम चलाने वाली शिवसेना भी सामने आ गयी. इससे यहसाफ़ ज़ाहिर हो गया है कि अनगिनत हिन्दू अतिवादी संगठनो में होड़ लग गयी है कि आखिरकौन है असली हिन्दूवादी. अयोध्या में हुआ यह ड्रामा इसी की एक बानगी थी. आज रामलीलामैदान में राम रथयात्रा की समाप्ति पर विहिप द्वारा किए जा रहे जुटान में संघ केलोगों का शामिल न होना भी इसी कहानी का विस्तार है। अब देखना यह होगा कि आगे चलकर कौन किस मुद्दे पर किससे बाज़ी मारता है.
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और यह आलेख स्पेशल कवरेज न्यूज़से साभार प्रकाशित है