वेनेजुएला का संकट गहरा होता जा रहा है। राष्ट्रपति निकोलस मादुरो (युनाइटेड सोशलिस्ट पार्टी) का तख्ता पलटने की समूची पटकथा वाशिंगटन में लिखी जा चुकी है और उस पटकथा के अनुसार अलग-अलग किरदार अपने अभिनय में लगे हैं। अभी 21 जनवरी को विपक्षी गठबंधन ‘यूनिटी कोलिशन’ के नेता खुआन गोइदो ने खुद को अंतरिम राष्ट्रपति घोषित किया और अमेरिका, कनाडा, फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, स्पेन, बेल्जियम सहित अनेक पश्चिमी देशों ने और ब्राजील, कोलंबिया, पेरू, चीले आदि कुछ लातिन अमेरिकी देशों ने खुआन गोइदो को अपना समर्थन दे दिया। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने फटाफट इस स्वघोषित राष्ट्रपति को मान्यता दे दी। इस घटना के साथ ही मादुरो सरकार ने अमेरिका के साथ अपने कूटनीतिक संबंध समाप्त कर दिए। साथ ही आदेश दिया कि अमेरिकी राजनयिक 72 घंटे के अंदर देश छोड़कर चले जाएं हालांकि इस आदेश को न तो अमेरिका ने माना और न मादुरो सरकार ने इसे तूल ही दिया। अमेरिका और उसके सहयोगी देशों ने मांग की है कि देश में आठ दिनों के अंदर चुनाव कराए जायं वरना गंभीर परिणाम होंगे। वेनेजुएला के विदेश मंत्री खोखे अरिआस ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में कहा कि मादुरो का राष्ट्रपति पद पर बने रहना पूरी तरह वैध है और किसी को यह अधिकार नहीं है कि हमारे ऊपर चुनाव के लिए दबाव डाले।
रूस और चीन के साथ ईरान, सीरिया, क्यूबा, मैक्सिको, टर्की, निकारागुआ, उरुगवे और बोलीविया ने खुलकर मादुरो सरकार का समर्थन किया है। इन देशों ने अमेरिका को आगाह किया है कि वह वेनेजुएला के अंदरूनी मामले में हस्तक्षेप करने से बाज आए। संयुक्त राष्ट्र में रूस के राजदूत वासिली नेबेंजिया ने वाशिंगटन पर आरोप लगाया है कि वह मादुरो सरकार का तख्ता पलटने की कोशिश कर रहा है। उन्होंने अमेरिका को चेतावनी भी दी है कि वह किसी भी हालत में सैनिक हस्तक्षेप न करे। रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ने एक बयान में कहा कि ‘वेनेजुएला में विदेशी हस्तक्षेप ने अंतर्राष्ट्रीय कानून के बुनियादी तौर तरीकों को ध्वस्त कर दिया है।’ टर्की ने इस बात पर हैरानी व्यक्त की है कि ‘देश में एक निर्वाचित राष्ट्रपति के होते हुए कोई खुद को राष्ट्रपति घोषित कर देता है और उसे कुछ देश मान्यता भी दे देते हैं।’
इसमें कोई संदेह नहीं कि चावेज की मृत्यु के बाद पिछले पांच वर्षों के मादुरो के शासनकाल में देश की अर्थव्यवस्था पूरी तरह चरमरा गई। मंहगाई आसमान छू रही है और भारी संख्या में लोग देश से पलायन के लिए मजबूर हो गए हैं लेकिन इसके लिए मादुरो सरकार की प्रशासनिक अक्षमता के साथ ही उन साजिशों का बहुत बड़ा योगदान है जो वेनेजुएला के खिलाफ पिछले बीस वर्षों से अमेरिका करता आ रहा है। 21 जनवरी से जो अशांति फैली है उसकी वजह से अब तक जगह-जगह हुई मुठभेड़ों में 40 से ज्यादा लोग मारे जा चुके हैं। अमेरिका के विदेश मंत्री माइक पोंपिओ आए दिन मादुरो सरकार के खिलाफ जहर उगल रहे हैं और रूस तथा चीन पर आरोप लगा रहे हैं कि इन दोनों देशों ने एक ‘विफल सरकार’ को बढ़ावा दिया है। सेना पूरी तरह राष्ट्रपति मादुरो के साथ है लेकिन अगर इसमें फूट पड़ गई, जिसकी कोशिश लगातार अमेरिका कर रहा है तो हालात और भी खराब हो सकते हैं। इस बीच वाशिंगटन में तैनात वेनेजुएला के सैनिक प्रतिनिधि ने पाला बदल दिया है और मादुरो सरकार की बजाय स्वघोषित राष्ट्रपति गोइदो के प्रति अपनी निष्ठा व्यक्त की है।
कुल मिलाकर वेनेजुएला की स्थिति बेहद गंभीर बनी हुई है। अंतर्राष्ट्रीय प्रेक्षकों का मानना है कि अगर निकट भविष्य में संकट का कोई समाधान नहीं ढूंढा गया और अमेरिका ने सैनिक हस्तक्षेप का निर्णय ले लिया तो समूची दुनिया एक नए युद्ध की चपेट में आ जाएगी। वैसे, चीन और रूस के पास वीटो का अधिकार होने की वजह से यह उम्मीद की जा सकती है कि अमेरिका पर शायद सुरक्षा परिषद का दबाव बना रहे।
30 जनवरी को अमेरिका की एक और घोषणा ने समूची स्थिति को काफी जटिल बना दिया है। पहले तो इसने वेनेजुएला की सरकारी तेल कंपनी पीडीवीएसए पर प्रतिबंध लगाते हुए वेनेजुएला की सेना से सत्ता के शांतिपूर्ण हस्तांतरण को स्वीकार करने के लिए कहा और जब उसकी इस बात पर सेना ने ध्यान नहीं दिया तो उसने अमेरिकी बैंकों में मौजूद खातों का नियंत्रण खुआन गोइदो को देने की घोषणा की। इसका अर्थ यह हुआ कि वेनेजुएला के तेल की बिक्री का पैसा मादुरो की सरकार तक नहीं पहुंचेगा। गोइदो भी यही चाहते थे कि तेल की संपत्ति से होने वाली कमाई पर उनका नियंत्रण हो जाए। स्मरणीय है कि दुनिया का सबसे बड़ा तेल उत्पादक देश वेनेजुएला अपने तेल की बिक्री के लिए अमेरिका पर काफी हद तक निर्भर है। वह अपने तेल निर्यात का 41 प्रतिशत अमेरिका को करता है। इतना ही नहीं बल्कि वह अमरीका को कच्चा तेल देने वाले दुनिया के चार सबसे बड़े उत्पादक देशों में भी शामिल है। अमेरिका द्वारा गोइदो के हाथ में तेल से होने वाली आय का नियंत्रण देने के बाद वेनेजुएला सरकार ने कुछ एहतियाती कदम उठाए हैं। वेनेजुएला के अटार्नी जनरल तारेक विलियम सआब ने देश की सुप्रीम कोर्ट से कहा कि गोइदो के देश छोड़ने पर प्रतिबंध लगाया जाय और उनकी संपत्तियों को फ्रीज कर दिया जाए। अभी सुप्रीम कोर्ट ने कोई आदेश जारी नहीं किया है लेकिन मादुरो के प्रति उसके झुकाव को देखते हुए कहा जा सकता है कि सुप्रीम कोर्ट यह आदेश जारी कर देगा।
अमेरिकापरस्त अनेक विश्लेषकों की दलील है कि मादुरो सरकार के अंतर्गत देश ऐसी बदहाल स्थिति में पहुंच गया था कि अमेरिका के लिए हस्तक्षेप करना जरूरी हो गया। वे लोग इस तथ्य को छुपा रहे हैं कि अमेरिका पिछले बीस वर्षों से लगातार वेनेजुएला की सरकार के खिलाफ सक्रिय रहा है। दरअसल अमेरिका ने हमेशा लातिन अमेरिकी देशों को अपना ‘बैकयार्ड’ माना और वहां वह ऐसी किसी सरकार को बर्दाश्त नहीं कर पाता है जिसकी नीतियां समाजवादी हों। अतीत में लातिन अमेरिकी देशों में अमेरिका ने कब-कब हस्तक्षेप किया है, उनका दस्तावेज अगर तैयार किया जाए तो वह पूरा ग्रंथ हो जाएगा। वेनेजुएला में भी 1998 में ऊगो चावेज की सरकार के सत्ता में आने के बाद से ही अमेरिका की सक्रियता बढ़ गई क्योंकि चावेज ने आते ही सबसे पहले विदेशी लूट पर रोक लगाई। उन्होंने बड़े उद्योगों का राष्ट्रीयकरण किया, भूमि सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत बड़े पैमाने पर भूमिहीनों के बीच जमीन का वितरण किया और अमेरिकी कंपनियों की बेलगाम लूट को रोका।
जो लोग आज मादुरो सरकार की असफलता की वजह से अमेरिकी हस्तक्षेप को जायज ठहरा रहे हैं उनके पास इसका कोई जवाब नहीं है कि जिस समय चावेज की नीतियों के फलस्वरूप वहां के लोगों की स्थिति काफी बेहतर हो गई थी तब अमेरिका ने क्यों हस्तक्षेप किया था। स्मरणीय है कि 2002 में एक साजिश के तहत अमेरिका ने चावेज का अपहरण तक करा लिया था और चैंबर ऑफ कामर्स के अध्यक्ष पेद्रो कारमोना को राष्ट्रपति घोषित कर दिया था। अमेरिका की यह साजिश महज 48 घंटे तक ही कामयाब हो सकी और व्यापक जनविद्रोह ने चावेज को फिर सत्तारूढ़ कर दिया। चावेज से अमेरिका क्यों नाराज था इसके लिए उन दिनों की कुछ उपलब्धियों पर गौर करना प्रासंगिक होगा। 2005 में संयुक्त राष्ट्र की संस्था यूनेस्को ने बाकायदा इस तथ्य की पुष्टि की कि वेनेजुएला में कोई भी अशिक्षित नहीं रहा। 1998 से 2011 के बीच स्कूलों में प्रवेश लेने वाले बच्चों की संख्या जहां साठ लाख से बढ़कर एक करोड़ तीस लाख हो गई, वहीं 2000 में विश्वविद्यालय में पढ़ने वाले छात्रों की जो संख्या 8,95,000 थी वह बढ़कर 2011 तक 20,30,000 हो गई। शिक्षा के साथ जनस्वास्थ्य कार्यक्रमों को चावेज ने बड़े पैमाने पर लागू किया। 1999 में एक लाख की जनसंख्या पर डॉक्टरों की संख्या बीस थी जो 2010 में उतनी ही जनसंख्या पर बढ़कर 80 हो गई यानी 400 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी। इसी तरह शिशु मृत्यु दर प्रति हजार पर 19 थी जो 2012 तक घटकर दस हो गई। लोगों को आवास की सुविधा के मामले में भी चावेज ने एक रिकॉर्ड कायम किया। सत्ता में आने के बाद 13 वर्षों के अंदर जनता को 7 लाख से अधिक घर बनाकर आवंटित किए गए। भूमि सुधार कार्यक्रम के अंतर्गत 30 लाख हेक्टेयर भूमि का वितरण हुआ जिसमें तकरीबन एक लाख हेक्टेयर भूमि वहां के आदिवासियों के बीच बांटी गई। 1998 में बेरोजगारी की दर 15.2 प्रतिशत थी जो 2012 में घटकर 6.4 प्रतिशत हो गई। काम के घंटों में कमी की गई और मजदूरों को तरह-तरह की राहत दी गई।
चावेज को क्यूबा के फिदेल कास्त्रो का जबर्दस्त समर्थन प्राप्त था और अमेरिका के लिए यह चिंता की बात थी। इतना ही नहीं चावेज ने लातिन अमेरिकी और कैरेबियन देशों के समुदाय को एकजुट करते हुए ‘सेलाक’ (कम्युनिटी ऑफ लाटिन अमेरिकन ऐण्ड कैरीबियन स्टेट्स) का गठन किया जो अमेरिका के प्रभुत्व वाले ओएएस (आर्गेनाइजेशन ऑफ अमेरिकन स्टेट्स) का मुकाबला करने के लिए स्थापित किया गया था। उन दिनों वेनेजुएला की हैसियत एक खुशहाल राष्ट्र की थी। इन सबके बावजूद अमेरिका ने इस हद तक वेनेजुएला को परेशान किया कि संयुक्त राष्ट्र की बैठक में चावेज ने तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जार्ज बुश को ‘शैतान’ विशेषण से संबोधित किया जिसकी पूरी दुनिया में चर्चा हुई। उन दिनों अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार कोंडालिजा राइस और चावेज के बीच आए दिन हो रही तीखी नोक-झोंक लगातार अखबारों की सुर्खियां बनी रहीं। कहने का तात्पर्य यह है कि अमेरिका कभी नहीं चाहता कि लातिन अमेरिका के किसी भी देश में कोई ऐसी सरकार स्थापित हो जो पूंजीवाद के खिलाफ कारगर कार्यक्रम ले सके। वेनेजुएला के सामने आज जो संकट पैदा हुआ है उसके मूल में पूंजीवाद बनाम समाजवाद की ही लड़ाई है।
अप्रैल 2013 में चावेज की मृत्यु हुई और इसके बाद हुए चुनाव में उनके उत्तराधिकारी निकोलस मादुरो ने सत्ता की बागडोर संभाली। मादुरो ने भी उन्हीं नीतियों को आगे बढ़ाया जिनकी शुरुआत चावेज ने की थी। चावेज का एक करिश्माई व्यक्तित्व था जिसका लाभ उन्हें मिल रहा था। मादुरो के साथ ऐसी स्थिति नहीं थी हालांकि मादुरो को भी जनता का व्यापक समर्थन प्राप्त था। लेकिन दिसंबर 2015 में हुए संसदीय चुनावों में विपक्षी डेमोक्रेटिक यूनिटी के गठबंधन को संसद में बहुमत मिल गया और पिछले सोलह वर्षों से चला आ रहा सोशलिस्ट पार्टी का नियंत्रण समाप्त हो गया। ऐसे में मादुरो के खिलाफ संसद के जरिए अमेरिकी साजिशों को अमल में लाना आसान हो गया।
31 जनवरी को, इन पंक्तियों के लिखे जाने तक, राष्ट्रपति मादुरो ने रूस की समाचार एजेंसी आरआइए से कहा है कि देश में फैली अराजक स्थिति को काबू में लाने के लिए वह विपक्षी दलों और खुआन गोइदो के साथ बातचीत के लिए तैयार हैं। उन्होंने यह भी ऐलान किया है कि सबकी सहमति से चुनावों के लिए एक तारीख भी तय की जा सकती है। स्थिति को और भी ज्यादा तनावपूर्ण रूप लेने से रोकने में उनकी यह पहल कारगर हो सकती है बशर्ते अमेरिका इसमें कोई अड़चन न डाले।
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और मीडियाविजिल के संपादकीय परामर्श मंडल के सदस्य हैं)