कब डरता है दुश्मन कवि से?
जब कवि के गीत अस्त्र बन जाते हैं / वह कैद कर लेता है कवि को
फांसी पर चढ़ाता है / फांसी के तख्ते के एक ओर होती है सरकार / दूसरी ओर अमरता
कवि जीता है अपने गीतों में / और गीत जीता है जनता के हृदय में।
-बेंजामिन मॉलेस की याद में लिखी वरवर राव की कविता ‘कवि’ की पंक्तियां
इन पंक्तियों के पढ़े जाने के लिए इससे बेहतर मौका नहीं हो सकता। बुधवार 28 अगस्त को जब वरवर राव और अन्य को गिरफ्तार हुए एक साल का वक्त पूरा हुआ, ठीक उसी दिन बॉम्बे हाइकोर्ट के जज ने भीमा कोरेगांव में आयोजित यलगार परिषद के मामले में राव के साथ गिरफ्तार किये गये वर्नान गोंजाल्विस से इस बात की सफ़ाई मांगी कि वे ”अपने घर में ‘वॉर एंड पीस’ जैसी आपत्तिजनक सामग्री क्यों रखते हैं।
संदर्भ ‘वॉर एंड पीस इन जंगलमहल” नाम के लेखों के संग्रह का था। जिस दौर में न्यायपालिका के लिए एक किताब न्यायिक रूप से ”आपत्तिजनक” हो जाये, उस दौर में अस्सी साल के हो रहे एक कवि का जेल में साल भर से सड़ना भी स्वाभाविक हो जाता है। साल भर पहले हैदराबाद के अपने आवास से जेल यात्रा पर जाते हुए कवि की तनी हुई मुठ्ठी और आत्मविश्वास भरी मुस्कराहट एक आह्वान की तरह आज बार-बार उभर कर सामने आती है और चौतरफा फैली चुप्पियों के मंच पर बीचोबीच खड़ी हो जाती है।
Astounding! HC judge asks an activist alleged to be a Maoist, "Why have you kept (Tolstoy's classic novel) War & Peace in your house?"! What kind of HC judge would ask such a question?! What have we done to the judiciary?!https://t.co/X6qfcT35fC
— Prashant Bhushan (@pbhushan1) August 29, 2019
वरवर राव आने वाले 3 नवम्बर को 80 साल के हो जाएंगे। जीवन के पिछले पचास वर्षों में जेल, जानलेवा हमला, जान से मारने की धमकी और झूठे केसों का सिलसिला उन्होंने वैसे ही झेला है जैसे इस देश का आम जन झेलता आ रहा है। उनकी जीवनसाथी पी. हेमलता ने 19 जुलाई, 2019 को महाराष्ट्र के गवर्नर को एक पत्र लिखा। इस पत्र में उन्होंने याद दिलाया हैः
”आज बहुत से ऐसे लोग हैं जो मानते हैं कि नौ आरोपियों, जिसमें वरवर राव भी शामिल हैं, को जान-बूझ कर अवैधानिक तरीके से षडयंत्र के केस में फंसाया गया है जिससे कि हिंसा के असल दोषियों को बचाया जा सके। वस्तुतः वरवर राव के मामले में इस तरह के झूठे केस नये नहीं हैं पिछले 46 साल में। जब वह पहली बार 1973 में मीसा के तहत गिरफ्तार किये गये थे तब उन पर 25 केस लगाये गये थे। इसमें सभी तरह के गंभीर आरोप थे। इसमें हत्या, हत्या करने का प्रयास, विस्फोटक भेजना, धमकी, हथियारों का जुटाना, प्रशासकीय नौकरों के काम करने से रोकना, जैसे आरोप थे। इन 25 मामलों में से किसी को भी पुलिस सिद्ध नहीं कर पायी। अदालत ने इन सभी मामलों से वरवर राव को बाइज्जत बरी किया। हमारा विश्वास है कि उपरोक्त जैसे ही यह केस भी कानून की नज़र में नहीं टिकेगा।”
केस का अंत चाहे जो हो, लेकिन अस्सी साल की होती उम्र में जब जेल की फर्श ही बिस्तर हो जाये, बैठने के लिए सिर्फ अपनी रीढ़ का सहारा हो, मिलने के लिए पत्नी और तीन बेटियों को ही अनुमति हो, लिखने-पढ़ने की कोई सुविधा न हो और उससे भी ज्यादा, अपनी भाषा और साहित्य से ही जब वंचित कर दिया गया हो, तब इस कवि के हिस्से में क्या बचता है!
हेमलता ने गवर्नर को लिखे पत्र में मांग की हैः ”पिछले 60 साल से वरवर राव तेलुगु साहित्य के विद्यार्थी, शिक्षक, कवि और लेखक हैं लेकिन पिछले आठ महीनों से तेलुगु में लिखे एक पत्र से भी उन्हें वंचित कर दिया गया है। कम से कम उन्हें तेलुगु की किताबे और अखबार मुहैया कराये जाएं।”
भीमा कोरेगांव-एलगार परिषद केस में पुलिस ने अभी तक साढ़े सात हजार पन्ने की चार्जशीट दाखिल की है। आरोपियों को ‘अर्बन नक्सल’ का नाम दिया गया। वकील, लेखक, प्रोफेसर, कवि, संपादक, शोध छात्र से लेकर सामाजिक कार्यकर्ताओं की जो फेहरिस्त इस केस से जोड़ दी गयी है, उससे ‘अर्बन नक्सल’ का दायरा बौद्धिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, यहां तक कि कविता-कर्म को अपने भीतर समेट चुका है। असम में एक साथ दस कवियों पर हुआ मुकदमा इस बात की तसदीक़ करता है। इन कवियों ने अपनी ”मियां” शैली की कविता में अपने मन की बात लिखी थी। इनके ऊपर एफआइआर करा दी गई और सांप्रदायिक दुर्भावना फैलाने का आरोप लगा दिया गया। क्या कवि अपने लिखे के प्रतिकूल परिणाम की संभावना में लिखना छोड़ दे, चुप्पी ओढ़ ले?
वरवर राव लिखते हैं:
लकीर खींचकर जब खड़े हो / मिट्टी से बचना संभव नहीं
नक्सलबाड़ी का तीर खींचकर जब खड़े हो / मर्यादा में रहकर बोलना संभव नहीं
आक्रोश भरे गीतों की धुन / वेदना के स्वर में संभव नहीं
इसी कविता के अंत में वे लिखते हैः
जीवन को बुत बनाना / शिल्पकार का काम नहीं
पत्थर को जीवन देना /उसका काम है
मत हिचको ओ! शब्दों के जादूगर / जो जैसा है वैसा कह दो / ताकि वह दिल का छू ले
वरवर राव की कविताओं के 16 से अधिक संग्रह आ चुके हैं। तेलुगु भाषा में हाल ही उनकी संपूर्ण रचनावली छपकर आयी है। उन्होंने किसान और आदिवासी समुदाय की लड़ाई लड़ने वाले सैकड़ों लेखकों और उपन्यासकारों, कवियों की पुस्तकों की भूमिका, प्रस्तावना लिखकर तेलुगु साहित्य को समृद्ध किया। उन्होंने साहित्य पर ‘तेलंगाना मुक्ति संघर्ष और तेलुगु उपन्यासः साहित्य और समाज के अंतर्संबंधों का अध्ययन” शोध पत्र लिखा। न्गुगी वा थियांगो की पुस्तक ‘डीटेन्ड’ और ‘डेविल ऑन द क्रॉस’ तथा अलेक्स हेली के ‘रूट्स’ जैसे उपन्यासों से लेकर दसियों पुस्तकों का अनुवाद कर तेलुगु के पाठकों को अन्य भाषाओं की रचनाओं से रूबरू कराया। इस विशाल रचना संसार को समृद्ध करने के दौरान उन्होंने सक्रिय सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन जिया। उन्होंने एक विशाल कारवां का निर्माण किया। उनके पदचिह्न उन्हें तेलुगु साहित्य में युगप्रवर्तक के रूप में प्रतिष्ठित करते हैं।
जिस भाषा में मैं वरवर राव के बारे में लिख रहा हूं, उस भाषा में वरवर राव को पर्याप्त जाना जाता है। हिंदी में उनकी ख्याति है। वाणी प्रकाशन ने उनकी कविताओं के अनुवाद का संग्रह ‘साहस गाथा’ 2005 में प्रकाशित किया था। ‘कथादेश’ पत्रिका के दस साल पूरे होने पर उनका एक व्याख्यान भी हुआ। कुछ साल बाद वाणी प्रकाशन ने ही उनकी जेल डायरी छापी। पुस्तक भवन प्रकाशन ने ‘हमारा सपना दूसरी दुनिया’ नाम से उनका दूसरा कविता संग्रह हिंदी में प्रकाशित किया। पूरे उत्तर भारत में वह साहित्य और अन्य मसलों पर व्याख्यान देते रहे हैं। हिंदी के नामचीन लेखक और कवि वरवर राव की जिंदगी से प्रेरणा लेते रहे हैं। उनकी गिरफ्तारी के खिलाफ हिंदी के साहित्यकारों ने हमेशा ही आवाज बुलंद की है।
यह पहली बार है कि कवि को गिरफ्तार हुए साल भर होने को आया और हिंदी के साहित्यिक-सांस्कृतिक दायरे से अब भी एक अदद आवाज आने का, एक अदद कविता लिखे जाने का इंतजार है।
यह लेख मूल प्रकाशित लेख से संपादित है