समाज की पुरुषवादी मानसिकता पर चोट करने वाला एक विज्ञापन दिखाने वाले बहुराष्ट्रीय शेविंग उत्पाद ब्रांड जिलेट को इसके चलते लम्बा वित्तीय घाटा हुआ है। घाटा पूर्ति के लिए कंपनी दोबारा नायकत्व के प्रचार की तरफ मुड़ रही है। दूसरी ओर उत्तर प्रदेश के बनवारी टोला की नेहा और ज्योति- जिन्हें जिलेट ने अपने विज्ञापन में लेकर रोतोरात स्टार बना दिया था- की जिंदगी अधर में लटक गयी है।
हाल में आयी खबर के मुताबिक जिलेट नाम से उत्पाद बनाने वाली कंपनी प्रॉक्टर एंड गैम्बल (पीएंडजी) को 118 साल पुराने इस शेविंग ब्रांड के कुल पूंजीगत मूल्यांकन में करीब 12 अरब डॉलर का झटका लगा है। पीएंडजी ने 2005 में जिलेट को 84 अरब डॉलर में खरीदा था। ऐसा पहली बार हुआ है और इसके कई कारण बताये जा रहे हैं, लेकिन एक वजह सांस्कृतिक भी है।
कंपनी ने टॉक्सिक मस्कुलनिटी यानी ”ज़हरीली मर्दानगी” के खिलाफ़ अपना विज्ञापन कैम्पेन जनवरी से शुरू किया था। पीएंडजी ने घाटा उठाने के बाद अपने आधिकारिक वक्तव्य में पिछले महीने कहा है- ”हम पुरुषों में श्रेष्ठतम की नुमाइंदगी करते रहेंगे।” इसी के साथ कंपनी ने ”सामाजिक मुद्दों” से अपनी विज्ञापन नीति को वापस लेते हुए दोबारा पुरुषत्व और नायकत्व का रुख़ कर लिया है। दिलचस्प यह है कि जनवरी में जब जिलेट ने ”ज़हरीली मर्दानगी” के खिलाफ विज्ञापन शुरू किया था उस वक्त #MeToo कैंपेन चल रहा था। कैंपेन के खत्म होते ही कंपनी ने भी वित्तीय अवमूल्यन के बहाने नीतिगत यू-टर्न कर लिया।
इस बीच हम उन दो हज्जाम लड़कियों को भूल गये जिन्हें जिलेट के एक विज्ञापन में दिखाया गया था और काफी लोकप्रिय हुआ था। आठ महीने में जिलेट की नीति बदल गयी लेकिन उन दो लड़कियों के जीवन में कोई बदलाव नहीं आया है। नेहा और ज्योति नाम की इन दो हज्जाम लड़कियों की कहानी सामाजिक मुद्दों पर कॉरपोरेट के पाखण्ड को उजागर करती है।
जिलेट ने #ShavingStereotypes के हैशटैग से एक विज्ञापन चलाया था जिसमें नेहा और ज्योति को मर्दों की दाढ़ी बनाते दिखाया गया था। भारतीय समाज में आम तौर से हज्जाम का काम पृरुष करते हैं। नेहा और ज्योति ने अपनी जरूरतों की पूर्ति के लिए इस रूढ़ि को तोड़ने का काम किया। जिलेट ने उन्हें हाथोहाथ अपने विज्ञापन में उठा लिया। नेहा और ज्योति मशहूर तो हुईं, लेकिन आज भी वहीं हैं जहां पहले थीं। उनके विज्ञापन से जिलेट ने कितने करोड़ बंटोरे, इसका हिसाब नहीं है।
“Boys will be boys”? Isn’t it time we stopped excusing bad behavior? Re-think and take action by joining us at https://t.co/giHuGDEvlT. #TheBestMenCanBe pic.twitter.com/hhBL1XjFVo
— Gillette (@Gillette) January 14, 2019
नेहा सात बहनें हैं। चौथी बहन की शादी के बाद नेहा के पिता को लकवा मार गया। इसके बाद शुरू हुई नेहा और ज्योति की तमाम बंधनों को तोड़ने की कहानी। नेहा के पिता ध्रुव की दुकान आय का एकमात्र ज़रिया थी। लकवाग्रस्त ध्रुव की उम्मीदें खत्म हो गयी थीं। ध्रुव बताते हैं, ”दुकान को ज्यादा दिन तक बन्द नहीं रखा जा सकता था। रोटी चलती रहे, इसके लिए ज़रूरी था कि दुकान खुले।” ऐसी स्थिति में ज्योति आगे आई और उसने दुकान चलाना शुरू किया। शुरुआत में परेशानी का सामना करना पड़ा। समाज के लोग नाराज हुए, लेकिन रोटी चलानी थी सो ज्योति और नेहा के चाचा को एक तरकीब सूझी। उन्होंने इन दोनों के बाल काट दिए और नाम भी बदल कर दीपक और राजू कर दिया।
ज्योति बताती हैं, ”जब पापा ठीक थे तो मैं दुकान पर जाती थी। उस्तरा हाथ में उठा लेती, ब्लेड तोड़ देती। शेविंग करने के सामान से खेलती रहती, लेकिन कभी ऐसा नहीं सोचा था कि एक दिन इसी को प्रोफेशन बनाना होगा। शुरू-शुरू में एक दो बार ब्लेड लग गया। ग्राहक झल्ला कर चले गए, लेकिन धीरे-धीरे हाथ बैठ गया और दुकान चल पड़ी।”
नेहा और ज्योति दुकान चलाती रहीं और स्कूल जाना भी उन्होंने जारी रखा। इसमें उनके जीजा समय-समय पर मदद करते रहे। नेहा कहती हैं, ”अगर जीजा का सपोर्ट और विचार को लेकर खुलापन नहीं मिलता तो शायद हम ये सब नहीं कर पाते।” ज्योति पिछले दो साल से दुकान पर नहीं आती। अभी नेहा अकेले ही दुकान संभालती हैं।
नेहा के चाचा से जब इन दोनों हज्जामों के बचपन के बारे में पूछा तो उनके चेहरे पर बेबसी का भाव उभर आया। उन्होंने बताया, ”गरीबी बचपन से शरारत छीन लेती है। जब शरारत करने की उम्र थी उस समय दुकान का बोझ कंधे पर आ चुका था। एक तरफ रोजी-रोटी कमाना था तो दूसरी तरफ समाज की रूढि़यों से भी लड़ना था।”
एक स्थानीय पत्रकार ने नेहा और ज्योति के लड़की होने की बात उजागर की थी। मीडिया से अपने पहले साक्षात्कार के बारे में नेहा बताती हैं, ”बनवारी टोला जैसे छोटे से गांव में मीडिया का आना और लड़की का इंटरव्यू करना बहुत बड़ी बात थी। हमें भी डर लग रहा था कि लोग क्या सोचेंगे? मीडिया का सामना कैसे करें? हम तो मना भी करते रहे लेकिन सन्दीप जी छाप दिए।” इसके बाद लोगों का ध्यान इन दो बहनों की ओर गया।
जिलेट के द्वारा 4 मई को इनसे सम्पर्क किया गया। जिलेट के विज्ञापन के बाद राष्ट्रीय पटल पर नेहा और ज्योति चर्चा का विषय बनीं। भारतीय क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर ने मुंबई बुला कर इनसे शेविंग करवायी और ट्वीट भी किया। इसके अलावा बॉलीवुड अभिनेता फ़रहान अख्तर समेत बॉलीवुड की कई हस्तियों ने नेहा और ज्योति की सराहना की।
A First for me! You may not know this, but I have never gotten a shave from someone else before. That record has been shattered today. Such an honour to meet the #BarbershopGirls and present them the @GilletteIndia Scholarship.#ShavingStereotypes#DreamsDontDiscriminate pic.twitter.com/DNmA8iRYsb
— Sachin Tendulkar (@sachin_rt) May 3, 2019
शेविंग स्टीरियोटाइप तोड़ने की इस बहस के बीच एक अहम सवाल दब गया। सवाल आर्थिक तंगी का। नेहा और ज्योति कई दिनों तक सुर्खियां बटोरती रहीं। आज भी उन रिपोर्ट्स की कटिंग फ्रेम में मढ़ी हुई दीवार पर टंगी है। एक तरफ ये कटिंग ग्लैमर की कहानी कहती है तो दूसरी तरफ खुरदरी दीवारें यथास्थिति और संघर्ष को दर्शाती हैं। इनका पूरा परिवार एक कमरे में रहने को मजबूर है। घर के अंदर प्रवेश करते ही टूटी छत नज़र आती है। छत टिन की है और बारिश में पानी की बूंदें उससे टपकती हैं।
जिलेट के विज्ञापन के बाद जिलाधिकारी और स्थानीय विधायक नेहा और ज्योति से मिलने आए। दोनों को बनवारी टोला के प्राथमिक विद्यालय में सम्मानित भी किया गया। मदद के नाम पर 1600 रुपये का चेक दिया गया।
नेहा अब मीडिया के सामने नहीं आना चाहती। बात करने से साफ इनकार करती है। वह कहती हैं, ”मीडिया वाले आते हैं। फ़ोटो लेते हैं। बात करते हैं। वीडियो बनाते हैं। खबर छाप देते हैं। इससे उन्हें फायदा होता है, हमें क्या मिलता है। कुछ भी तो नहीं। एक तरफ बिना किसी उम्मीद के मीडिया से बात करना समाज को खटकता भी है और हमें मिलता भी कुछ नहीं है।”
नेहा को इस बात से फर्क नहीं पड़ता कि वह समाज की रूढि़ को को तोड़ रही हैं। वे कहती हैं, ”जितना लोगों को जानना था जान चुके। समाज को बहुत आईना दिखा चुके। हम आईना दिखाये लेकिन हमें मिलता क्या है? कुछ बड़ा करना चाहती हूं लेकिन कोई मदद करने को तैयार नहीं है। ऐसे में समाज को आईना दिखाने से क्या फर्क पड़ जाएगा?”
ज्योति पिछले दो साल से दुकान पर नहीं जा रही हैं। ज्योति ने दीपक का पहनावा भी छोड़ दिया है। पूछने पर उनकी मां बताती हैं’ ”अब उम्र हो गयी है। आगे भी यही काम करती रही तो शादी में दिक्कत आ सकती है। अलग-बगल वाले बाहर के लोगों के आने से बुरा मानते हैं। लोग खिल्ली उड़ाते हैं। जितना काम करना था कर ली। आखिर जाना तो दूसरे के ही घर है। ज्योति के बाद भी दो बेटी बच जाएगी। जल्दी जल्दी शादी नहीं हुई तो दूसरे बेटियों की शादी में दिक्कत आएगी।”
ज्योति कहती हैं कि उन्हें पढ़ाई करनी है। वे बारहवीं दोबारा करना चाहती हैं। इसके बाद वे पार्लर खोलेंगी। वे कहती हैं, ”दुकान पर जाना इस उम्मीद में छोड़ी थी कि अच्छे से पढ़ूंगी और आगे बेहतर करूंगी लेकिन अब सब अधर में लटक गया है। अगर मेरा भाई होता तो हम ये सब नहीं करते, हालांकि अब थोड़ा नाम मिलने पर खुशी भी होती है। पार्लर खोल कर इस दुकान को बड़ा करना चाहती हूं। भाई होता तो ये सब उसी के जिम्मे होता और हम दुकान पर नहीं आते।”
बनवारी टोला के अगल-बगल के लोग खुश हैं। बनवारी टोला में बालू का व्यवसाय करने वाले सोनू यादव कहते हैं, ”इन दोनों लड़कियों की वजह से हमारी पहचान बनी है वरना बनवारी टोला को कौन जानता था? हमें नेहा और ज्योति का उसके परिवार वालों से ज्यादा शुक्रगुजार होना चाहिए।”