पिछले तीन दिन से वॉट्सऐप पर पंजाब चुनाव में कांग्रेस को बहुमत दिखाने वाली एक ‘गोपनीय’ रिपोर्ट सर्कुलेट हो रही है जिसे कथित तौर पर भारत सरकार के गुप्तचर ब्यूरो यानी आइबी का बताया जा रहा है। रिपोर्ट के माथे पर लिखा है: ”Intelligence Bureau Report-Punjab Assembly Elections 2017 (Final Report to GOI: 2nd Feb, 2017)”
दिलचस्प है कि इस रिपोर्ट में नीचे लाल स्याही से लिखा हुआ है Confidential Report और सबसे नीचे दिए Note में तीन बिंदु गिनवाए गए हैं:
1. यह केवल पीएमओ के इस्तेमाल के लिए है।
2. कृपया इस दस्तावेज की गोपनीयता को बरतने के लिए विशेष उपाय करें।
3. हमारी सूचना के अनुसार पंजाब असेंबली चुनावों पर हमारी पिछली रिपोर्ट (Serial no. A0PB0219) किसी ने लीक कर दी थी और वह फिलहाल पब्लिक डोमेन में है।
अगर यह रिपोर्ट वाकई आइबी की ही है, तो यह बेहद चिंताजनक है कि पहली रिपोर्ट के लीक होने का हवाला देते हुए इसमें विशेष उपाय बरतने की बात कही गई है, बावजूद उसके यह भी पब्लिक डोमेन का हिस्सा बन चुकी है। रिपोर्ट की विश्वसनीयता पर केवल दो चीजें सवाल खड़ा करती है। पहली बात यह है कि इस पर न तो कोई सीरियल नंबर है (जैसा कि पहली वाली रिपोर्ट के संदर्भ में नोट में कहा गया है), न ही किसी के दस्तखत या मुहर। दूसरी बात यह है कि नोट के दूसरे बिंदु में measure की जगह major लिखा हुआ है। आम तौर से सरकारी दस्तावेजों में वर्तनी की ऐसी दिक्कत नहीं होती है।
अगर यह आइबी की रिपोर्ट नहीं है, तो और भी चिंताजनक है कि आखिर भारत सरकार के खुफिया विभाग की ओर से ऐसी फर्जी रिपोर्ट पत्रकारों के बीच कौन सर्कुलेट कर रहा है।
बहरहाल, रिपोर्ट चाहे जिसकी भी हो, लेकिन इसके निष्कर्ष कहीं ज्यादा चौंकाने वाले हैं। रिपोर्ट कहती है कि ये नतीजे 23 जनवरी से 1 फरवरी के बीच इकट्ठा किए गए इनपुट के आधार पर सरकार को सौंपे जा रहे हैं। इसमें कांगेस पार्टी को 69, आम आदमी पार्टी को 31 और शिरोमणि अकाली दल-भाजपा गठबंधन को 16 सीटें आती दिखाई गई हैं यानी कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत के साथ पंजाब में सरकार बनाने की स्थिति में दिखाया गया है।
यह रिपोर्ट आईबी की हो अथवा नहीं, लेकिन दोनों ही स्थितियों में एक सवाल ज़रूर बनता है कि जो सरकार डिजिटल इंडिया की परियोजना चला रही है, उसमें क्या किसी दस्तावेज की गोपनीयता या विश्वसनीयता पर भरोसा किया जा सकता है? यह आइबी की रिपोर्ट है तो इसके लीक होने पर सवाल है। अगर नहीं है, तो सवाल है कि इतनी आसानी से कोई खुफिया विभाग के नाम से सूचनाओं की हेरफेर कैसे कर सकता है? कहीं कांग्रेस के पक्ष में माहौल बनाकर दूसरे राज्यों के मतदान को प्रभावित करने की यह साजि़श तो नहीं?