जावेद अनीस
क्या16 मई 2014 के बाद 11 दिसबंर2018 की तारीख भारतीय राजनीति के लिये बहुत अहम् साबित होने वाली है? ऐसा माना जारहा है कि इस बार पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आने के बाद देश केराजनीति की दिशा बदल सकती है और अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव पर इसका ख़ास असरपड़ेगा.
इन पांच राज्यों में राजस्थान और मध्यप्रदेश दो सबसे बड़े राज्य हैं. राजस्थान में कांग्रेस की वापसी तय मानी जा रही है और मध्यप्रदेश को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है. गुजरात के बाद मध्यप्रदेश को भाजपा व संघ की दूसरी प्रयोगशाला कहा जाता है ऐसे में अगर कांग्रेस राजस्थान के साथ मध्यप्रदेश जैसे राज्य को जीतने में कामयाब हो जाती है तो एक पार्टी के रूप में यह उसकी जबरदस्त वापसी होगी और इससे देश की राजनीति में लम्बे समय से अपना मुकाम तलाश रहे उसके नेता राहुल गांधी आखिरकार एक राजनेता के रूप में स्थापित हो जायेंगें.
राहुल का अभी तक का सफर संघर्ष और विफलताओं से भरा रहा है. इस दौरान उनके हिस्से में जबरदस्त आलोचनायें, मात और दुष्प्रचार ही आये हैं लेकिन गुजरात विधानसभा चुनाव के बाद से राहुल एक जुझारू नेता के रूप में उभर कर सामने आये हैं.
गुजरात में उन्होंने मोदी–शाह की जोड़ी को उन्हीं की जमीन पर बराबरी का टक्कर दिया था इसके बाद कर्नाटक में भी उन्होंने आखिरी समय पर गठबंधन की चाल चलते हुये भाजपा की इरादों पर पानी फेर दिया था. गुजरात विधानसभा चुनाव ने राहुल गांधी और उनकी पार्टी को एक नयी दिशा दी है, इसे भाजपा और संघ के खिलाफ काउंटर नैरेटिव तो नहीं कहा जा सकता लेकिन इसने राहुल और उनकी पार्टी को मुकाबले में वापस आने में मदद जरूर की है. खुद राहुल गांधी में सियासी रूप से लगातर परिपक्वता आयी है और वे लोगों के कनेक्ट होने की कला को भी तेजी से सीखे हैं, आज वे मोदी सरकार के खिलाफ विपक्ष की सबसे बुलंद आवाज बन चुके हैं. वे अपने तीखे तेवरों से नरेंद्र मोदी की “मजबूत” सरकार को बैकफुट पर लाने में कामयाब हो रहे हैं, रफेल का मामला इसका सबसे बड़ा उदाहरण है जिसमें मोदी सरकार बुरी तरह से घिरी नजर आ रही है.
ऐसे में अगर वे भाजपा को उसके दूसरे सबसे बड़े गढ़ में मात देने में कामयाब हो जाते हैं तो इससे उनका कद बढ़ जायेगा और विपक्ष के नेताओं के कतार में वे सबसे आगे खड़े नजर आयेंगें. इसीलिये मध्यप्रदेश का यह चुनाव राहुल गांधी के राजनीतिक जीवन का टर्निंग पॉइंट साबित हो सकता है. राहुल लगातार खुद को पूरे विपक्ष की तरफ से नरेंद्र मोदी के विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश कर रहे हैं. विपक्ष के दूसरे नेताओं के मुकाबले वे नरेंद्र मोदी के खिलाफ ज्यादा मुखर और आक्रामक राजनीति कर रहे हैं. राफेल को मुद्दा बनाकर वे इस दिशा में काफी आगे बढ़ चुके हैं. अगर मध्यप्रदेश में कांग्रेस चुनाव हारती है तो उनकी इस कोशिश को बड़ा झटका लग सकता है, लेकिन अगर राहुल राजस्थान और मध्यप्रदेश जैसे दो राज्यों में कांग्रेस को सत्ता में वापस लाने में कामयाब हो जाते हैं तो यह ना केवल उनकी पार्टी के लिये संजीवीनी साबित होगा बल्कि इससे राहुल गाँधी नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्ष के स्वाभाविक विकल्प के रूप में भी उभर कर सामने आ जायेंगें. इससे जनता व विपक्ष के बीच उनको लेकर विश्वास बढ़ेगा और उनके नेतृत्व पर मोहर लगेगी. ऐसा करने के लिये शायद राहुल के पास यह आखिरी मौका है इसलिये मध्यप्रदेश के चुनावी परिणाम कांग्रेस और राहुल गांधी की दिशा व स्थान तय कर सकते हैं.
राहुल की तरह शिवराज के लिये भी यह चुनाव बहुत महत्वपूर्ण साबित होने जा रहा है. वे पिछले तेरह सालों से मध्यप्रदेश की सत्ता पर काबिज हैं. इतने लंबे समय से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रहने के बाद भी शिवराज सहज, सरल और सुलभ बने हुए हैं, यही उनकी पूंजी और सबसे बड़ी ताकत है.भाजपा के अंदरूनी राजनीति में जिन दो माडल की चर्चा की जाती रही हैं उसमें एक नरेंद्र मोदी का गुजरात माडल है तो दूसरा शिवराज का मध्यप्रदेश माडल. वर्तमान में भाजपा की अंदरूनी राजनीति में गुजरात माडल हावी है लेकिन उसके लिये मध्यप्रदेश माडल का विकल्प भी बचा हुआ है. यह चुनाव शिवराज सिंह चौहान के राजनीतिक जीवन का सबसे मुश्किल चुनाव साबित होने जा रहा है. इसमें चाहे उनकी हार हो या जीत चुनाव के नतीजे उनके सियासी कैरियर के सबसे बड़े टर्निंग पॉइंट साबित होने वाले हैं. यह बात पक्के तौर पर नहीं कही जा सकता है कि अगर शिवराज भाजपा को यह चुनाव जिताने में कामयाब हो गये तो वे ही मुख्यमंत्री बनेंगे और अगर मुख्यमंत्री बन भी गये तो 2019 में होने वाले लोकसभा चुनाव के बाद वे इस पद पर बने रहेंगें, इसको लेकर भी संदेह किये जाने के ठोस कारण हैं.
दरअसल मध्यप्रदेश का यह चुनाव भाजपा के अंदरूनी राजनीति को भी प्रभावित करने वाली है. अगर शिवराज अपने दम पर इस चुनाव को जीतने में कामयाब होते हैं तो पार्टी में उनका कद बढ़ जायेगा. ऐसे में पहले से ही शिवराज को लेकर असहज दिखाई पड़ रहे भाजपा के मौजूदा आलाकमान की असहजता शिवराज के इस बढ़े कद से और बढ़ सकती है. भाजपा की ताकतवर जोड़ी को मजबूत क्षत्रप पसंद नहीं है और वे किसी भी उस संभावना को एक हद से आगे बढ़ने नहीं देंगें जो आगे चलकर उनके लिये चुनौती पेश कर सके. अगर लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा को पूर्ण बहुमत नहीं मिलता है तो गठबंधन की स्थिति में शिवराज, नितिन गडकरी के साथ उन चुनिन्दा नेताओं में से होंगें जिनके नाम पर प्रधानमंत्री पद के लिये सहमति बन सकती है. वर्तमान में शिवराजसिंह चौहान भाजपा आलाकमान के लिये मजबूरी है क्योंकी यहां शिवराज ने अपने अलावा किसी और नेता को पनपने नहीं दिया है इसलिये फिलहाल पार्टी के पास मध्यप्रदेश में शिवराज के अलावा कोई दूसरा विकल्प नहीं है. 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी और अमित शाह को मध्यप्रदेश में शिवराज की जरूरत पड़ेगी लेकिन इसके बाद मध्यप्रदेश में भाजपा की तरफ से शिवराज का विकल्प पेश किया जा सकता है जिससे भाजपा के इस गढ़ पर मोदी-शाह का पूरा नियंत्रण स्थापित किया जा सके और अगर शिवराज यह चुनाव हारते हैं तो उन्हें हाशिये पर धकलने की पूरी कोशिश की जायेगी.
शायद राहुल गांधी भी शिवराज के इस स्थिति को समझते हैं तभी मध्यप्रदेश में चुनाव प्रचार के आखिरी दौर में उन्होंने भरे मंच से शिवराजसिंह की तारीफ करके सबको चौंका दिया. दमोह में एक रैली को संबोधित करते हुए राहुल ने कहा था कि “मोदी और शिवराज में एक फर्क है, शिवराज जी तमीज से बोलते हैं और नरेंद्र मोदी जी तमीज से बोलना नहीं जानते हैं, दुख होता है कि वो देश के प्रधानमंत्री हैं, उन्हें देश की जनता ने चुना है.” राहुल यहीं नहीं रुके शिवराज को लेकर और अच्छी बातें गिनाते हुये उन्होंने कहा कि “शिवराज जी और हम चुनाव लड़ रहे हैं और खुलकर हम उनके बारे में और वह हमारे बारे में बोल रहे हैं और लड़ाई हो रही है, भयंकर लड़ाई हो रही है. मगर वह तमीज से बोल रहे हैं. इसलिए मैं शिवराज की तारीफ कर रहा हूं, आप कहोगे राहुल गांधी चीफ मिनिस्टर की प्रशंसा कर रहे है, लेकिन यह सच्चाई है तो बोलना पड़ेगी.” यहां राहुल गांधी शिवराज की तारीफ करते हुये नरेंद्र मोदी को सिर्फ निशाना नहीं बना रहे थे बल्कि यह भाजपा के अंदरूनी समीकरणों को हवा देने की कोशिश भी थी.
बहरहाल इस बार मध्यप्रदेश विधानसभा के चुनाव प्रचार के दौरान मुख्यमंत्री शिवराजसिंह चौहान और राहुल गांधी ही ऐसे नेता हैं जिन्होंने सबसे ज्यादा जोर लगाया है. इस चुनाव में कांग्रेस के राष्ट्रीय नेतृत्व का मध्यप्रदेश में खास फोकस रहा है जबकि भाजपा के राष्ट्रीय नेतृत्व ने अपने स्वभाव के विपरीत जाते हुये शिवराजसिंह के चेहरे को सामने रखते हुये ही चुनाव लड़ा है.ऐसे में इन दोनों नेताओं का भविष्य ही सबसे ज्यादा दांव पर है.