50 फ़ीसदी वीवीपैट पर्ची के मिलान की माँग मानने में आयोग को समस्या क्या है?


EVM से जुड़ी तीन अहम ख़बरें जिनकी मीडिया में कही कोई चर्चा नही है।




गिरीश मालवीय

पहली खबर यह है कि 23 विपक्षी दलों ने चुनाव आयोग के सामने प्रत्येक राज्य में आधे पोलिंग केंद्रों पर ईवीएम के मतों का वीवीपैट की पर्चियो से मिलान करने का सुझाव पेश किया है। विपक्षी दलों के नेताओं ने मुख्य चुनाव आयुक्त सुनील अरोड़ा से मुलाकात कर उन्हें इस आशय का ज्ञापन सौंपा है इस पर लोकसभा और राज्यसभा में 23 विपक्षी दलों के नेताओं ने हस्ताक्षर किए हैं। वैसे समझ नही आ रहा कि आखिर चुनाव आयोग को यह बात सीधे से मान लेने में क्या समस्या है? अब भी वह इस मुद्दे पर एक समिति गठित करने की बात कर रहा है? ईवीएम मशीनों के मतों का 50 प्रतिशत वीवीपैट मशीनों की पर्ची से मिलान कराया जाए ? इसमे आपत्ति की बात ही क्या है?

दूसरी खबर यह है कि सुप्रीम कोर्ट सोमवार को भारतीय चुनाव आयोग से ईवीएम मशीनों की जांच में निजी एजेंसी को शामिल करने के संबंध मे 4 सप्ताह के अंदर जवाब मांगा है। पत्रकार आशीष गोयल की ओर से दाखिल याचिका में आरोप लगाया गया है कि चुनाव से पूर्व होने वाली ईवीएम की जांच प्राइवेट कंपनियों से कराई जाती है। साथ ही उनका निर्माण कार्य भी प्राइवेट कंपनियां करती है, जिसकी वजह से चुनाव प्रभावित होने की आशंका है। अभी तक यह मानने से ही इनकार किया जाता रहा कि ईवीएम की साज संभाल में किसी भी तरह की निजी एजेंसियों का दखल रहता है! इस पर चुनाव आयोग का जवाब कई जिज्ञासाओं का शमन कर देगा

तीसरी ओर बड़ी दिलचस्प खबर यह है कि राजस्थान हाई कोर्ट के अधिवक्ता और आरटीआइ कार्यकर्ता रजाक के. हैदर ने भारत निर्वाचन आयोग के एक जवाब से असंतुष्ट होकर केंद्रीय सूचना आयोग में द्वितीय अपील दायर की है

दरअसल, रजाक ने सूचना का अधिकार कानून के तहत ईवीएम के मॉडल अथवा सामग्री होने के नाते नमूने के रूप में एक ईवीएम उपलब्ध करवाने का अनुरोध किया था लेकिन इसमें निर्वाचन आयोग ने इसका जवाब देते हुए कहा कि ईवीएम न दस्तावेज है, न रिकॉर्ड है, न मॉडल है और न सामग्री।

तो फिर यह सवाल उठा कि तो फिर क्या है ईवीएम? -ईवीएम में ऐसा क्या गोपनीय है, जो देश के नागरिकों के बीच सार्वजनिक नहीं किया जा सकता? -ईवीएम अन्य सामग्री या मॉडल से किस तरह अलग है?

आरटीआई कार्यकर्ता रजाक ने कहा 2005 की धारा 2 (एफ) में सूचना और धारा 2 (आई) में अभिलेख (रिकॉर्ड) को परिभाषित किया गया है। इसमें किसी भी प्रकार की सामग्री, नमूना और मॉडल को शामिल किया गया है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन को सामग्री, नमूना अथवा मॉडल से किसी भी आधार पर अलग नहीं रखा जा सकता। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन भी एक सामग्री और मॉडल है, जैसे कि अन्य कोई सामग्री अथवा मॉडल होता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन का नमूना भी अन्य सामग्री/मॉडल की तरह सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 2 (जे) (3) में परिभाषित सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त किया जा सकता है।

भारत निर्वाचन आयोग के केंद्रीय जन सूचना अधिकारी ने सूचना का अधिकार अधिनियम-2005 की धारा 6 (1) का गलत उल्लेख करते हुए मुझे सूचना से वंचित किया है। धारा 6 (1) केवल सूचना प्राप्त करने के लिए अनुरोध की प्रक्रिया ही दर्शाता है। इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीन मॉडल अथवा सामग्री के अंतर्गत नहीं आता है, यह तथ्य सूचना का अधिकार अधिनियम की धारा 6 (1) में कहीं उल्लेखित नहीं है।

तीनो ही खबरें महत्वपूर्ण है लेकिन मीडिया में इनकी कही कोई चर्चा नही हो रही है।

लेखक आर्थिक मामलों के जानकार हैं।