मशहूर टी.वी. पत्रकार पुण्य प्रसून वाजपेयी ने हाल ही में एक वरिष्ठ बीजेपी नेता से मुलाक़ात की। चर्चा के दौरान उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी को लेकर जैसी गंभीर टिप्पणियाँ कीं, वह चौंकाती हैं। पत चलता है कि मोदी युग में पार्टी के अंदर किस तरह की घुटन है। प्रसून ने नेता का नाम तो नहीं लिखा लेकिन उन्होंने माना कि गुजरात में पार्टी की हालत गंभीर है। उन्होंने यहाँ तक कहा कि बीजेपी अगर गुजरात नहीं जीती तो संविधान को थोड़ा और तोड़-मरोड़ा जाएगा। पढ़िए और अंदाज़ा लगाइए, नेता के बारे में ही नहीं, देश के बारे में भी- संपादक
चाय की केतली से निकलता धुआं…और अचानक जवाब- ‘हमारी तो हालत ठीक नहीं है ! ’
‘क्यों इसमें आपकी हालत कहां से आ गई ?’
‘अरे भाई पार्टी तो हमारी ही है। और जब उसकी हालत ठीक नहीं तो हमारी भी ठीक नहीं । यही तो कहेंगे !’
‘ठीक नहीं से मतलब ? ’
‘मतलब आप खुद समझ लीजिये । क्यों गली गली..बूथ बूथ … घूम रहे हैं । हां जब कोई दरवाजे दरवाजे घूमने लगे तो समझ लीजिये। ये हालत यूपी में तो नहीं थी।’
नहीं, पर गुजरात की गलियां तो उन्होंने ही देखी हैं । बाकी तो पहली बार गलियां देख रहे हैं !’
‘सही कहा आपने, गुजरात की गलियां सिर्फ उन्होंने देखी हैं। बाकियों को कभी देखने दी ही नहीं गईं। अब जब हालात बदल रहे हैं तो गली गली घूम रहे हैं । वर्ना ये घूमते …!’
‘फिर भी कितनी सीट मिलेंगी ?’
‘सर्वे में तो 80 पार करना मुश्किल लग रहा है ! ’
‘सर्वे ना देखें, मैनेज हो जायेगा !’
‘मैनेज हो जाये तो ठीक ! ’
‘क्यों ईवीएम.. ??? ’
‘न.. न.. आप ईवीएम की गडबडी की बात मत करिये । ईवीएम में कोई गडबडी नहीं है । हमने तो 1972 का दौर भी देखा है जब इंदिरा गांधी जीत गईं तो बलराज मघोक और सुब्रमण्यम स्वामी थे। उन्होंने कहा गड़बड़ी बैलेट पेपर में थी। मास्को से बैलेट पेपर बन कर आये हैं। जिसमें ठप्पा कही भी लगाइये पर आखिर में दो बैलों की जोडी पर ही ठप्पा दिखायी देता है। ये सब बकवास तब भी था। अब भी है।’
‘तो अगर मैनेज हो ना पाया तब क्या होगा ? ’
‘तब…संविधान कुछ और तोड़-मरोड़ दिया जायेगा ! आप देख नहीं रहे है संसद का शीत-कालीन सत्र टालना । और टालते हुये एहसास कराना कि- हम कुछ भी कर सकते है.. ये खतरनाक है !’
‘लेकिन हमें लगता है गुजरात हार गये तो डर जायेंगे । कुछ लोकतांत्रिक मूल्यो की बात होगी। ’
‘अरे..तो डर में ही तो सबकुछ होता है । डर ना होता तो गुजरात देश से बड़ा ना होता ! ’
‘लेकिन कोई है भी नहीं जो कहे कि गलत हो रहा है !’
‘ठीक कह रहे है …मूछें एंठते रहिये ..हम कैबिनेट मंत्री है । सारी ठकुराई निकल गई ! ’
‘पर गुजरात के बाद हो सकता है कोई निकले ! ‘.
‘..अरे तब निकलने से क्या होगा । याद कीजिये, निकले तो जगजीवन राम भी थे । पर कब..? .और हुआ क्या ? बहुगुणा को ही याद कर लीजिये । निकलने के लिये नैतिक बल चाहिये । गाना सुना है ना आपने… सब कुछ लुटाकर होश में आये तो क्या मिला ! ‘
‘तो पार्टी तो आपकी है ! ..फिर आप क्यों नहीं ?’
‘देखिये अभी अपने-अपने स्वार्थ के आसरे एकजुटता है। तो स्वार्थ-हित कहता है विरोध मत करो। तो फिर हर कोई वैसे ही टिका है। और ये पार्टी दफ्तर नहीं रोजगार दफ्तर है। जो कार्यकर्ता बन गया उसे कुछ चाहिये। और कुछ चाहिये तो कुछ का गुणगाण करने भी आना चाहिये । तो चल रहा है !’
‘पर ये कब तक चलेगा ?’
‘जब तक जनता को लगेगा ! ’
‘और जनता को कब तक लगेगा ?’
‘जब तक उसे भूख नहीं लगेगी !’
‘भूख नहीं लगेगी का क्या मतलब हुआ?’
‘देखिये आज आपका पेट भी आजाद नहीं है, दिमाग तो दूर की बात है। आप खुद को ही परख लीजिये …और बताइये, मीडिया का क्या हाल है ? सभी के अपने इंटरेस्ट हैं। तो झटके में संपादक कहां चला गया ? इंदिरा के दौर में तो संपादक थे। इमरजेन्सी लगी तो विरोध हुआ !
‘अब देखिये वसुंधरा राज की नीतियों का विरोध करते हुये एक अखबार संपादकीय खाली छोड देता है..’
‘तो आपके मन में ये सवाल नहीं आता कि जिस देश में सरकार ने आपकी जिन्दगी को कैशलैस कर अपनी मुठ्ठी में सबकुछ समेटने की कोशिश की है उसके खिलाफ क्यों नहीं कोई अखबार संपादकीय खाली छोडता है ? …देखिये लोकतंत्र का स्वांग आप भी कर रहे हैं। और लोकतंत्र के इस स्वांग को जनता भी देख रही है। अगर लोकतंत्र के चारो पाये ही बताने लगे कि लोकतंत्र का मतलब वंदे मातरम् कहने में है तो जनता क्या करेगी ? …उसकी लड़ाई तो भूख से है । रोजगार से है। हर कोई स्वांग कैसे कर रहा है आप खुद ही देख लिजिये…एक ने कहा गंगा में हाइड्रो पावर पोजेक्ट बनायेंगे। दूसरा बोला गंगा में बडी बस चलायेगें। तीसरा बोला शुद्ध करेंगे ….अविरल कौन करेगा कोई नहीं जानता। और हालात इतने बुरे हो चले हैं कि दुनिया के रिसर्च स्कालर गंगा पर शोध कर समूचा खाका रख दे रहे है। अरे उन्हें ही पढ लो। आप भी पढिए ..ऑक्सफोर्ड पब्लिकेशन से एक किताब आई है ..गंगा फॉर लाइफ ..गंगा फॉर डेथ । सबकुछ तो उसने लिख दिया। और जिस गंगा पर देश की 41 फिसदी आबादी निर्भर है। उस गंगा को लेकर भी आप मजाक ही कर रहे है। ….अरे…चाय तो पिजिये । ग्रीन टी है । इसमें केसर मिलाकर पिया कीजिये इस मौसम में तबियत बिगडेगी नहीं ! ’
‘जी..अच्छी है चाय..’
‘हा हा.. इसमें शहद भी मिलाया कीजिये । गला साफ रहेगा…’
‘हां मेरी तो तबियत बिगडी हुई है । गला भी जाम है । पाल्यूशन दिल्ली में खासा बढा हुआ है ! ’
‘अब आप भी पल्यूशन के चक्कर मे ना रहिये …दिल्ली कोई आज से पोल्यूटेड है ..याद कीजिये 70-80 के दशक से ही दिल्ली में राजस्थान से रेगिस्तानी हवा उड़ कर आती थी। पूरा रिज का इलाका …वहाँ भी सिर्फ धूल ही धूल…हम काली आंधी कहते थे …घर के दरवाजे…खिड़की बंद करनी पडती थी। और ये गर्मी के वक्त तीन महीने मई से जुलाई के दौर में रहता था। तब पोल्यूशन नहीं रहता था क्या ?…..प्रदूषण पूरे देश में है। पर प्रदूषण से बचने के उपाय का बाजार दिल्ली में है। तो डर के इस बाजार को हर जगह पैदा किया जा रहा है। देखिये जब कोई काम नहीं होता है तो ऐसा ही होता है ….दिल्ली-मुबई के जरिये बताया गया…ईज़ आफ बिजनेस….अरे भाई मौका मिले तो एक बार विदेश मंत्रालय की आफिशियल साइट को ही देख लीजिये..अगर देश में धंधा करना इतना शानदार है तो फिर बीते दो-तीन बरस में सबसे ज्यादा भारतीय देश छोडकर चले क्यो गये….लगातार जा रहे है ! ..आपको आंकडे मिल जायेंगे .कैसे कब दो करोड से चार करोड भारतीय विदेश में बसने की स्थिति में आ गये….द इक्नामिक इंपोर्टेस आफ हंटिंग पढ़ें…आप बार बार किताबों का रेफरन्स देते है। ’
‘तो क्या मौजूदा वक्त में कोई पढता नहीं ? ’
‘..पढ़ता होगा..पर आप ज़रा सोचिये, जर्मनी की काउंसलर से लेकर हर कोई भारतीय प्रमुखों के सामने बैठे है…और अचनक एक नौकरशाह बताने लगे कैसे खास है हमारे वाले….बहुत बोलते नहीं …पर बड़े बडे़ काम खामोशी से करते है ….यानी राग दरबारी दुनिया के बाजार में भी ! ..तो प्रभावित हर किसी को होना ही चाहिये…हो भी रहे हैं …पहली बार हर कोई देख रहा है …इस लहजे में भी बात होती है । आप जरा रुस के राष्ठ्रपति पुतिन को ही देख लें । कैसे आज की तारीख में वह कितने ताकतवर है । और कैसे हो गये । रुस तो खुलापन खोजते-खोजते ढह गया..और पुतिन के ही सारे सगे संबंधी हर बडी कंपनी के सर्वोसर्वा हैं …अब गैस की पाइपलाइन को थोडा सा ही ऐंठ दिया तो जर्मानी तक पर संकट आ जायेगा…. हमने तो इनर्जी से लेकर रोजगार तक को लेकर ड्राफ्ट तैयार किया । देश की आठ प्राथमिकता क्या होनी चाहिये, इसे बताया। 2014 के मैनीफेस्टो को ही पलट कर आप देख लीजिये !…देखिए बौद्दिकता एक जगह….सत्ता हांकना एक जगह । दिल्ली से सटा इलाका है मनेसर। वहाँ पर दिमाग का रिसर्च सेंटर है। पर जरा किसी से पूछिये दिमाग औरमाईंड में अंतर क्या है ? ..कौन बतायेगा ? दरअसल ब्रेन इज द साउंड बाक्स आफ माइंड । या आप कहे ब्रेन कंप्यूटर है । पर माइंड साफ्टवेयर है । पर यहा तो बात हार्ड-वर्क की हो रही है…कौन ज्यादा से ज्यादा दौडता नजर आ रहा है !’
……बाते चलती रहीं .चाय की एक और प्याली भी आ गई…पर ये बात किससे हो रही है…कहाँ हो रही है । हमारे ख्याल से ये बताने की जरुरत नहीं होनी चाहिये..सिर्फ समझ लेना चाहिये कि हवा का रुख है कैसा..तो आप सोचिये कौन है ये शख्स !