मिलिए उस गुमनाम क्रांतिकारी से, जिसके संघर्ष के बिना बलात्‍कारी बाबा की सीबीआइ जांच असंभव थी!



गुरमीत राम रहीम की सज़ा की मात्रा पर फैसला आने वाला है। दो दिन पहले उसे बलात्‍कार का दोषी करार दिया जा चुका है। घटनाओं की क्षणजीविता के इस दौर में जब मीडिया ने चार दिन पहले राम राहीम के बलात्‍कार कांड की परतें दोबारा खोदना शुरू की थीं, तो उसे इस घटना के केंद्र में एक पत्रकार हाथ लगा था। रामचंद्र छत्रपति- जिन्‍हें हर वह शख्‍स जानता है जो 2002 में उन्‍हें गोली मारे जाने के वक्‍त सक्रिय था। छत्रपति वास्‍तव में इस प्रकरण में नायक बनकर उभरते हैं क्‍योंकि गुमनाम साध्‍वी द्वारा प्रधानमंत्री व अन्‍य को लिखी गई चिट्ठी को सबसे पहले उन्‍होंने ही सांध्‍य दैनिक ‘पूरा सच’ में प्रकाशित किया था। रामचंद्र छत्रपति को 24 अक्‍टूबर 2002 को डेरे के कुछ लोगों ने गोली मार दी थी। आज तक उनकी हत्‍या का मुकदमा चल रहा है ।

रामचंद्र के मारे जाने के बाद हरियाणा में कुछ और लोग थे जो मीडिया की चमक-दमक से दूर साध्‍वी बलात्‍कार कांड के लिए इंसाफ की लड़ाई लड़ रहे थे। यह संघर्ष चिट्ठी प्रकाशित होने के पहले शुरू हुआ था और 5 फरवरी 2003 को परवान चढ़ा था जब जन संघर्ष मंच, हरियाणा के कुछ नेताओं और कार्यकर्ताओं को मामले की सीबीआइ जांच की मांग के चलते जेल में ठूंस दिया गया था और उन पर लगातार छह साल तक मुकदमा चला। एक गुमनाम चिट्ठी के आधार पर इंसाफ़ की लड़ाई लड़ने वाले ये गुमनाम चेहरे आज भी मीडिया में नहीं आ सके हैं। इन्‍होंने बलात्‍कारी बाबा का राज़फाश करने में जितनी मेहनत की और जितनी यातनाएं झेलीं, वे कहानियां नायक और खलनायक की फिल्‍मी दास्‍तान के बीच दबकर रह गईं।

इन्‍हीं बेहद आम और मामूली नायकों में एक थीं हरियाणा की एडवोकेट और जन संघर्ष मंच की महासचिव सुदेश कुमारी, जो उस वक्‍त मंच की संयोजक हुआ करती थीं। सुदेश कुमारी का दलित और महिला उत्‍पीड़न के मामलों में संघर्ष का लंबा इतिहास रहा है, लेकिन बीते चार दिनों से जो कहानी मीडिया में छायी हुई है उसके किरदारों में उन्‍हें अब तक अपनी वाजिब जगह नहीं मिल सकी है।

कुरुक्षेत्र में रहने वाली सुदेश कुमारी से मीडियाविजिल ने लंबी बातचीत की और जानने की कोशिश की कि आखिर एक गुमनाम चिट्ठी के आधार पर अदालत ने जो स्‍वत: संज्ञान लेकर बलात्‍कार का मुकदमा कायम किया और बलात्‍कारी बाबा की सीबीआइ जांच हुई, उसमें हरियाणा के आम लोगों और जन संगठनों की क्‍या भूमिका थी। आखिर पूरी कहानी की शुरुआत कैसे होती है और किन पड़ावों से होकर यह आज ऐसी स्थिति में पहुंची है जब इतने ताकतवर बाबा को सज़ा सुनाई जानी है।

राम रहीम के बलात्‍कार कांड की कहानी 10 जुलाई, 2002 को शुरू होती है जब पीडि़ता साध्‍वी के भाई रणजीत सिंह की हत्‍या हुई थी। रणजीत सिंह की पांच बहनें थीं और वह बाबा राम रहीम का बहुत करीबी अनुयायी हुआ करता था। हरियाणा राज्‍य की डेरे की जो 10 सदस्‍यीय आंतरिक कमेटी थी, वह उसका सदस्‍य था। डेरे के भीतर उसकी एक कोठी भी थी। साध्‍वी के साथ जब बलात्‍कार हुआ, तो उसने सबसे पहले इसकी जानकारी अपने भाई रणजीत को दी थी। रणजीत से यह सहन नहीं हुआ, तो उसने डेरे से अपना नाता तोड़ लिया और अपने साथियों के माध्‍यम से उसने साध्‍वी से बलात्‍कार वाली गुमनाम चिट्ठी का प्रचार करना शुरू किया। उससे माफी मांगने को भी कहा गया था लेकिन वह नहीं डिगा। इसी के चलते उासकी हत्‍या कर दी गई। इस मामले में यह पहली हत्‍या थी जिसका मुकदमा अनजान लोगों के खिलाफ़ दर्ज हुआ और आज तक सुनवाई जारी है।

रणजीत के दो छोटे बेटे और एक बिटिया थी। उसका बाप बुजुर्ग था। घर में और कोई पुरुष सदस्‍य नहीं था। जब रणजीत की हत्या हुई, तब साध्‍वी जन संघर्ष मंच, हरियाणा की संयोजक सुदेश कुमारी के संपर्क में आई और उसने अपनी आपबीती सुनाई। सुदेश बताती हैं, ”साध्‍वी इतनी डरी हुई थी कि उसे लग रहा था कि कहीं उसकी भी हत्‍या अपने भाई की तरह न हो जाए। उसकी करोई शिकायत नहीं लिखी ला रही थी। पुलिस भी मिली हुई थी। साध्‍वी का कहना था कि अगर एक बार उसके भाई की हत्‍या की जांच सीबीआइ से हो जाए तो सारा मामला खुल जाएगा।” मंच ने यहीं से सीबीआइ जांच की मांग का आंदोलन छेड़ा।

तब तक रामचंद्र छत्रपति इस मामले में कहीं भी सामने नहीं आए थे। गुमनाम चिट्ठी किसी और अख़बार में जब नहीं छपी, तब छत्रपति ने अपने अखबार में उसे छापा। उनकी हत्‍या हो गई। यह इस मामले में दूसरी हत्‍या थी। हत्‍यारों को मौके पर ही पकड़ लिया गया। वे डेरे के लोग थे। उन्‍होंने बयान दिया कि हमें किशनलाल ने भेजा है मारने के लिए, जो डेरे का प्रबंधक है। सुदेश कहती हैं, ”जब छत्रपतिजी की अस्थियां आई तो उस वक्‍त एक शोकसभा हुई और हमने ये प्रस्‍ताव पास किया कि सीबीआइ जांच के लिए एक अभियान चलाया जाए जिससे पत्रकार को, रणजीत को और साध्‍वी तीनों को इंसाफ़ मिल सके। फिर हमने इस मिशन के लिए योजना बनाई।”

कुरुक्षेत्र में हर साल गीता उत्‍सव होता है। 2002 में भी हुआ। उसमें उपराष्‍ट्रपति भैरोंसिंह शेखावत को आना था। उस मौके का फायदा उठाते हुए सुदेश कुमारी के महिला संगठन ने ब्रह्म सरोवर पर आयोजित कार्यक्रम में बीच में ही बलात्‍कार और दोनों हत्‍याओं के मामले में खोल दिया। गीता उत्‍सव के बीचोबीच भारी प्रदर्शन हुआ और सुदेश व अन्‍य को गिरफ्तार कर लिया गया। इनके दिमाग में यह था कि उपराष्‍ट्रपति के आने पर अगर मामले को खोला जाए तो शायद इसका कुछ असर पड़े।

इसके बाद जन संघर्ष मंच पर बाबा के लोगों ने संगठित हमले शुरू किए। वे बताती हैं, ”कोई भी राजनीतिक दल सामने नहीं आया। हमें हत्‍या की धमकी दी गई। हमारा वीडियो बनाया गया। उस समय मैं कनवीनर थी मंच की… हमने सूझबूझ के साथ पब्लिक प्‍लेस, कॉलेज आदि जगहों पर अलग-अलग जिलों में कैंप लगाए। सोनीपत, सिरसा, झज्‍जर… उस वक्‍त हमने कुल 15 जिले कवर किए और प्रचार चलाया।”

इस अभियान के क्रम में 5 फरवरी 2003 को सुदेश अपने साथियों के संग फतेहाबाद पहुंचीं। उनके साथ पांच महिलाएं थीं और नौ छात्र थे। सुबह दस बजे इन्‍होंने प्रचार करने के लिए कैंप लगाया। कुरुक्षेत्र के बस स्‍टैंड पर इन्‍होंने पोस्‍टर लगाए और जन दबाव बड़े पैमाने पर कायम हुआ। सीबीआइ जांच की मांग के लिए लाखों हस्‍ताक्षर करवाए गए। 5 फरवरी को फतेहाबाद के बस अड्डे पर सबसे बड़ा हमला डेरा समर्थकों की ओर से हुआ। करीब पांच-सात सौ लोगों ने इकट्ठा होकर औरतों के ऊपर हमला किया। कपड़े फाड़ दिए गए। चुन्नियां खींचीं। मारा पीटा। चोट लगी। लूटपाट हुआ। सारे काग़ज़ात लूट लिए गए। फतेहाबाद पुलिस इन्‍हें थाना सिटि ले गई और यह समझाया कि वे लोग हज़ारों की संख्‍या में हैं इसलिए इनकी जान को खतरा है। बचाने के बहाने से पुलिस इन्‍हें थाने ले गई और वहां उलटे इन्‍हीं के ऊपर हत्‍या की कोशिश का मुकदमा कायम कर दिया। यह आरोप लगाया कि इन 5 महिलाओं और 9 पुरुषों ने हत्‍या करने के उद्देश्‍य से डेरा समर्थकों पर हमला किया।

सुदेश बताती हैं, ”307 में ज़मानत नहीं हो सकती थी, तो हमें हिसार जेल में रखा गया। हम डेढ़ महीने जेल में रहे। उसके बाद ज़मानत हो सकी। प्रशासन पूरा मिला हुआ था। डॉक्‍टरो को भी इन्‍होंने मिला लिया। झूठी रिपोर्ट लिखवा ली।” इनके अंदर जाने के बाद समूचे राज्‍य में बड़े प्रदर्शन हुए और मंच ने सघन एकजुट अभियान चलाया।

दूसरी धाराओं में इनके ऊपर छह साल तक केस चला। 10 जून 2009 को इन्‍हें बरी किया गया। इनके ऊपर लगे आरोप के पक्ष में एक परचे की बरामदगी को सबूत दिखाया गया था जिसमें इन्‍होंने बाबा की सीबीआइ जांच की मांग की थी। इनके अभियान का असर ये हुआ कि 2003 के अंत में रणजीत सिंह और छत्रपति दोनों की हत्‍या के मामले सीबीआइ को सौंपे गए। बलात्‍कार का मामला तो स्‍वत: संज्ञान में लिया जा चुका था क्‍योंकि गुमनाम चिट्ठी तो पंजाब और हरियाणा के मुख्‍य न्‍यायाधीश को भी भेजी गई थी। अगर जन संघर्ष मंच का अभियान न चलता, तो शायद ये मामले दबकर रह जाते।

सुदेश कुमारी बताती हैं, ”हत्‍या के दोनों मामले में फाइनल आर्गुमेंट चल रहा है। तीनों मुकदमे अलग चल रहे हैं लेकिन आज के फैसले से मोटिव क्‍लीयर हो जाएगा जो बाकी दोनों के मामले में कनविक्‍शन में मदद देगा।”