NPA पर कार्रवाई मतलब मामला बंद ! कंपनी पस्त ! मालिक मस्त !!



दिवालिया होने वालों के मन में लड्डू फूट रहे हैं!
(मुकेश असीम)

कारोबारी चैनल CNBC पर वाहवाही हो रही है कि रिजर्व बैंक ने 12 बड़े ख़राब कर्ज खातों को दिवालिया घोषित कर NPA के ख़िलाफ़ युद्ध का ऐलान कर दिया है! सोचने की बात है कि NPA पर युद्ध के ऐलान पर कॉर्पोरेट भोंपू चैनल क्यों वाहवाही कर रहा है? आइये देखते हैं कि अब क्या होने वाला है|

दिवालियापन की अदालत में मामला जायेगा तो वह पहले तो कंपनी के खिलाफ चल रहे सारे मामले बंद करने का हुक्म देगी और इस मामले के लिए एक पेशेवर को नियुक्त करेगी। यह पेशेवर कौन हैं? चार्टर्ड/कोस्ट अकाउंटेंट वग़ैरह को यह लाइसेंस मिला है। वही अकाउंटेंट जो पहले ही इन कंपनियों और बैंकों के ऑडिट कर इन्हें सेहतमंद और सब सही होने की सनदें बाँट चुके हैं! जिनको भी कंपनी से कुछ लेना है वह सब अपने दावे इन्हें देंगे| अब ये कंपनी का पूरा हिसाब किताब लगाकर बतायेंगे कि कंपनी से कितनी वसूली हो सकती है और उस राशि का बँटवारा लेनदारों में करेंगे। लेनदारों के पास एक निश्चित वक़्त में इसे मानने- ना मानने का मौका होगा। इस सब की रिपोर्ट बनाकर अदालत में पेश की जाएगी। 180 दिन में मामला समाप्त कर दिया जायेगा। लेनदार को जितना मिला लेकर चुप बैठे, कंपनी बंद, सेठ भी नया कारोबार चलाने के लिए आज़ाद! वाहवाही तो बनती है!

मिसाल के तौर पर देखें तो इन 12 मामलों में एक भूषण स्टील है जिस पर 46 हजार करोड़ का कर्ज है और इसकी संपत्ति की कीमत सिर्फ़ 2 हजार करोड़ बताई जा रही है। बाकी सारी पहले ही खुद मालिकों ने कंपनी से चुराकर अपने निजी खातों में पहुँचा दी है अर्थात कंपनी पस्त, मालिक मस्त! अब 2 हजार करोड़ देकर कंपनी बंद, सारे मामले बंद! सेठ की भी छुट्टी! वाहवाही तो बनती ही है!

अब बैंक को होने वाले घाटे का क्या होगा? उसके लिए रिज़र्व बैंक उन्हें इस घाटे की भरपाई के लिए लम्बा वक्त देने जा रहा है अर्थात उन्हें इस घाटे को तुरंत नहीं दिखाना पड़ेगा (provisioning norms will be relaxed)| समझे, घाटा होते हुए भी बैंक खाते में मुनाफा दिखाते रहेंगे! वाहवाही तो बनती है ना!

कल माल्या के मामले की भी सुनवाई थी, लन्दन की अदालत में। वहाँ आज सरकार ने खुद ही मान लिया कि हमने पहले जो मनी लौंडरिंग का आरोप दाखिल किया था वह कमजोर था ! अब हम अदालत में फ्रॉड का दूसरा आरोप दाखिल करेंगे!  समझे?  मामले जानबूझकर कैसे हारे जाते हैं?

अब तो पक्की वाहवाही बनती है ना!

दूसरा तरफ़, टेलीकॉम कंपनियों को राहत पैकेज देने के लिए सरकार ने सुनवाई शुरू कर दी है| इन कंपनियों को 5 लाख करोड़ बैंकों का और 3 लाख करोड़ सरकार को देना है| एक प्रस्ताव जो अभी तक सामने आया है कि सरकार को स्पेक्ट्रम के लिए 10 साल में दी जाने वाली रकम 20 साल में दी जाये अर्थात इनकी देनदारी एक तिहाई रह जायेगी| इससे रिजर्व बैंक, स्टेट बैंक और भाँड़ मीडिया-अर्थशास्त्री किसी को ‘नैतिकता’ पर कोई खतरा नहीं लगता क्योंकि जो मालिकों के हित में हो सिर्फ वही नैतिक होता है!

नोट – इससे पहले कि कुछ लोग 10 से 20 साल में एक तिहाई के बदले आधा ही होने का कुतर्क दें, याद रहे कि मुद्रा भी खुद एक माल है और समय के साथ इसकी कीमत घटती है| आज का 100 रु 5 साल बाद के 100 रु से ज्यादा होता है!