बुधवार आधी रात वेब पत्रिका ‘द क्विंट‘ पर नियंत्रण रेखा (एलओसी) पार कर के भारतीय फौज द्वारा आतकियों पर किए गए ‘सर्जिकल’ हमले की खबर प्रकाशित होने के बाद सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की ऐसी बाढ़ आ गई कि वेबसाइट को दबाव में गुरुवार सुबह दोबारा अपने ‘सूत्रों’ से इसकी पुष्टि करनी पड़ी। जो लोग इस खबर को फर्जी मान रहे थे, उन्होंने सुबह होते-होते इसके जवाब में टाइम्स ऑफ इंडिया में प्रकाशित एक खबर का सहारा लेकर अपनी बात को मज़बूती दी कि सेना ने ऐसे किसी ऑपरेशन से इनकार किया है। दिलचस्प बात यह है कि टाइम्स की ख़बर भी सैन्य सूत्रों पर आधारित है।
अपनी-अपनी आस्था के हिसाब से ‘सर्जिकल’ हमले की खबर को सच या झूठ मानना एक बात हो सकती है, लेकिन द क्विंट ने पूरी खबर ‘सूत्रों’ के हवाले से चलाई है जिससे स्वाभाविक तौर पर संदेह पैदा होता है। शिव अरूर इस बारे में लिखते हैं कि अगर यह ख़बर सच भी हो, तो भी कोई इसे रिपोर्ट कैसे कर सकता है क्योंकि ये तो ”कोवर्ट” यानी प्रच्छन्न ऑपरेशन था और इससे देश की सुरक्षा को ख़तरा पैदा होता है।
Standing by story means zilch.
No official comment ever on covert ops.
Story endangers real ops / our troops on ground.
Alerts Pak. https://t.co/XFVNgoYpwe— Shiv Aroor (@ShivAroor) September 22, 2016
Report about Indian commandos crossing LoC to kill terrorists. *EVEN* if true, what kind of moron reports it? Threatens ops & our troops!
— Shiv Aroor (@ShivAroor) September 21, 2016
टाइम्स ऑफ इंडिया का हवाला देकर ख़बर को झूठा बता रहे लोग इस बात पर ध्यान नहीं दे रहे कि उसमें भी सैन्य ‘सूत्रों’ के हवाले से ही लिखा गया है। हद तो यह है कि इसे अतिरंजित करते हुए कई जगह सेना का आधिकारिक बयान बताया जा रहा है।
रिटायर्ड कर्नल और रणनीतिक मामलों के जानकार अजय शुक्ला ने लिखा है कि कुछ पत्रकार जान-बूझ कर खबर प्लान्ट कर रहे हैं जबकि ”सेना ने आधिकारिक रूप से इसका खंडन किया है”।
Some journos are hallucinating… or perhaps motivated disinformation thru chosen plants! This has been formally denied by the military. https://t.co/IyEp1NsJsv
— Ajai Shukla (@ajaishukla) September 22, 2016
इस दौरान एक महत्वपूर्ण घटनाक्रम में रक्षा मंत्रालय ने मीडिया से कहा है कि सेना के बारे में किसी भी ख़बर को संपादकों को अपने डिफेंस रिपोर्टरों के माध्यम से सेना के कोर मुख्यालय या कमान में स्थित मीडिया सेंटर से ”प्री-वेरिफाइ” करवाना होगा।
Get your stories on army ‘pre-verified’, MoD tells media (post-Emergency first?) @thewire_in reports | https://t.co/GAriIfRWkA
— Praveen Swami (@praveenswami) September 22, 2016
यह निर्देश दि इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित एक ख़बर की प्रतिक्रिया में आया है जिसमें 21 सितंबर को उरी हमले के संबंध में डीजीएमओ लेफ्टिनेंट जनरल रणबीर सिंह के उस दावे को गलत बताया गया था कि हमलावर चारों आतंकियों के हथियारों पर ”पाकिस्तानी निशान” थे।
दि वायर इस संबंध में प्रकाशित अपनी ख़बर में कहता है कि रक्षा मंत्रालय की इस मांग का कोई कानूनी आधार नहीं है। अकेले इज़रायल ऐसा देश है जहां ख़बरों के प्रकाशन पर सेना का सेंसर लागू है।
बहरहाल, सरहद के दोनों ओर लगातार बढ़ते तनाव के बीच सूत्रों के हवाले से छापी जा रही ख़बरों ने पाठकों के बीच संदेह का माहौल कायम कर दिया है। इस संबंध में सोशल मीडिया पर दो अहम सवाल उठ रहे हैं। अगर सेना ने वाकई कोई ‘कोवर्ट ऑपरेशन’ एलओसी के पार चलाया है तो इसके बारे में मीडिया को क्यों बताएगी। दूसरा सवाल टाइम्स की ख़बर के संदर्भ में यह है कि अगर सेना के सूत्रों ने हमले की ख़बर का खंडन किया है, तो यह अस्वाभाविक कैसे है।
कुल मिलाकर स्थिति यह बनती है कि सूत्रों पर टिकी रक्षा पत्रकारिता के इस खेल में सारा मामला अपनी-अपनी आस्था पर आकर टिक जा रहा है। जिन्हें हमले से संतोष मिला है, वे क्विंट की खबर को सही मान रहे हैं और जो उसे सही नहीं मान रहे, वे टाइम्स की ख़बर का हवाला दे रहे हैं। विडंबना यह है कि दोनों ही ख़बरें अनधिकारिक हैं।
शिव अरूर इस समूचे घटनाक्रम को ”मनोवैज्ञानिक युद्धकौशल” यानी साइकोलॉजिकल-ऑप्स का नाम देते हुए संक्षेप में कुछ तरह एक ट्वीट में समझाते हैं:
Here’s how it works:
1. Army denies but can’t officially.
2. Pak can’t deny w/o admitting presence of terrorists.#DenialProof. #PsyOps
— Shiv Aroor (@ShivAroor) September 22, 2016
तस्वीर साभार 123rf.com