प्रकाश के रे
पिछले कुछ दिनों से ब्रिटेन के कुछ अखबार लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉर्बिन के खिलाफ अभियान छेड़े हुए हैं. इन अखबारों ने आरोप लगाया है कि कॉर्बिन ने अस्सी के दशक में चेकोस्लावाकिया की खुफिया एजेंसी को सूचनाएँ उपलब्ध करायी थी. सत्ताधारी कंजरवेटिव पार्टी का नेतृत्व सियासी फायदे को देखते हुए ऐसी सनसनीखेज खबर को भुनाने में लग गया. पार्टी के भीतर और बाहर हमले झेलतीं तथा पार्टी की लोकप्रियता कम होने का प्रमुख कारण मानी जा रहीं प्रधानमंत्री थेरेसा मे ने कहा कि कॉर्बिन को इस मामले में साफगोई और पारदर्शिता बरतनी चाहिए.
प्रधानमंत्री मे का बयान 19 फरवरी के टेलीग्राफ की जिस स्टोरी में छपा है, वह बमुश्किल सौ शब्दों का है. इस खबर में बाइलाइन लगी है अखबार के चीफ पॉलिटिकल कोरेस्पॉन्डेंट क्रिस्टोफर होप और पोलिटिकल एडीटर गॉर्डन रेनर की. ब्रिटेन के सबसे बड़े अखबारों में से एक के इतने बड़े दो पत्रकार इन सौ शब्दों में यह भी बताते हैं कि कुछ टोरी सांसद उस पूर्व जासूस को पूछताछ के लिए संसद भी बुला सकते हैं.
जिस तरह से ब्रिटिश प्रधानमंत्री ने बेरुखी से इस मुद्दे को लिया है, उससे पता चलता है कि उन्हें भी पता है कि इस आरोप में कोई दम नहीं है. इसका एक संकेत टोरी पार्टी के उपाध्यक्ष और सांसद बेन ब्रेडली द्वारा इस बारे में अपने ट्वीट को डिलीट करना भी है. जैसे ही पहली बार यह खबर सामने आयी थी, ब्रेडली ने ट्वीट कर दिया था. जब लेबर पार्टी के प्रतिनिधियों ने उनसे मुलाकात कर मुकदमा दायर करने की धमकी दी थी. इसके तुरंत बाद ब्रेडली ने उस ट्वीट को डिलीट कर दिया था. आज खबर यह आ रही है कि जेरेमी कॉर्बिन ने ब्रेडली से माफी मांगने और समाज सेवा के लिए दान देने को कहा है. ऐसा नहीं करने पर मुकदमे की धमकी दी है. इसी बीच 20 फरवरी की रात जेरेमी कॉर्बिन ने पौने दो मिनट के वीडियो संदेश में आरोपों को कीचड़ उछालने की मूर्खतापूर्ण कोशिश बताया. उन्होंने कहा है कि जेम्स बॉन्ड बन रहे अखबारों के खरबपति मालिक टैक्स चोरी करते हैं और वे लेबर सरकार की संभावना से चिंतित हैं. लेबर नेता ने उन अखबार मालिकों को कहा है कि उनके लिए एक ख़बर है- बदलाव आ रहा है. इससे पहले सोमवार को एक कार्यक्रम के बाद ‘द डेली मेल’ के संवाददाता द्वारा इस मसले पर पूछे एक सवाल के जवाब में लेबर नेता ने कहा कि उन्हें दुख है कि मेल कुछ बेवकूफियों को फिर से छाप रहा है जो पहले ‘द सन’ में छप चुकी हैं. अखबार मालिकों के बयान के बारे में कंजरवेटिव अखबार कॉर्बिन पर मीडिया को धमकी देने का आरोप लगा रहे हैं.
मामला क्या है?
‘द सन’ के रिपोर्टर जेक रयान ने 14 फरवरी को कुछ खुफिया फाइलों के आधार पर ‘एक्सक्लुसिव’ रिपोर्ट छापी कि अस्सी के दशक में जेरेमी कॉर्बिन एक कम्युनिस्ट जासूस से मिले थे और उसे अहम सूचनाएं दी थीं. इस रिपोर्ट में चेक खुफिया विभाग के आर्काइव से चार पन्ने भी दिये गये हैं. फाइलों के हवाले से कहा गया है कि कॉर्बिन को चेक जासूसों ने 1986 में चिन्हित किया था और उनमें से एक के साथ कॉर्बिन ने कम-से-कम तीन दफे मुलाकात की थी. इनमें से दो मुलाकातें ब्रिटिश संसद के परिसर में हुई थीं.
कॉर्बिन के प्रवक्ता ने इस बारे में बताया कि वे एक राजनयिक से जरूर मिले थे, पर उन्हें यह नहीं पता था कि वह व्यक्ति एक जासूस है. दस्तावेजों के आधार पर रिपोर्ट में बताया गया है कि कॉर्बिन का रवैया अमेरिका और तत्कालीन थैचर सरकार के प्रति नकारात्मक था, जबकि पूर्वी ब्लॉक (साम्यवादी यूरोपीय देशों) को लेकर वे सकारात्मक थे और सोवियत संघ द्वारा की जा रही शांति पहलों का समर्थन करते थे.
‘द सन’ की यह रिपोर्ट यह भी बताती है कि इस अखबार को जो फाइलें मिली हैं, वह रूसी राष्ट्रपति पुतिन के खुफिया विभाग के पास भी हो सकती हैं. यह उल्लेखनीय है कि आज कल अमेरिका और यूरोप के देशों में राजनीति और चुनाव में पुतिन के दखल को लेकर एक अजीब तरह के शंकालु डर का आलम है.
रिपोर्ट में लेबर पार्टी से जुड़ी सिंथिया रॉबर्ट्स का भी जिक्र है जो बाद में चेकोस्लावाकिया चली गयी थी. इस रिपोर्ट के बाद विभिन्न अखबारों ने फॉलो-अप रिपोर्ट छापी और यह सिलसिला अब भी जारी है. इन रिपोर्टों में जासूसी, सुरक्षा और राजनीति से संबंधित विशेषज्ञों की भी टिप्पणियां खूब हैं.
‘द सन’ की 19 फरवरी की रिपोर्ट में, जिसमें जेक रेयान के साथ क्रिस पोलार्ड का नाम भी है, कुछ और जानकारियां देते हुए बताया गया है कि कॉर्बिन का नाम उन 120 ब्रिटिश लोगों में है जिन्हें चेक जासूसी तंत्र ने संपर्क किया था. उसी दिन की एक अन्य रिपोर्ट में अखबार ने उस चेक जासूस का नाम जान सार्कोसी बताया और उसका बयान छापा कि पूर्वी ब्लॉक के जासूसों के साथ 15 वरिष्ठ लेबर नेताओं ने उस दौर में सूचनाओं का आदान-प्रदान किया था. सार्कोसी ने अखबार को बताया कि वह 1986 और 1988 के बीच कॉर्बिन से चार बार मिला था. साल 1989 में उसे थैचर सरकार ने ब्रिटेन से निष्कासित कर दिया था.
इस चेक जासूस का दावा है कि लेबर पार्टी के वरिष्ठ नेताओं- जॉन मैक्डॉनेल और केन लिविंगस्टोन- ने पैसे भी पाये थे. अखबार का कहना है कि उसे जो दूसरी फाइल मिली है, वह तत्कालीन पूर्वी जर्मनी की जासूसी संस्था के आर्काइव में है. इसी अखबार ने 20 फरवरी को ह्यूगो गेयी की रिपोर्ट छापी है जिसमें सार्कोसी से बातचीत का और ब्यौरा दिया गया है. पोलार्ड और जेक रेयान ने 22 फरवरी को एक और विस्तृत रिपोर्ट में एक दूसरे चेक जासूस जान दाइमिक के हवाले से पहले की बातों को कुछ नयी सूचनाओं के साथ प्रकाशित किया. दाइमिक का उल्लेख पहले की कुछ रिपोर्टों में भी है. इसने अखबार को बताया कि वह लेबर सांसदों समेत 127 लोगों से मिला था.
आरोपों की हुई जोरदार निंदा
‘द गार्डियन’ में 20 फरवरी को चैथम हाउस के पूर्व उप निदेशक विलियम वालेस, लेबर समर्थक लिंडा वाकर और साम्यवादी कार्यकर्ता टिम वेब के पत्र एक साथ छपे हैं. इसके शीर्षक में कहा गया है कि जेरेमी कॉर्बिन की जासूसी की कहानियां साम्यवादियों के बिस्तर के नीचे छुपे होने के पुराने बेबुनियाद डर के पुनर्जीवित होने का प्रमाण है. इन तीनों पत्रों को पढ़ा जाना चाहिए. साथ ही, यह भी ध्यान रखा जाना चाहिए कि जासूसी अंतरराष्ट्रीय राजनीति का एक हिस्सा हमेशा से रहा है तथा शीत युद्ध के दौर में यह दोनों पक्षों द्वारा अंजाम दिया जाता रहा था. आज भी यह सब होता है. चूंकि इस विश्लेषण का उद्देश्य मीडिया में कॉर्बिन प्रकरण की रिपोर्टिंग और प्रतिक्रिया का आकलन करना है, इसलिए पार्टियों या दोनों तरफ की विचारधाराओं से सीधे जुड़े लोगों के स्टैंड पर चर्चा नहीं की जा रही है. जहां जरूरत है, वहां उल्लेख कर दिया गया है. जैसे कि लेबर पार्टी के उप नेता टॉम वाटसन ने चार दिन पहले ‘इंडिपेंडेंट’ में टोरी अखबारों पर जोरदार हमला बोलते हुए कॉर्बिन पर लगाये गये आरोपों को दक्षिणपंथी दुष्प्रचार कहा है. उनकी नजर में यह पत्रकारिता नहीं है. यह स्वाभाविक ही है कि लेबर और टोरी नेतृत्व के बीच इस मुद्दे पर आरोप-प्रत्यारोप हो रहा है.
अब देखते हैं कि ‘द सन’ और अन्य तीन अखबारों के आरोपों का मीडिया में खंडन कैसे हुआ और क्या तर्क दिये गये. इसी बीच ‘बीबीसी’ पर वरिष्ठ एंकर एंड्र्यू मूर के शो में ब्रेक्जिट मंत्री स्टीव बेकर को घेरा और सीधे शब्दों में कहा कि रक्षा मंत्री समेत पूरी टोरी जमात बिना किसी आधार या सबूत के लेबर नेता पर कीचड़ उछाल रही है और यही सबसे बड़ा स्कैंडल है. ‘वाइस’ ने इन आरोपों को खारिज करते हुए लिखा है कि अखबारों ने जासूस और उसकी विश्वसनीयता से जुड़े कुछ जरूरी विवरण चालाकी से छुपा लिये गये हैं.
‘द सन’ ने लिखा है कि सार्कोसी ने कॉर्बिन के साथ आजादी के आंदोलनों के बारे में चर्चा की थी यानी नेल्सन मंडेला और मध्य-पूर्व के देशों के आंदोलन के बारे में. सार्कोसी ने अपने दस्तावेजों में दर्ज किया है कि कॉर्बिन की जानकारी को सूचना के तौर पर इस्तेमाल नहीं किया जा सकता है क्योंकि वे आम बातें थीं. मजे की बात यह भी है कि उसने कॉर्बिन के कुत्ते और मछली पालने की भी बात लिखी है. ‘वाइस’ ने यह भी रेखांकित किया है कि अस्सी के दशक के आखिरी सालों में पूर्वी यूरोप के राजनयिकों और ब्रिटिश लेबर सांसदों की मुलाकातें सामान्य थीं. चेक खुफिया आर्काइव की प्रमुख ने भी चेक मीडिया को बताया है कि दस्तावेजों में कॉर्बिन को ‘सहयोगी’ के रूप में चिन्हित नहीं किया गया है. पर यदि सार्कोसी के दावों को कुछ देर के लिए मान भी लें, तो क्या ब्रिटिश खुफिया एजेंसी एमआइ5 की नजरों से मुख्य विपक्ष का यह इतना बड़ा जासूसी तंत्र बचा कैसे रह गया.
‘वाइस’ ने बताया है कि सार्कोसी की कई सारी बातों को ब्रिटिश मीडिया का कंजरवेटिव हिस्सा इसलिए छुपा रहा है क्योंकि वे बेहद हास्यास्पद हैं. पिछले दिनों स्लोवाकिया के सबसे ज्यादा बिकनेवाले टेबलॉयड नोवी चास (न्यू टाइम्स) ने सार्कोसी से बात की है. ‘वाइस’ बताता है कि उस अखबार के पत्रकार ने पूछा कि कॉर्बिन ने आपको क्या सूचनाएं दीं. इस पर पूर्व जासूस ने कहा कि कॉर्बिन ने बताया कि प्रधानमंत्री थैचर नाश्ते में क्या लेंगी और अगले दिन क्या पोशाक पहनेंगी. सोचिये, संसद के निचले सदन में पिछली बेंच पर बैठनेवाले लेबर पार्टी के सांसद को टोरी पार्टी ही नहीं, दुनिया की दमदार नेता कही जानेवाली प्रधानमंत्री मार्गरेट थैचर के खाने-पहनने का पता पहले से होता था! एक आरोप उसने यह लगाया कि परमाणु हथियारों के खिलाफ अभियान चलानेवाली संस्था को रक्षा मंत्रालय से जो सूचनाएं मिलती थीं, वह कॉर्बिन के जरिये सार्कोसी तक पहुंच जाती थीं. क्या रक्षा मंत्रालय एक छोटे समूह को खुफिया जानकारियां यूं ही दे देता था!
‘वाइस’ ने यह भी याद दिलाया है कि दक्षिणपंथी मीडिया पहले से ही ऐसी बातें करता रहा है. वर्ष 1992 में उदारवादी लेबर नेता नील किनॉक के ‘क्रेमलिन कनेक्शन’ पर बड़े-बड़े बैनर-होर्डिंग लगाये थे. फरवरी, 1995 में मौजूदा मामले की तरह इसी अखबार ने पूर्व लेबर नेता माइकल फूट को ‘केजीबी का एजेंट’ बताया था. लेकिन उसी साल जून में ‘संडे टाइम्स’ को माफी भी मांगना पड़ा था और भारी हर्जाना भी भरना पड़ा था. इसी तरह से ‘टेलीग्राफ’ ने बेबुनियाद रिपोर्ट इराक के सद्दाम हुसैन के पास महाविध्वंसक हथियार होने को लेकर छापी थी. सोलोमन ह्यूगस की यह रिपोर्ट पूछती है कि क्या मीडिया को ऐसे अकेले सूत्र या स्रोत के आधार पर ऐसी खबरें छापनी चाहिए और अखबार अपनी गिरती हुई विश्वसनीयता को और अधिक क्यों तबाह करना चाहते हैं.
साइमन चाइल्ड्स ने ‘वाइस’ में ही 22 फरवरी को एक लेख में बताया है कि कैसे कॉर्बिन को कम्यूनिस्ट जासूस कहने की रिपोर्टों के बचाव में मीडिया का दक्षिणपंथी धड़ा परेशान है क्योंकि ब्रिटेन में इन रिपोर्टों को गंभीरता से नहीं लिया गया है. एक घटना का जिक्र चाइल्ड्स ने किया है. कॉर्बिन 20 फरवरी को एक कॉरपोरेट समूह की बैठक में गये थे. वहां इस मसले पर सवाल पूछने पर ‘डेली मेल’ और ‘चैनल4न्यूज’ के रिपोर्टरों का लोगों ने ने मजाक बना दिया. यह महत्वपूर्ण है कि समाजवादी विचारों के कॉर्बिन पर लगे आरोपों को कॉरपोरेट भी गंभीरता से नहीं ले रहे हैं. ‘बीबीसी न्यूजनाइट’ के कूटनीतिक संपादक मार्क अर्बन ने ट्वीट किया है कि कुछ पूर्व जासूसों ने इन आरोपों को बेवकूफी कह कर खारिज कर दिया है.
1/3 spoke to some fmr British spooks about the Corbyn 'Czech spy' claim. They consider it nonsense, 'he had no secrets to give away' says one, E. Bloc officers in London 'had a pattern of exaggerating the importance of their contacts' says another
— Mark Urban (@MarkUrban01) February 20, 2018
सोमवार ‘रेडियो4’ के कार्यक्रम में डेली मेल के कॉलमनिस्ट स्टीफेन ग्लोवर ने तो यहां तक कह दिया कोई जेरेमी कॉर्बिन पर जासूस होने का आरोप नहीं लगा रहा है, जबकि उनके ही कॉलम में कॉर्बिन को जासूस बताया गया है. इस पूरे तमाशे को खड़ा करनेवाले अखबार ‘द सन’ के पॉलिटिकल एडिटर टॉम न्यूटन डुन ने भी बात बिगडती देख 18 फरवरी को ट्वीट किया कि कॉर्बिन के खिलाफ खास ठोस सबूत नहीं हैं.
There is little hard evidence Corbyn was a paid up spy. But he admits meeting a Czech intelligence officer (who he says he thought was only a diplomat) to talk, and this happened 4 times over 18 months in 1986-7. This questions his judgement.
— Tom Newton Dunn (@tnewtondunn) February 18, 2018
‘द गार्डियन’ में रॉबर्ट टेट, ल्यूक हार्डिंग, इवेन मैकआस्किल और बेन क्विन ने चेक गणराज्य और ब्रिटेन के कई खुफिया जानकारों से बात कर एक लंबी रिपोर्ट लिखी है. इसका सार-संक्षेप यह है कि कॉर्बिन के खिलाफ चेकोस्लावाकिया या पूर्वी जर्मनी का जासूस होने का कुछ भी सबूत नहीं है. इस मसले में रुचि रखनेवालों को यह रिपोर्ट जरूर पढ़नी चाहिए.
बीते ढाई सालों से कॉर्बिन और लेबर पार्टी की लोकप्रियता तेजी से बढ़ रही है. विभिन्न चुनावों में उनके प्रदर्शन बेहतर हो रहे हैं. लंदन के आगामी स्थानीय चुनाव के बारे में आकलन है कि लेबर पार्टी को भारी जीत मिलेगी, जो कि किसी भी दल के लिए 1968 के बाद की सबसे बड़ी जीत होगी. संसदीय चुनाव के अनुमान भी उन्हें आगे बता रहे हैं. जासूस कहे जाने से पहले इन ढाई सालों में उन्हें स्टालिनवादी, ट्रॉटस्कीवादी, फिलीस्तीनी हमास और आयरिश आईआरए का साथी, कम्यूनिस्ट, यहूदी विरोधी, राष्ट्रगान न गानेवाला आदि-आदि आरोपों से नवाजा जा चुका है. इन बातों का उल्टा असर ही हो रहा है. पार्टी के भीतर और बाहर के उनके विरोधी भी सिमटते दिख रहे हैं, और दक्षिणपंथी मीडिया का बाजार भी खराब हो रहा है. लोकतांत्रिक मूल्यों का अक्सर मजाक बनानेवाली भारतीय मीडिया को भी सबक सीखना चाहिए. देर-सबेर ही सही, बदलाव तो यहां भी आयेगा.