सुष्मिता
1995 में भंवरी देवी बलात्कार के मामले में चार आरोपियों को बरी करते हुए जयपुर जिला और सत्र अदालत ने कहा था “भारतीय संस्कृति अभी इस हद तक नहीं गिरी है कि गांव का एक भोलाभाला आदमी लोक–लाज की सभी मर्यादाओं को भूलकर, किसी वहशी भेड़िए की तरह औरत पर झपट पड़ने को लालायित हो जाए.” भारत में हुए सबसे प्रभावी नारीवादी आंदोलनों में से एक की शरुआत करने वाली महिला भंवरी देवी, जिन्होंने न्याय के लिए संघर्ष की राह कभी नहीं छोड़ी, यदि उनके मामले में ऐसी टिपण्णी की जा सकती है, तो सोचिए धोखे और चुनौतियों से भरा न्याय का रास्ता, हमारे-आपके लिए कितना कठिन हो सकता है।
भंवरी देवी वर्ष 1992 में राजस्थान महिला विकास कार्यक्रम (डब्ल्यूडीपी) के तहत ‘साथिन‘ (साथिन, एक दोस्त, एक सहयात्री के लिए उपयोग किया जाने वाला हिन्दी शब्द है) के रूप में काम कर रही थीं. डब्ल्यूडीपी का उद्देश्य ऐसे समूह बनाना था जो इसके साथ मिलकर अपने विकास के लिए कार्य करें. इन समूहों को एक बार गठित करने के बाद, उन्हें आवश्यक सहायता भी उपलब्ध कराइ जाती थी. भंवरी देवी इस कार्यक्रम का हिस्सा थीं और बाल विवाह की रोकथाम की दिशा में कार्य करती थीं, जिसके चलते उन्हें सामंती और जातिवादी संरचनाओं से दो-चार होना होता था. अपने इस काम की वजह से, अक्सर मौजूदा पितृसत्ता से बहुत सारी शत्रुता का सामना भी उन्हें करना पड़ता था.
आप भंवरी देवी का विडियो इंटरव्यू यहाँ देख सकते हैं .
भंवरी देवी जो जोखिम भरा काम कर रही थीं, उसके चलते उन्हें एक बहुत वीभत्स घटना का सामना करना पड़ा. एक मामला जिसमे उस क्षेत्र के एक गुज्जर परिवार (उच्च जाती वाला) में नौ महीने के एक बच्चे का बालविवाह कराया जा रहा था, को भंवरी देवी ने रुकवाया. इसके तुरन्त बाद जब वे अपने पति के साथ फ़ील्ड में कार्य कर रही थीं तभी चार आदमियों ने उनके साथ सामूहिक बलात्कार किया. आरोपियों ने पहले उनके पति पर हमला किया, जब उन्होंने बचाव करना चाहा तो उनके साथ भी मारपीट की गई. भंवरी देवी इसे चुपचाप सह लेने वाली नहीं थीं उन्होंने घटना को सार्वजनिक करने और इसके ख़िलाफ़ एफआईआर दर्ज करने का फैसला किया. राजस्थान में आम तौर पर व्याप्त रूढ़िवादी और महिला विरोधी सामाजिक व्यवस्था के बीच उनके द्वारा ये कदम उठाना, बहुत हिम्मत का फ़ैसला था. बदले में, उन्हें बीजेपी के मंत्री कन्हैया लाल ने ‘वेश्या’ कहा था. बीजेपी के ये मंत्री कन्हैया लाल, जनवरी 1996 में जयपुर में एक सार्वजनिक रैली में बलात्कारियों का पक्ष लेते हुए सामने आए थे.
#MeToo के दौर में भंवरी देवी
वर्तमान में, भारत में चल रहा #MeToo आंदोलन, नारीवादी आन्दोलनों और न्यायिक आन्दोलनों के इतिहास में दर्ज हो जाने वाला एक अभूतपूर्व आन्दोलन है. इस आन्दोलन में फिल्म उद्योग और सामाजिक क्षेत्रों में महिलाएं अपने साथ हुई यौन उत्पीड़न की घटनाओं को मुखर होकर दुनिया के सामने ला रही हैं, खासकर उन घटनाओं को जो कार्यस्थल में उनके साथ घटित हुई हैं. ये किसी भी पारिस्थिति में न झुटलाया जा साकने वाला तथ्य है कि अपने कार्यक्षेत्र में महिलाओं को अक्सार ही ऐसी परिस्थितियों का सामना करना पड़ता है. जाति, धार्म, वर्ग, सम्प्रदाय आदि के चलते भी ऐसी परिस्थितियां निर्मित होती हैं. इन सब के बीच ये आवश्यक है कि भंवरी देवी के मामले में हमारी न्याय व्यवास्था ने जो कद्दम उठाए, जो प्रातिक्रिया दी, उसपर, और हर उस बिंदु पर जिसके कारण मौजूदा सिस्टम सहायक और उपचार की भूमिका निभाने के बजाए न्याय के मार्ग में बाधा डाल सकते हैं, पर पुनर्विचार किया जाए.
जब भंवरारी देवी ने अपने साथ हुए अन्याय के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाई तो डब्लूडीपी (जहां वो काम करती थीं) ने उनका परित्याग कर दिया. जाँच प्रक्रिया में भारी ख़ामियां सामने आने के बावजूद भी राज्य प्राधिकरणों ने मामले को सीबीआई को सौंपने से इंकार कर दिया. मामला सीबीआई के पास आने के बाद भी दोषियों पर कोई कार्यवाही नहीं की गई, बार बार उनका बयान दर्ज कराया जाता और उन्हें मानसिक रूप से परेशान किया जाता था. मामले की चार्जशीट दायर करने में ही एक साल लग गए, और तब भी आरोपी व्यक्तियों को लगभग पांच महीने तक गिरफ्तार नहीं किया गया था. समाज ने उनका बहिष्कार कर दिया था. मामला वापस लेने के लिए उनपर लगातार दबाव बनाया जाता रहा.
बलात्कार पीड़ितों का बयान कैमरे में रिकॉर्ड किया जाता है, कैमरे में रिकॉर्ड करा देने के बावजूद भी, भंवरी देवी को सत्र न्यायलय में, हमलावरों समेत 17 लोगों के सामने कई बार अपनी गवाही दोहराने पर मजबूर किया गया. मौके पर महिला चिकित्सक न होने की वजह से भंवरी देवी ने मेडिकल जाँच से इनकार कर दिया था, ये बात संज्ञान में होने के बावजूद भी सत्र अदालत ने अपना निर्णय देने के दौरान शिकायत दर्ज कराने में देरी के बारे में अपमानजनक टिप्पणी की. एक और अपमानजनक टिप्पणी अदालत ने की, वे लोग जो अदालती कार्यवाहियों को देखने-सुनने के आदि नहीं हैं वे शायद यकीन न कर पाएं कि अदालत ऐसा भी कह सकती है. अदालत ने रेप के इस मामले को न मानने का आधार बताते हुए ये कहा कि “हमारे समाज में, जहां पति का दायित्व पत्नी की रक्षा करना होता है, वहां ये संभव ही नहीं है कि पति अपने सामने पत्नी का रेप होते देखता रहा होगा.”
हालांकि इन सब का सामना करते हुए भंवरी देवी अपनी मांगों पर डटी रहीं.
यह केवल उस दृढ़ता का परिणाम है कि कार्यस्थल पर महिलाओं के साथ होने वाले यौन उत्पीड़न से उनकी सुरक्षा के लिए 2013 में विशाखा दिशानिर्देश पास किये गए. विशाखा नाम उन विभिन्न गैर सरकारी संगठनों और महिलाओं के समूहों को दिया गया था जो भंवरी देवी की मदद के लिए आगे आए थे. इसका उद्देश्य था कि महिलाओं के लिए उनके काम करने की जगह सुरक्षित हो और सुरक्षा सुनिश्चित करने की ज़िम्मेदारी नियोक्ताओं की हो. हालांकि, भंवरी देवी को विशाखा के फैसले के तहत कवर नहीं किया जा सका, क्योंकि तकनीकी रूप से, कानून के अनुसार, उनके बलात्कारकर्ता उनके ‘नियोक्ता‘ नहीं थे और काम पर नहीं थे (विशाखा बनाम राजस्थान राज्य). वास्तव में भंवरी देवी अभी भी मौजूदा कानून के दायरे से बाहर है.
आज कहां हैं भंवरी देवी?
इस दर्दनाक घटना को हुए अब 26 साल बीत चुके हैं. भंवरी देवी ने विभिन्न जांच एजेंसियों को आठ बार अपनी गवाही दी है. जब उन्होंने सार्वजनिक तौर पर अपना बयान दिया था, तब राजस्थान जैसे रूढ़िवादी सामाजिक व्ययवस्था में ये पहली बार यह हुआ था, कि एक महिला अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के बारे में खुले तौर पर बात कर रही हो. इन चुनौतियों का सामना करने के बावजूद भी वो हताश या नकारात्मक नहीं हैं. वो कहती हैं, “मैं अपनी आखिरी सांस तक लड़ना जारी रखूंगी. मेरी लड़ाई उस समाज के खिलाफ है जहां अवैध होने के बावजूद बाल विवाह अभी भी प्रचलित हैं. हर वर्ग की महिलाओं को एक दूसरे के साथ खड़े होने की ज़रुरत है. अकेले कानून पर्याप्त नहीं है, हम सभी को एकजुट होकर इन सामाजिक बुराइयों के खिलाफ सामूहिक रूप से लड़ना होगा.” जयपुर से 30 किलोमीटर दूर उसी भाटेरी गांव में भंवरी देवी अब भी रह रही हैं. एक साथिन के रूप में उनका काम अब भी जारी है, इसके साथ वो सिलाई-कढ़ाई का भी काम करती हैं, हालांकि वो ये भी कहती हैं कि उनके बनाए कपड़ों के लिए पर्याप्त ग्राहक नहीं मिलते.
उथल-पुथल और परिवर्तन भरे माहौल और उनके साथ हुए यौन उत्पीड़न पर चर्चा लगातार होती रही है, पर बावजूद इसके भंवरी देवी ने अपने जीवन की स्थिरता को बनाए रखा है. बल्कि, वो एक तरह का संतोष अनुभव करती हैं ये जानकार कि उनकी कहानी से महिलाओं की कई पीढ़ियों ने प्रेरणा प्राप्त की है. वो कहती हैं कि “अगर आपको मेरी कहानी प्रेरणा देने वाली लगती है, तो बस वहां पर ही रुक मत जाइए, अन्याय के बारे में सुनने या उसके बारे में जानने भर से ही सशक्तिकरण नहीं हो जाएगा, अपनी बातों और अपने व्यवहार में इसके विरोध को शामिल करना होगा. तब तस्वीर बदलेगी.”
वो जानती हैं कि ये लड़ाई उनके अकेले की नहीं है, ये लैंगिक समानता का विषय है और इसका दायरा वृहद है. और ये भी कि उनका संघर्ष उन सभी महिलाओं को ताकत देता है जो समाज में गहरे व्याप्त जाति, वर्ग, धर्म, रंग, पद आदि की ऊँच-नीच वाली वीभत्स व्यवस्था से लड़ रही हैं. भंवरी देवी जैसों के संघर्ष की कहानियां, भविष्य के हर संघर्ष को ऊर्जा देती रहेंगी.
सुष्मिता के इस लेख का अनुवाद अनुज श्रीवास्तव ने किया। CJP (सिटीज़न फॉर जस्टिस एंड पीस) की वेबसाइट से साभार प्रकाशित।