नवेंदु कुमार
खेला देखिये संघी अफ़वाहबाज़ों का…
#सीताराम_पर_फुलगेंदवा_की_बारिश को बता दिया रामायणी कलश यात्रा का पुजारी और ब्राह्मणी कर्मकाण्ड का उपासक। संघियों और सेक्युलर विरोधियों ने सोशल साइट पर ये तमाशा रचा। ऐसा पोस्ट आपके सामने से भी गुजर रहा होगा। जबकि सच्चाई एकदम से खूबसूरत फ़ूलों जैसी है।
( इस प्रकरण से जुड़ी तस्वीरें दे रहा हूँ। ध्यान से देखेंगे तो #सब_समझ_में_आ_जायेगा।)
तेलंगाना की लोकसंस्कृति का गौरव है फूलों का रंगारंग उत्सव #बाथुकम्मा। इसमें अलग अलग इलाकों के फूलों के साथ खुशियां मनाई जाती हैं। यह उत्सव धरती, पानी और मनुष्य के बीच अंतरंग रिश्तों का उत्सव है, सेलीब्रेशन है। इस दिन फूलों के साथ फूलों और प्रकृति का जश्न मनाया जाता है।
फ़ूलों के इसी ज़श्न में पहुंचॆ सीपीएम नेता येचुरी और अन्य लेफ़्ट नेताओं ने फ़ूलों का दउरा-डाल माथे पर सजा कर पुष्प यात्रा में भाग लिया तो उसे पाखंडियों ने ‘रामायण कलश यात्रा’ ठहरा दिया। येचुरी के फ़ोटो देख कमजोर हृदय वाले प्रगतिशीलों को भी सदमा लगा और वैसे कइयों ने भी सोशल साइट पर अपनी भड़ास निकाल दी। संघी अफ़वाहबाज़ पेट हिला-हिला कर हंसॆ।
वामपंथियों को पानी पी-पीकर गलियाने और कम्युनिस्ट विरोध में रामायण बाँचने वाली ज़मात सीताराम का फ़ोटो कांड करने पर उतर आयी। भला हो फ़ेसबुक पर भी साथी रहे लेखक-पत्रकार मित्र Prabhakar Giridih का जिनके वाल पर मैंने असल कहानी पढ़ी। पता चला कि वह मूल पोस्ट Badal Saroj की है। बादल जी ने तस्वीर और घटना का सच बयान कर बात का बतंगड़ बनाने वाले संघी आइटी सेल और उनके वायरल बौद्धिक कुढ़मगजों की कलई उतार दी।
बादल सरोज अपने पोस्ट में लिखते हैं ~
● मशहूर क्रांतिकारी शायर और तेलंगाना के मुक्ति संग्राम में बंदूक लेकर लड़ने वाले #मखदूम_मोहियुद्दीन की एक बेमिसाल ग़ज़ल है, जिसकी प्रेरणा यकीनन फूलों की इसी बारात से मिली होगी ।
(ग़ज़ल पूरी पढ़ियेगा, ऐसी ग़ज़लें पढ़ने से क्रांति पीछे नही जाएगी – बहुत मुमकिन है कि थोड़ी आगे आ जाये।)
फिर छिड़ी रात बात फूलों की
रात है या बारात फूलों की ।
फूल के हार, फूल के गजरे
शाम फूलों की रात फूलों की ।
आपका साथ, साथ फूलों का
आपकी बात, बात फूलों की ।
नज़रें मिलती हैं जाम मिलते हैं
मिल रही है हयात फूलों की ।
कौन देता है जान फूलों पर
कौन करता है बात फूलों की ।
वो शराफ़त तो दिल के साथ गई
लुट गई कायनातफूलों की ।
अब किसे है दमाग़े तोहमते इश्क़
कौन सुनता है बात फूलों की ।
मेरे दिल में सरूर-ए-सुबह बहार
तेरी आँखों में रात फूलों की ।
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की ।
ये महकती हुई ग़ज़ल ‘मख़दूम’
जैसे सहरा में रात फूलों की ।
★ यह पोस्ट उन जबरदस्त क्रान्तिधर्मियों को भी प्यार सहित # समर्पित जो #सीताराम_येचुरीके इस फोटो पर हाय रब्बा करते हुए, मन्नाडे के कमाल के गीत की तर्ज पर#लगत_करेजवा_में_चोट लिए मार फूले-फूले घूम रहे हैं । इस गुजारिश के साथ कि अमां यार, थोड़े तो इंसानों जैसे दिखो ! फूल-पत्ती-उत्सव-कला-लोक से मत डरो। इतने डरावने मत बनो कि फूल तक सहम जायें।
अब तक के सारे इंकलाब प्रकृति और मनुष्य से प्यार करने वाले, उत्सवो से रिश्ता रखने वाले, सचमुच का इश्क़ तक करने वालों ने किए हैं।
तो #फ़ूल #इश्क़_ओ_मोहब्बत…#अमन_ओ_भाईचारगी
…एकता और अखंडता…देश और समाज का #तीया_पांचा करने वालों की मत सुनिये। उनका मक़सद ही है नफ़रत बोना…झूठ और गंध फ़ैलाना। आप इंसान हैं तो फ़ूलों की सुगंध लीजिये। समाज में फ़ूल बोइए-उगाइए। #फ़ूलों_की_बारात निकालिए। उनके बोये जा रहे कांटे से तौबा करिये!!
।। कौन देता है जान फूलों पर
कौन करता है बात फूलों की
फूल खिलते रहेंगे दुनिया में
रोज़ निकलेगी बात फूलों की ।।
( Badal Saroj के मूल पोस्ट को आधारित कर लिखी गयी वरिष्ठ पत्रकार Navendu Kumar की पुनर्प्रस्तुति )
एक टिप्पणी पत्रकार प्रकाश के रे की भी पढ़िए, बात और स्पष्ट हो जाएगी—
लेज़ी या तुरंता टिप्पणी से बचना समझदार के लिए बहुत ज़रूरी है. सुबह से कई लोग अपने कथित नास्तिक या वामपंथी या बौद्धिक होने के पाखंड में कॉमरेड सीताराम येचुरी की तस्वीरें साझा कर रहे हैं जो तेलंगाना के सबसे बड़े त्योहारों में से एक बोनालु के अवसर की है. यह आयोजन बहुजन लेफ़्ट फ़्रंट ने किया था जो सीपीएम समेत 28 सामाजिक-राजनीतिक संगठनों का साझा मंच है. इस अवसर पर एक सभा भी हुई जिसे येचुरी के अलावा कांचा इलैया और ग़दर समेत कई नेताओं ने संबोधित किया. ज़्यादा उत्साह में हांफने की ज़रूरत नहीं है, समाज और समाज की मान्यताओं के संबंधों को भी समझिए. येचुरी, कांचा इलैया या ग़दर को आपसे अधिक समझ है कि वे क्या कर रहे हैं. यदि आप उनके साथ नहीं हैं या उनके मुद्दों के साथ नहीं हैं, तो फिर परेशान होने की आवश्यकता भी नहीं है. आप अपनी राजनीति या सक्रियता को बेहतर ढंग से निभाइये, उनको उनके हाल पर छोड़ दीजिए. समाज में उत्सवों और आस्थाओं की अपनी जगह है, उससे बिदक के रहने से कुछ नहीं होगा।