खोजी पत्रकार राणा अयूब के इस दावे ने तहलका के उनके पूर्व संपादकों को बेचैन कर दिया है कि उनकी खोजी रिपोर्ट ‘राजनीतिक दबाव’ में रोकी गई थी। तहलका की प्रबंध संपादक रहीं शोमा चौधरी का इस संबंध में बयान आने के कुछ ही देर बाद पत्रिका के प्रमुख संपादक रहे तरुण तेजपाल ने भी राणा को आड़े हाथों लिया है और पत्रिका के ऊपर लगाए गए आरोपों को दुर्भाग्यपूर्ण बताया है।
तेजपाल का कहना है कि उन्होंने डर के मारे राणा की खबर नहीं रोकी थी, ”यह तो बदनामी है। हमने स्टोरी को इसलिए नहीं छापा क्योंकि वह आधी-अधूरी थी। उसका कोई नतीजा नहीं निकल रहा था। और वैसे भी, 2010-11 में तो मोदी प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार तक नहीं थे। आखिर ये सब कैसी बातें हो रही हैं?”
तेजपाल ने कहा कि अयूब की इस हरकत से उन्हें दुख पहुंचा है और उन्हें इस बात का अचरज है कि आचिार उन्होंने ऐसा क्या किया है जिसके बदले में उनका ऐसा असम्मान किया जा रहा है। तेजपाल के मुताबिक, ”उन्होंने अपनी सबसे अच्छी पत्रकारिता तहलका में ही की, न उससे पहले और न बाद में, जबकि वे हमें ऐसी चीज़ का दोषी ठहरा रही हें जो हमने किया ही नहीं। उनकी स्टोरी में कई खामियां थीं और हमने उन्हें दुरुस्त करने को कहा था। वह नहीं हुआ।”
”तहलका ने भारत की सबसे अच्छी खोजी पत्रकारिता की है, यहां के रिपोर्टर देश के कोने-अंतरे में यात्राएं कर के गलत कामों पर सवाल उठाते रहे हैं। राणा को हमने चांद लाकर दिया था, उसके पास सारी सुविधाएं थीं। मुझे इस बात का दर्द है कि उसकी खबर नहीं छपने के बाद भी वह तहलका में बनी रही। इसका मतलब कि यह मसला न तो उनके लिए उतना बड़ा था और न हमारे लिए।”
तरुण कहते हैं, ”सोहराबुद्दीन और इशरत जहां इसके बाद घटनाएं हैं। आखिर कैसे? हमने कभी भी दबाव में काम नहीं किया, कभी नहीं। अपनी पड़ताल के चलते हमारे निवेशक हमसे बिदक गए। मुझे बिलकुल समझ में नहीं आ रहा है कि उसने ऐसा क्यों किया।”
साभार: फर्स्टपोस्ट