गीता निष्काम कर्मयोग की शिक्षा देती है। लेकिन अगर गीता जैसे विशिष्ट धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथ की दस प्रतियों की ख़रीद पर 3 लाख 79 हज़ार 500 रुपये खर्च कर दिए जाएँ, तो सुनकर कैसा लगेगा। ज़ाहिर है, ऐसा वही कर सकता है जिसे पैसे की परवाह न हो या फिर माले मुफ़्त दिले बेरहम वाला हाल हो।
यह मज़ाक और किसी ने नहीं एक सरकार ने किया है जो जनता के टैक्स से चलती है। यह सरकार है हरियाणा की। जी हाँ, मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने कुरक्षेत्र में हुए अंतरराष्ट्रीय गीता जयंती गीता की दस प्रतियाँ ख़रीदने पर 3 लाख 79 हज़ार 500 रुपये खर्च किये हैं।
यह खुलासा एक आरटीआई के जवाब से हुआ है। इससे यह भी पता चलता है कि बीजेपी की सांसद हेमामालिनी के कार्यक्रम के लिए 15 लाख रुपये और बीजेपी के ही सांसद मनोज तिवारी को उनके शो के लिए 10 लाख रुपये दिए गए। इन दोनों कलाकारों ने अपनी सरकार या गीता के नाम पर हो रहे इस आयोजन में पूरी क़ीमत वसूलने में कोताही नहीं की और न सरकार ने ही कोई कंजूसी दिखाई।
हद तो यह है कि गोरखपुर के गीता प्रेस से प्रकाशित गीता की सामान्य प्रति 23 रुपये में उपलब्ध है। बेहतर छपाई या बड़ा संस्करण भी थोड़े और रुपयों में उपलब्ध है, लेकिन यह क़ीमत लाखों रुपये हो सकती है, यह कोई सोच भी नहीं सकता था। ज़ाहिर है, विपक्ष को मौक़ा मिल गया है। सांसद दुष्यंत चौटाला का ट्वीट इसका गवाह है।
हद तो है कि जब इस सिलसिले में मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर से पूछा गया तो उन्होंने साफ़ कहा कि उनकी सरकार बहुत सोच-विचार कर ख़र्च करती है। उसने जो भी किया डंके की चोट पर किया है। आगे भी करेगी।
तो क्या कहेंगे…धर्म के नाम पर राजनीति करने वाले, धर्म के नाम पर घोटाला करने पहुँच गए।