देश का रियल एस्टेट सेक्टर अपनी अन्तिम सांसें गिन रहा है। देश के प्रमुख बिल्डर दिवालिया होने की कगार पर खड़े हुए हैं। सबसे पहले यूनिटेक गया, सहारा गया फिर जेपी भी खत्म हो गया। उसके बाद आम्रपाली चला गया। सिक्का बिल्डर भी दिवालिया होने की अर्जी लगा कर बैठा है। अभी कुछ दिनों पहले ख़बर आयी है मुंबई के सबसे बड़े बिल्डरों में से एक HDIL ने भी घुटने टेक दिए हैं। मीडिया रिपोर्ट बता रही हैं कि इस क्षेत्र में कम से कम छह और बड़ी कंपनियां दिवालिया होने के कगार पर हैं।
ये तो हुई बड़ी कम्पनियों की बात लेकिन रियल एस्टेट से जुड़ी छोटी छोटी कम्पनियां भी बुरी हालत में हैं। ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा फजीहत खरीदारों की हो रही है। देशभर में साढ़े 5 लाख से ज्यादा घरों के पजेशन में देरी हो रही है। ये सभी प्रोजेक्ट 2013 या उसके पहले लॉन्च हुए थे। यह प्रॉपर्टी करीब 4 लाख 51 हजार 750 करोड़ रुपए की है।
देश के तीस बड़े शहरों में 12.8 लाख मकानों को खरीदार नहीं मिल पा रहे हैं।
एनारॉक की रिपोर्ट की मानें तो घरों की बिक्री भी पिछले 5 वर्षों में 28 फीसदी की दर से घटी है। वर्ष 2014 में जहां 3.43 लाख घरों की बिक्री हुई, वहीं पिछले साल 2.48 लाख घर बिके। यानी मोदीराज में लोगों की परचेजिंग पावर काफी कम हुई है। रिपोर्ट में एक महत्वपूर्ण खुलासा और हुआ है कि देश के सात प्रमुख शहरों में पिछले पांच साल के दौरान घरों के दाम में मात्र 7% का इजाफा हुआ है, लेकिन मांग 28% घट गयी है। इसी तरह घरों की आपूर्ति में इस दौरान 64% की गिरावट आई है।
रियल एस्टेट कंपनियों ने दिल्ली एनसीआर समेत कई मेट्रो शहरों में बड़े पैमाने पर कर्ज लेकर निवेश किया है। खरीदारों की तंगी के चलते अब उनपर दबाव बढ़ता जा रहा है। एनबीएफसी से कर्ज नहीं मिलने के कारण कंपनियों को बाहर से महंगा कर्ज लेना पड़ रहा है। देशभर में हजारों प्रोजेक्ट फंड की कमी से अटके हुए हैं। इसके चलते उनका निर्माण बंद पड़ा है।
कोटक इन्वेस्टमेंट अडवाइजर्स के मैनेजिंग डायरेक्टर एस. श्रीनिवासन के मुताबिक, ‘बैंकों को अपनी बकाया रकम वसूलने के लिए जमीन पर फोकस करना पड़ रहा है। बैंकों को अपने लोन रिकवरी के लिए अब उन जमीनों को कब्जे में लेना पड़ा रहा है, जो प्रॉजेक्ट अभी पूरे नहीं हुए हैं और वे लोन के साथ बिक सकते थे। बीते 4 सालों में प्रॉपर्टी बाजार के तहत होम सेल में करीब 40 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है और इनकी कीमतों में औसतन 20 फीसदी की गिरावट हुई है।’
आवासीय इकाइयों की लांचिंग और उनकी बिक्री भी ख़राब हुई है। आवासीय इकाइयों की बिक्री में और गिरावट आने के आसार हैं बड़े मेट्रो के बात छोड़िए अब तो टियर 2 के शहरों जैसे जमशेदपुर में भी बुरे हाल हैं। मीडिया रिपोर्ट्स बता रही हैं कि वहाँ दो साल पहले तक टाउनशिप बनाने वाले बड़े बिल्डर महीने में 10 से 15 फ्लैट बेच लेते थे। अपार्टमेंट बनाने वाले छोटे बिल्डर महीने में दो से तीन फ्लैट बुक कर लेते थे। स्थिति इतनी बुरी हो गई है कि बिल्डर अब यह आंकड़ा छह महीने में भी नहीं छू पा रहे हैं। करीब 35 फीसद प्रोजेक्ट अटके पड़े हैं। जो तैयार हैं वो बिक नहीं पा रहे हैं।
जमशेदपुर में लोग रजिस्ट्री नही करवा रहे हैं। पिछले साल मई, जून, जुलाई में 2061 भवन-मकान की रजिस्ट्री हुई थी। इस साल मई, जून जुलाई में मात्र 1024 भवन-मकान ही रजिस्टर्ड हुए हैं। कुछ ऐसा ही हाल छत्तीसगढ़ के बिलासपुर का है। वहाँ बिल्डरों के आठ सौ से अधिक मकान बनकर तैयार हैं। उन्हें खरीदने वाला कोई नहीं है। महीने में जहां 12 मकान पहले बिक जाते थे आज एक-दो भी मुश्किल से बिक रहे हैं।
यह सारी स्थिति नोटबन्दी और जीएसटी के बाद आई है। आर्थिक मंदी के बीच रीयल इस्टेट का बिजनेस लगभग ध्वस्त हो गया है।