इतिहास की गति निराली है। क़रीब 30 साल पहले बोफ़ोर्स तोप सौदे में कथित दलाली के मामले ने मिस्टर क्लीन कहे जाने वाले प्रधानमंत्री राजीव गाँधी की छवि को धूल में मिला दिया था। वी.पी.सिंह की भ्रष्टाचार विरोधी आँधी राजीव गाँधी की सरकार को तो सत्ता से बाहर किया ही, एक पार्टी बतौर बीजेपी को भी देशव्यापी मज़बूती दे दी। 1984 में लोकसभा में दो सीट पाने वाली बीजेपी को 1989 में सीधे 85 सीट पर पहुँचा दिया।
लेकिन 2018 में राजीव गाँधी के बेटे को हिसाब बराबर करने का मौक़ा मिला है। मामला भी वही हथियार दलाली से जुड़ा है। काँग्रेस अध्यक्ष बनने के बाद लगातार आक्रामक हो रहे राहुल ने सीधे प्रधानमंत्री मोदी पर फ्राँस से राफ़ेल सौदों में हुई डील के नाम पर घपला करने का आरोप लगाया है। राहुल के हमले को धार मिली है है रक्षा मंत्री निर्मला सीतारमण की ओर से संसद में दिए गए जवाब से जिसमें ‘सुरक्षा समझौते’ की वजह से राफ़ेल विमान की क़ीमत बताने से इंकार कर दिया गया है। उन्होंने यह भी कहा कि गोपनीयता का यह समझौता 2008 में यानी मनमोहन सिंह के समय हुआ था।
राहुल का सवाल है कि पेरिस में राफ़ेल खरीद की घोषणा करने पहले क्या प्रधानमंत्री ने सीसीएस (कैबिनेट कमेटी ऑफ सिक्योरिटी) से मंजूरी ली थी? प्रधानमंत्री ने एचएएल (भारत सरकार के उपक्रम हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड) को दरकिनार कर एए रेटेड कारोबारी (अनिल अंबानी की कंपनी रिलायंस डिफेंस लिमिटेड) को सौदा क्यों दिया जबकि उसके पास रक्षा क्षेत्र का कोई अनुभव नहीं है? वे इस ‘गोपनीयता’ पर सवाल उठा रहे हैं।
कांग्रेस नेता रणदीप सुरजेवाला का दावा है कि जहाजों की कीमत 526 करोड़ है जबकि सौदा 1571 करोड़ का हुआ है. रणदीप सुरजेवाला ने कहा था कि 20 अगस्त 2007 में 126 लड़ाकू एयरक्राफ्ट खरीदने के लिए नोटिस जारी की गई थी. इस डील के लिए दो कंपनियां सामने आईं. जिनमें से राफेल बनाने वाली कंपनी दसॉल्ट का चयन किया गया था. सौदे की यह शर्त थी कि 18 राफेल एयरक्राफ्ट फ्रांस में बनेंगे और कंपनी की मदद से 108 एयरक्राफ्ट भारत मे बनेगें. लेकिन मोदी ने उसे रद्द कर बढ़ी कीमत पर सौदा कर लिया। बहरहाल, सरकार सही दाम बताकर मामला साफ़ करती थी, लेकिन आरटीआई के ज़माने में सरकार का संसद में जवाब न देना बड़ा सवाल पैदा कर रहा है। काँग्रेस नेता मनीष तिवारी ने यूपीए सरकार के दौरान फ्राँस के साथ ऐसी डील से साफ़ इंकार किया है जिसमें कि जानकारी सार्वजनिक न करने की बात हो।
वहीँ प्रशांत भूषण जैसे दिग्गज वकील भी इसे बहुत बोफ़ोर्स से 500 गुना बड़ा घोटाला बता रहे हैं।
इस बीच सोशल मीडिया में मनमोहन सिंह और मोदी के दौर में हुई डील की तुलना के ग्राफ़िक्स फैल रहे हैं।
वहीं अब यह भी साफ़ हो गया है कि 2016 में संसद में राफ़ेल विमानों की क़ीमत बताई गई थी। ऐसे में मोदी सरकार के गोपनीयता बरतने पर सवाल उठ रहे हैं। इससे निर्मला सीतारमण का ‘झूठ’ भी साबित हो गया है।
उधर, रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण और बीजेपी इस आरोप को आधारहीन और राजनीति प्रेरित बता रही है। लेकिन संसद से विमानों की कीमत छिपाने के उसके फ़ैसले ने तमाम सवाल खड़े कर दिए हैं। ज़ाहिर है, पारदर्शिता और ईमानदारी का नारा देने वाली मोदी सरकार के लिए राफ़ेल सौदा बड़ी मुसीबत बन रहा है। अगर यह जनता की जबान पर ‘बोफोर्स दलाली’ की तरह चिपक गया तो ख़ुद पीएम मोदी की ईमानदारी के दावों की धज्जी उड़ जाएगी। अनिल अंबानी की अनुभवहीन कंपनी को इतनी बड़ी डील उनकी वजह से ही मिली है, इसमें किसी को शक़ नहीं है।
बर्बरीक