संजीव चंदन
ये निष्पक्षता भी न अजीब चीज है, जाकर जहां संतुष्ट होती है वह वर्चस्ववादियों की गलियाँ हैं या नागपुर के नाथ का मुख्यालय है. अब सहारनपुर को ही लीजिये. निष्पक्षता वाले कहते हैं कि राजपूतों का पक्ष जरूर आना चाहिए, राजपूतों से जरूर मिलना चाहिए, मारे गये सुमित के बाल-बच्चों की खबर लेनी चाहिए. उनके द्वारा खीची गई यह लाइन फिर जहां जाकर आख़िरी अंगड़ाई लेती है वहाँ सिर्फ राजपूतों का ही पक्ष बचता है.
अब उन्हें कैसे बताऊं कि जब हमारी टीम दिल्ली से चली थी तब से ही तय थी कि राजपूतों से जरूर मिलना चाहिए, बल्कि शुरुआत ही हमारी राजपूतों के आजकल के सबसे बड़े गौरव, फूलन देवी के कातिल शेर सिंह राणा से मेरी घंटे भर के फोन पर बातचीत से हुई थी. फिर हम राजपूतों से मिलते रहे और जिससे रिपोर्ट लिखने के पहले मेरी आख़िरी बातचीत हुई वह निलंबित हो चुके राजपूत कलक्टर ही थे. इसके बावजूद हमें न सुमित जाति-हिंसा में मारा गया विक्टिम दिखा और न ही राजपूत बेचारे दिखे. हम एक घंटे की बात के बावजूद और उनके घर रसगुल्ले खाकर, एक घंटा और रुककर, उनके विनम्र स्वागत सत्कार को तहेदिल से स्वीकार कर, भी इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि शेर सिंह राणा की बड़ी भूमिका है इस क्षेत्र में जाति-तनाव को मजबूती देने में. इससे ज्यादा निष्पक्षता और क्या हो सकती है? राजपूत कलकटर भी हमारी स्थापना से सहमत थे, जबकि ऐसा अन्य किसी निष्पक्षता वाले को नहीं लगा कि शेर सिंह की भूमिका है इन घटनाओं में.
राजपूत शेर सिंह ने मारे गये राजपूत युवक सुमित की पूर्ण विक्टिम छवि बनाई थी हमारे सामने और राजपूत कलक्टर एनपीसिंह ने बताया कि वह उन चंद राजपूत युवकों में से था, जो डीजे रोकने पर दलितों से लड़ने आया था और संभवतः अपने ही लोगों के पैरों तले दबकर मरा- पोस्टमार्टम रिपोर्ट दम घुटने से मरने को उसकी मौत का कारण बताती है.
और हाँ, जिस गाँव में महाराणाप्रताप की जयंती के लिए सैकड़ो राजपूत इकट्ठे हुए थे और जहां से चलकर राजपूत युवाओं ने चार किलोमीटर दूर बसे शब्बीरपुर में तांडव किया था वहाँ के राजपूत प्रधान भी न जयंती मनाने से खुश दिखे और न तांडव से. वे तो शेर सिंह के अपने गाँव आने से भी खुश नहीं दिखे, बस खुलकर कह नहीं पा रहे थे.
तो भाई यह थी हमारी निष्पक्षता. अब बताओ कि इससे ज्यादा क्या चाहते हो क्या सीधे चंदरवरदाई की तरह पृथ्वीराज का विरुदावली गा दूं, या लिख दूं कि हिन्दू हृदय सम्राट पृथ्वीराज के नये अवतार भी इस धरती पर आ चुके हैं, हिन्दू राज कायम करने के लिए, अपनी हिन्दू वाहिनी के साथ. संकट है कि यह लिखने पर भी न आप खुश होंगे, न आपका नागपुर-नाथ खुश होगा…
संजीव चंदन स्त्रीकाल वेब पत्रिका के सम्पादक हैं और उन्होंने सहारनपुर में दलित-विरोधी हिंसा पर फॉरवर्ड प्रेस में एक ग्राउंड रिपोर्ट तफसील से लिखी है. यह टिप्पणी उनकी फेसबुक दीवार से साभार.