जो काम पहले नरेन्द्र मोदी अमित-शाह की सरकार विपक्षी नेताओं के साथ करती थी वही काम अब देश के नौकरशाहों के साथ करने लगी है। आज इंडियन एक्सप्रेस अखबार में रितु सरीन की लिखी रिपोर्ट के मुताबिक चुनाव आयुक्त अशोक लवासा के खिलाफ जांच करने का आदेश दिए गए हैं।
अखबार के मुताबिक केन्द्र सरकार ने ऊर्जा मंत्रालय के अधीन काम करने वाले अपने 11 पीएसयू को लिखा है कि वे पिछले रिकार्ड को तलाशकर यह पता लगाएं कि जब लवासा इस मंत्रालय में वर्ष 2009 से 2013 तक महत्वपूर्ण पदों पर कार्यरत थे तब उन्होंने अपने प्रभाव का बेजा इस्तेमाल तो नहीं किया? ऊर्जा सचिव के आदेश पर सभी पीएसयू के विजिलेंस विभागों को लिखी गई चिट्ठी में आरोप लगाया गया है कि संभवतः अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने वैसी कुछ कंपनियों को लाभ पहुंचाया है क्योंकि उन अक्षय ऊर्जा वाली कंपनियों में उनकी पत्नी नोवल लवासा ने बतौर निदेशक काम किया है।
यहां यह सवाल बिल्कुल नहीं है कि नोटिस दिया जाना सही है या गलत। यहां सवाल यह है कि नोटिस अशोक लवासा को और उनके परिवार को ही क्यों दिया जा रहा है?
अशोक लवासा ने लोकसभा चुनाव के दौरान चुनाव आयोग में बहुमत से लिए गए उस फैसले के साथ अपनी असहमति जताई थी जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह को मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट के उल्लंघन से जुड़ी पांच शिकायतों के मामले में क्लीन चिट दी गई थी। लवासा उन दोनों के खिलाफ कार्यवाई के पक्ष में थे। क्लीन चिट दिए जाने के बाद मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट की जितनी भी बैठकें हुईं, लवासा ने सभी बैठकों से दूरी बना ली थी।
हमारे प्रधानसेवक जी की सरकार ने ऐसी हरकत पहली बार नहीं की है। चुनाव खत्म होने के कुछ ही दिनों बाद लवासा और उनके परिवार के सदस्यों के खिलाफ आय से अधिक संपत्ति के कई मामलों में जांच के आदेश भी दिए गए थे। परिवार के जिन सदस्यों को नोटिस मिला था उसमें उनकी पत्नी, उनका बेटा और उनकी बहन शामिल थे। इसकी जांच अब भी चल रही है।
सेवकजी की सरकार पूरे देश में इसी ‘आदर्श मॉडल’ पर चल रही है। इसमें न सिर्फ सभी विरोधी दलों के राजनेता निशाने पर हैं बल्कि सहयोगी दलों के नेता भी शामिल हैं जो उनके सारे कुकर्मों में शामिल रहे हैं लेकिन कभी-कभार अपना हक मांगने लगते हैं। इसके अलावा अब उसमें ‘नैतिक’ या चूं चपड़ करने वाले नौकरशाह भी शामिल कर लिए गए हैं। सबको याद ही होगा कि महाराष्ट्र चुनाव के ठीक पहले ऐसा ही नोटिस शरद पवार को भी थमा दिया गया था।
पूरे देश में नरेन्द्र मोदी और अमित शाह की जोड़ी ने आतंक का माहौल बना रखा है। वैसे यह कहना मुनासिब नहीं होगा कि जिनके खिलाफ नोटिस जारी हुआ है वे सभी बेहद ईमानदार या कर्तव्यनिष्ठ पदाधिकारी या नेता रहे हैं! लेकिन यहां सवाल यह है कि अपवादों को छोड़कर बीजेपी के किस नेता ने भ्रष्टाचार और अनैतिकता की सारी सीमाओं को पार नहीं किया है? या दूसरे शब्दों में कहिए तो बीजेपी से ज्यादा भ्रष्ट या अनैतिक इस देश में कौन सा राजनीतिक दल या संस्थान है! लेकिन ‘मोदी है तो मुमकिन है’ के नारे को आगे बढ़ाकर ‘अमित शाह है तो कुछ भी संभव है’ तक पहुंचा दिया गया है।
अन्यथा पिछले चार दिनों से येदियुरप्पा का एक ऑडियो क्लिप वायरल हो रहा है जिसमें बताया जा रहा है कि कांग्रेस-जेडीएस के 17 विधायकों को तोड़ने का अभियान अमित शाह के नेतृत्व में हुआ था! क्या इस आधार पर अमित शाह को प्रधानसेवक द्वारा कैबिनेट से बर्खास्त नहीं कर दिया जाना चाहिए था? लेकिन इसके बारे में कोई बात भी नहीं हुई। इसका कारण सिर्फ यह रहा होगा कि ‘ऑपरेशन कर्नाटक’ में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की सीधी भूमिका रही होगी।
पिछले पांच वर्षों में मोदी-शाह ने देश की हर एक स्वायत्त और लोकतांत्रिक संस्था को अपने हित में करने की हर एक कोशिश की है और अगर वैसा नहीं हो पाया है तो उसे नष्ट कर दिया है। कांग्रेस के समय में भी सीबीआई कोई दूध की धुली संस्था नहीं थी। सुप्रीम कोर्ट ने उसकी कई हरकतों की वजह से ‘पिंजड़े में बंद तोता’ कहा था, लेकिन मोदी के कार्यकाल के दौरान देश के सबसे दागदार आईपीएस अधिकारी राकेश अस्थाना को ज्वाइंट डायरेक्टर बना दिया गया। उनके खिलाफ सीबीआई निदेशक ने भ्रष्टाचार का सबूत पाकर गिरफ्तारी का वारंट जारी कर दिया लेकिन रातोंरात पीएमओ में तख्तापलट कर आलोक वर्मा को हटा दिया गया जबकि सीबीआई के निदेशक को सरकार पद से नहीं हटा सकती है।
बाद में अस्थाना के खिलाफ सारे आरोप न सिर्फ शिथिल कर दिए गए बल्कि उसकी ठीक से जांच भी नहीं हो रही है। इसके उलट उन पदाधिकारियों के खिलाफ जांच पड़ताल शुरू हो गई जिन्होंने अस्थाना के मामले की जांच की थी। यह सब कुछ इसलिए किया गया कि आलोक अस्थाना अमित शाह के कई ‘फैसलों’ में राज़दार रहे हैं।
हां, हमें यह बात नहीं भूलनी चाहिए कि सीबीआई सीधे प्रधानमंत्री के मातहत काम करती है।