लोकतांत्रिक देशों के लिए जितनी सरकार ज़रूरी है उतना ही ज़रूरी है प्रेस की स्वतंत्रता. स्वतंत्र प्रेस ही किसी देश के लोकतांत्रिक मूल्यों का आकलन प्रस्तुत करता है. दुनिया के कई देश ऐसे हैं जो लोकतंत्र का ढोल तो पीटते हैं लेकिन हकीकत कुछ और होती है. ऐसे देशों में भारत भी शामिल है.
प्रेस फ्रीडम इंडेक्स की रिपोर्ट में भारत की रेंकिंग नीचे की तरफ बढती जा रही है. 2017 के लिए जारी की गई नई रैंकिंग के अनुसार भारत प्रेस की स्वतंत्रता के मामले में 136 वें नम्बर पर आ गया है. जबकि 2016 में 133 वें नंबर पर था. वहीं 2015 में 136 वें नम्बर पर था.
प्रेस की निगरानी करने वाली संस्था मीडिया वॉचडॉग “रिपोर्टर्स सांस फ्रंटियर्स” ने भारत के सन्दर्भ में टिप्पणी करते हुए कहा कि प्रधानमंत्री समर्थित ट्रोल अक्सर पत्रकारों पर अभद्र भाषा में व्यक्तिगत और शारीरिक हमले करते रहते है, पिछले कुछ साल में इन हमलों की संख्या घटने की बजाय बढ़ी है. ऑनलाइन मीडिया में दुष्प्रचार बढ़ा है वहीँ मेनस्ट्रीम मीडिया में सेल्फ सेंसरशिप ज्यादा बढ़ी है.
संगठन ने कश्मीर में पत्रकारों के खिलाफ बढ़ रही हिंसा के लिए केंद्र सरकार की मूक सहमति का आरोप भी लगाया. संगठन का कहना है कि कश्मीर में विदेशी पत्रकारों को प्रतिबंधित किया गया है वहीँ इंटरनेट जैसी बुनियादी सुविधा की हालत ख़राब है.
रिपोर्टर्स सांस फ्रंटियर्स का कहना है कि हिन्दू राष्ट्रवादी सरकार का विरोध कर रही आवाजों को देशद्रोही कहकर उनको दबा रहे हैं. इनको रोकने के लिए हिंसा का तक सहारा लिया जा रहा है, हिन्दू राष्ट्रवाद के दुष्प्रचार में पिछले साल 3 पत्रकारों को जान से हाथ ढ़ोना पड़ा.
सूची में नार्वे एक बार फिर पहले स्थान पर और उत्तर कोरिया सबसे निचले पायदान पर रहा. पूरी दुनिया में लोकतंत्र का झंडा बुलंद करने वाला अमेरिका 2 स्थान नीचे गिरकर 45वें स्थान पर रहा. समाजवादी रूस और चीन क्रमशः 148 वें और 176 वें नम्बर पर रहे.
वॉचडॉग के महासचिव क्रिस्टोफ़ डेलोयर ने चेतावनी दी कि पत्रकारिता की वैधता पर सवाल करना “खतरनाक राजनीतिक आग के साथ खेलना” है। उन्होंने कहा कि पत्रकारों के खिलाफ बढ़ रही हिंसा के लिए राजनेता सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं जो अपनी सत्ता बचाए रखने के लिए स्वतंत्र प्रेस और विरोधी आवाजों का गला घोंटते हैं. इस पृवत्ति से बचा जाना आवश्यक है.