प्रद्युम्न यादव
पुरी का जगन्नाथ मंदिर भ्रष्टाचार और भक्तों के साथ बदसलूकी के मामले में कुख्यात रहा है. राष्ट्रपति के साथ हुई बदसलूकी कोई पहला मामला नहीं है. इससे पहले भी वहां दर्शनार्थ आने वाले भक्तों के साथ बदसलूकी होती रही है और उनका उत्पीड़न किया जाता रहा है. यह बदसलूकी और उत्पीड़न किस स्तर पर होते हैं इसका अंदाज़ा आप इस बात से लगा सकते हैं कि ऐसे मामलों को रोकने के लिए श्रद्धालुओं को सुप्रीम कोर्ट तक जाना पड़ा.
इनमें ज्यादातर मामले ऐसे रहे हैं जो सीधे संविधान के अनुच्छेद 25 का उल्लंघन करने वाले थे. इतना ही नहीं जगन्नाथ मंदिर के पंडे भक्तो का चढ़ावा भी हड़पते रहे हैं और इससे भी चार कदम आगे बढ़कर सरकार और प्रशासन को धता बताते हुए मंदिर की संपत्ति हड़पने की फिराक में भी रहे हैं. इसके बावजूद भी आज तक इन पंडो पर कोई कार्यवाई नहीं हुई है. बल्कि भक्तों और यहां तक कि उड़ीसा सरकार को भी न्याय के लिए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट की मदत लेनी पड़ी है. ऐसा इसलिए है क्योंकि मंदिर के भीतर इन पंडो की हैसियत भारत के राष्ट्रपति और उड़ीसा के मुख्यमंत्री से भी अधिक है.
बहरहाल , पंडो द्वारा भक्तो के साथ इसी बदसलूकी , उत्पीड़न और चढ़ावे को खुद हड़प जाने की घटनाओं के मद्देनजर मृणालिनी पाधी और सुभ्रांशु पाधी ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की. 8 जून, 2018 को सुप्रीम कोर्ट ने याचिका पर सुनवाई करते हुए निम्नलिखित निर्देश दिए –
1. जगन्नाथ मंदिर में आवश्यक जगहों पर सीसीटीवी कैमरे लगवाए जाएं. इनके फुटेज एक स्वतंत्र कमेटी समय समय पर देखे और हर महीने जिला जज पुरी को इस पर रिपोर्ट दे ताकि जिला जज जरूरी होने पर निर्देश जारी कर सकें.
2. मंदिर का प्रशासक यह सुनिश्चित करे कि सेवक या पुजारी श्रद्धालुओं से सीधे चढ़ावा नहीं लेंगे. चढ़ावा या तो हुंडी में जाएगा या फिर उसके उचित उपयोग का लेखाजोखा रखा जाएगा. इसमें सीसीटीवी फुटेज या कोई अन्य तरीका अपनाया जा सकता है.
3. कोर्ट ने कहा कि जगन्नाथ मंदिर जैसे मुद्दे अन्य तीर्थ स्थलों में भी हो सकते हैं. केन्द्र सरकार एक कमेटी गठित करे जो कि अन्य तीर्थ स्थलों के बारे में सूचना एकत्र करे ताकि श्रद्धालुओं के हित में वहां की स्थिति की भी जरूरी समीक्षा की जा सके.
इसके अलावा कोर्ट ने 30 जून ,2018 तक जिला जज से जगन्नाथ मंदिर के संदर्भ में अंतरिम रिपोर्ट मांगी है जिस पर 5 जुलाई , 2018 को सुनवाई होगी. इस निर्देश में आप ध्यान देंगे तो सुप्रीम कोर्ट ने सीसीटीवी कैमरों पर विशेष जोर दिया है. इसका कारण यह कि इनके अभाव में पंडो के खिलाफ बातों के अलावा कोई सबूत नहीं मिल पाता है. लिहाज़ा उनके खिलाफ कोई कार्यवाई नहीं हो पाती. इस बात की पूरी संभावना है कि राष्ट्रपति के संदर्भ में इसी कमी का फायदा उठाकर दोषी पंडे अंततः स्पष्टीकरण देकर निर्दोष साबित हो जाएंगे. इस पर हम बाद में आएंगे.
8 जून को सुप्रीम कोर्ट का निर्देश आने से पहले ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक ने ओडिसा हाईकोर्ट में जगन्नाथ मंदिर का खजाना खुलवाने के लिए याचिका दायर की थी. मामला ये था कि मंदिर के पंडे इसे खुलवाने में आनाकानी कर रहे थे. लेकिन कोर्ट की फटकार और निर्देश के बाद 4 अप्रैल , 2018 को 34 साल बाद 16 सदस्यीय दल मंदिर पहुंचा. वहां पहुंचने के बाद पता चला कि मंदिर की चाबी ही गुम हो गयी. ये चाबी किसने गुम करवाई होगी इसे समझना मुश्किल नहीं है. इस पर खूब हो हल्ला मचा जिसके बाद मुख्यमंत्री ने न्यायिक जांच के आदेश दिए. इस आदेश से हड़बड़ाए हुए पुरी के डीएम अरविंद अग्रवाल ने फौरन खोजबीन शुरू कर दी. उन्हें पांचवे दिन चाबी मिल गयी. चाबी मिलते ही उन्होंने बयान दिया – ” यह भगवान का चमत्कार है. हम सब खोजबीन में लगे हुए थे और हमें कल भगवान की मौजूदगी का अहसास हुआ. ” फिर पता चला कि वह डुप्लीकेट चाबी है. असल चाबी किसने गायब की और डुब्लिकेट चाबी किसकी कृपा से प्रकट हुई , इसे भी समझना ज्यादा मुश्किल नहीं है.
जहां तक बात अरविंद अग्रवाल की है तो ये वही डीएम हैं जो इस समय राष्ट्रपति के मामले की जांच समिति में शामिल हैं. इन पर भी बाद में आएंगे. अब आते हैं असल मुद्दे यानी राष्ट्रपति के साथ हुई अभद्रता पर. 18 मार्च , 2018 को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद अपनी पत्नी सविता कोविंद के साथ ओडिशा के प्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर में दर्शन के लिए गए थे. वहां पर पंडो ने राष्ट्रपति और उनकी पत्नी का रास्ता रोका और कुहनी से धक्के भी मारे. इस घटना का खुलासा मंदिर प्रशासन की बैठक के मिनट्स सामने आने के बाद हुआ जिसे सबसे पहले टाइम्स ऑफ इंडिया ने प्रकाशित किया. रिपोर्ट के मुताबिक राष्ट्रपति भवन ने इस घटना पर आपत्ति जताते हुए अगले दिन यानी 19 मार्च , 2018 को पुरी के कलेक्टर अरविंद अग्रवाल को सेवादारों ( पंडो ) के आचरण के खिलाफ नोट भेजा , जिसके एक दिन बाद श्री जगन्नाथ मंदिर प्रशासन (SJTA) ने एक बैठक की. SJTA की बैठक को लेकर जारी मिनट्स के मुताबिक राष्ट्रपति और उनकी पत्नी सविता कोविंद ठीक से दर्शन कर सकें, इसलिए सुबह 6.35 बजे से 8.40 बजे तक अन्य श्रद्धालुओं के लिए मंदिर बंद रखा गया. इस दौरान कुछ सेवादारों और सरकारी अधिकारियों को ही राष्ट्रपति और उनकी पत्नी के साथ मंदिर जाने की अनुमति दी गई. जब राष्ट्रपति मंदिर के गर्भगृह के पास पहुंचे तो कुछ सेवादारों ने उनके और उनकी पत्नी के साथ धक्का-मुक्की की थी और रास्ता रोकने का प्रयास किया. ओडिसा के स्थानीय अखबार प्रगतिवादी के अनुसार भी जब राष्ट्रपति पुरी जगन्नाथ मंदिर के सबसे निचले हिस्से में रत्न सिंहासन के पास पहुंचे तो एक सेवादार ने कथित तौर पर उन्हें रास्ता नहीं दिया. वहीं जब राष्ट्रपति और उनकी पत्नी दर्शन कर रहे थे, तो कुछ सेवादारों ने कथित रूप से दोनों को कोहनी मारी. यहां यह ध्यान देने योग्य बात है कि राष्ट्रपति की क्या आपत्ति है उन्हें कैसे परेशानी हुई इसका विवरण कोई भी देने को तैयार नहीं है.
पुरी के डीएम अरविंद अग्रवाल और मंदिर के प्रशासक प्रदीप्त कुमार यह मान रहे हैं कि राष्ट्रपति कार्यालय की तरफ से पंडो द्वारा दुर्व्यवहार के संदर्भ में आपत्ति आयी है लेकिन यह दुर्व्यवहार कैसे हुआ , किस तरह हुआ इस पर कोई कुछ भी बोलने को तैयार नहीं है. ये वही डीएम हैं जो पंडो द्वारा मंदिर के खजाने की असली चाबी गायब कर देने और डुब्लिकेट चाबी के मिलने को भगवान का चमत्कार बता रहे थे. प्रदीप्ति कुमार महापात्र भी वही प्रशासक हैं जो मंदिर की हर गड़बड़ी में पंडो के साथ शामिल रहे हैं. वहीं दूसरी तरफ़ मंदिर के मिनट्स की कॉपी का सिर्फ वही हिस्सा जिसमें भ्रष्ट मंदिर प्रशासन ने अपने अनुसार घटना का विवरण दिया है , लल्लनटॉप नामक न्यूज वेब पोर्टल ने प्रकाशित किया है. पोर्टल ने मंदिर के भ्रष्ट पंडों के पक्ष में रिपोर्टिंग करने में कोई कसर नहीं छोड़ी है. मिनट्स के एकांगी हिस्से में 3 बातें स्वीकार की गयी है –
3. राष्ट्रपति की सुरक्षा में चूक हुई थी.
3. ऐसा करना न सिर्फ सुरक्षा में चूक का मसला होता है बल्कि यह बदतमीजी और उत्पीड़न भी है.
लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं।