अविश्वास प्रस्ताव: स्पीकर की ‘स्थगित’ गिनती और लोकसभा टीवी की राजनीति!



राजेश कुमार

 

2 अप्रैल को जैसे लोकसभा में पिछले कई दिनों की कार्यवाहियों का बस ऐक्शन रीप्ले था। अंदाज़ा लगाना आसान था कि दोपहर 12.00 बजे कार्यवाही शुरू होते ही ‘वी वांट जस्टिस’ की चिर-परिचित नारेबाजी सुनाई पड़ेगी,अन्नाद्रमुक सदस्यों के जाने- पहचाने स्वरों में। वे ही हैं जो 16 मार्च से लगातार ‘वेल’ में हैं, अध्यक्ष के आसन के सामने। बीच में, शायद 20 मार्च के आसपास तेलंगाना राष्ट्र समिति के भी कुछ सदस्य इस नवगठित राज्य में नौकरियों में आरक्षण का कोटा बढाने की मांग को लेकर ‘वेल’ में उतरे, लेकिन उनमें उतनी निरंतरता नहीं दिखा, जितना कावेरी प्रबन्धन बोर्ड के गठन की मांग कर रहे अन्नाद्रमुक के सदस्यों में। यह और बात है कि उनका भी प्लेकार्ड लेकर ‘वेल’ में पहुंच जाना, नारेबाजी करने लग जाना और फिर अचानक नारों को हो-ओ-ओ-ओ में बदल जाना आठेक दिन में अब रूटीन हो चला है और इसमें सरोकार की दृढता कम ही बची दिखती है।

पिछले कई दिनों की तरह 2 अप्रैल को भी नारों के बीच कागजात सदन के पटल पर रखे गये, कैमरा इस बीच ‘इधर तो सब ठीक है’ की मुद्रा में फिर-फिर सत्ता पक्ष की बेंचों पर लौटता, पैन करता रहा। नयी बात शायद यह थी कि अध्यक्ष ने ‘प्लीज गो टू योर सीट्स’  की पुकार के बीच यह भी कहा कि ‘आप ऐसा नहीं कर सकते। हर प्रदेश अगर अपनी समस्या को लेकर ऐसा करने लगे तो यह अच्छा नहीं है।’ यह टिप्पणी इस बात की तस्दीक थी कि सदन में ‘ऑर्डर’ का मुसलसल विध्वंस एक प्रदेश विशेष की मांग को लेकर एक प्रादेशिक पार्टी कर रही है, यद्यपि संसदीय कार्य मंत्री अनंत कुमार ने एक बार फिर कांग्रेस पर आरोप लगाया कि उसके सदस्य सदन की कार्यवाही नहीं चलने दे रहे, जबकि मोदी सरकार अविश्वास प्रस्ताव पर बहस करने और सभी मुद्दों का उत्तर देने को तैयार हैं। कैमरों ने रोज की तरह आज भी विपक्षी बेंचों और कांग्रेस की ओर मुखातिब होने से गुरेज किया और एकाध बार उधर गया भी तो मल्लिकार्जुन खडगे पर जूम करता हुआ, इस अदा से कि पता न चले कि पार्टी के दूसरे सदस्य क्या कर रहे हैं।

नई बात यह भी हुई कि ‘प्लीज अलाउ मी,’ ‘ऐसे माहौल में नहीं कर सकती’ और ‘मैं कुछ नहीं देख पा रही हूं’- जैसी निराश, बेजार टिप्पणियों के बीच लोकसभा अध्यक्ष ने केवल 3 मिनट में सदन की कार्यवाही कल तक के लिये स्थगित करने से पहले यह भी कहा कि ‘मेरे राइट साइड में शांति से बैठे हैं।’ राइट साइड मतलब ‘ट्रेजरी बेंचेज पर, मतलब सत्ता पक्ष में।

लोकसभा टी.वी. का कैमरा और कवरेज पिछले आठ दिन से यही कह रहा था। इंडियन एक्सप्रेस की संवाददाता लिज मैथ्यू 29 मार्च को ही बता चुकी हैं कि कैसे वाई.एस.आर. कांग्रेस,  टी.डी.पी. से लेकर प्रमुख विपक्षी पार्टी- कांग्रेस तक के 6 अविष्वास प्रस्ताव लोकसभा में चर्चा के लिए पड़े रहे। जाहिर है विपक्ष अपने इन नोटिसों पर चर्चा चाहता है, सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे ने पूरे कंठ से चीख-चीखकर यह कहा भी। कम-से-कम व्यक्त तौर पर सत्ता पक्ष ने भी बार-बार यही कहा। कांग्रेस पर उनके तोहमत और तंज को छोड दें तो मन में चाहे जो रहा हो, अभी 27 मार्च को संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने भी कहा कि ‘मोदी सरकार चर्चा के लिये तैयार है। यहां भी हमें कॉन्फिडेंस है और बाहर भी कॉन्फिडेंस है।’ पर लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन का स्पष्ट फैसला रहा कि ‘हर आदमी अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा के लिये तैयार है। वे भी तैयार हैं, यहपक्ष भी तैयार है, लेकिन हम इस तरह कार्यवाही आगे नहीं बढ़ा सकते।’’

लोकसभा अध्यक्ष ने कार्यवाही को आगे बढाया भी नहीं। अगर 16 मार्च से 28 मार्च तक लोकसभा की सम्बद्ध कार्यवाहियों के लोकसभा टी.वी. के कवरेज को विस्तार और सावधानी से डी-कांस्ट्रक्ट करें तो यह देख पाना मुश्किल नहीं होगा कि कैमरा जो देख और दिखा रहा था, ‘जूम इन’ और ‘जूम आउट’ का जो इस्तेमाल था, कई बार आवाजें भर सुनाने और आवाजों या शोर के स्रोत को नहीं दिखाने की जो जिद और कीमियागिरी थी, उसका संदेश ठीक वही था, जो संसदीय कार्यमंत्री अनंत कुमार ने 27 मार्च को मल्लिकार्जुन खडगे के वक्तव्य के बाद और आज भी अपनी टिप्पणी में कहा। मंत्री ने क्या कहा, ‘‘माननीय अध्यक्ष जी, आपने पिछले 15 दिनों से लगातार सबको अपील की है, खासकर कांग्रेस और अपोजीशन पार्टी को आर्डर मेन्टेन करने की अपील की है..।’’

यानि मंत्री ने कहा कि ‘सरकार तो अविशवास प्रस्ताव पर चर्चा के लिये तैयार है, विपक्ष और खासकर कांग्रेस ही सदन में अव्यवस्था और अराजकता फैलाकर चर्चा को रोक रही है। लोकसभा अध्यक्ष ने 2 अप्रैल को जो कहा उसका आशय कुछ भी हो, अभिधार्थ यह था कि कम-से-कम सत्ता पक्ष पर व्यवस्था-भंग का आरोप नहीं लगाया जा सकता। कैमरे भी कम-से-कम पिछले आठ दिन से संकेतों में यही दो बातें कर-कह रहे थे कि लोकसभा अध्यक्ष की अपीलें अनसुनी जा रही हैं, जाया हो रही हैं और सत्ता पक्ष नहीं, बल्कि कांग्रेस और विपक्षी पार्टियां आर्डर मेन्टेन कर नोटिसों पर चर्चा का माहौल नहीं बनने दे रही। नमूने के तौर पर इन आठ दिनों में से 16 मार्च और 27 मार्च की संबंधित कार्यवाही के कवरेज के ब्यौरे और कैमरों की करतूतों पर एक नजर डालें –

 

16 मार्च 2018/ 12.05 बजेः

 

कागजात और दस्तावेज सदन के पटल पर रखे जाने और अन्य औपचारिकताओं के बाद सुमित्रा महाजन  — ‘‘ ऑनरेबल मेम्बर्स, आई हैव रीसिव्ड नोटिसेज ऑफ मोशन ऑफ नो कान्फिडेंस इन द काउंसिल ऑफ मिनिस्टर्स फ्राम वाई.वी.सुब्बारेड्डी ऐंड श्री थोटा नरसिम्हन। आई एम ड्यूटीबाउंड टू ब्रिंग द नोटिसेज बिफोर द हाउस। अनलेस द हाउस इज इन आर्डर, आई विल नॉट बी इन अ पोजीशन टू काउंट द 50 मेम्बर्स, हू हैव टू स्टैंड इन देयर असाइंड प्लेसेज सो दैट आई कैन अशर्टेन ऐज टु ह्वेदर द लीव हैज बीन ग्रांटेड ऑर नॉट।’’

लोकसभा अध्यक्ष जब यह सब कह रही थीं, तब कैमरा ‘वेल’ में खडे राजद और अन्नाद्रमुक के नेताओं पर फोकस्ड था – राजद के आठेक सदस्य अपने नेता लालू प्रसाद यादव को सी.बी.आई. द्वारा ‘जान-बूझकर’ फंसाये जाने का विरोध करते हुये और अधिकतर सफेद लुंगी-शर्ट-कुर्ते में खडे अन्नाद्रमुक के 10-12 सदस्य कावेरी जल का मुद्दा उठाते हुए। कैमरा विपक्षी बेंचों की ओर पैन करता है, साफ है कि कांग्रेसी सदस्य अपनी सीटों पर हैं, सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे और उनके पीछे की बेंचों पर कांग्रेस के कुछ सदस्य खडे भी है, लेकिन शांत।

कैमरा लोकसभा अध्यक्ष के चेहरे को जूम इन करता है, वह कह रही हैं, ‘‘प्लीज गो टु योर सीट्स’’ और कैमरा अगले फ्रेम में सत्ता पक्ष पर – जे.पी.नड्डा, अनुप्रिया पटेल से लेकर सभी सदस्य शांत बैठे हुए। इशारा साफ है कि कोई है जो अपनी सीटों से उठकर आसन के सामने आ गया है और वह कोई कम-से-कम सत्ता पक्ष का नहीं है। पृष्ठभूमि में हर तदबीर बेकार होने की निराशा से भरी, लोकसभा अध्यक्ष की आवाज — ‘‘आई एम सॉरी, सिंस द हाउस इज नॉट इन ऑर्डर, आई विल नॉट बी एबल टु ब्रिंग द नोटिसेज बिफोर द हाउस। द हाउस स्टैंड्स एडजॉर्न्ड टु मीट अगेन ऑन मनडे,  द नाइन्टीन्थ मार्च, 2018 ऐट 11.00 ए.एम.।’’

और सदन की कार्यवाही 12.06 मिनट पर समाप्त, दस मिनट, घंटे-आधे घंटे के लिए या लंच तक नहीं, पूरे दिन के लिये।

 

 

27 मार्च 2018/ 12.07 बजेः

 

दोपहर 12.00 बजे सदन में लोकसभा अध्यक्ष की पुकार – ‘‘माननीय सदस्यगण, कुछ विभिन्न विषयों पर स्थगन प्रस्ताव की सूचनाएं प्राप्त हुई हैं। यद्यपि मामले महत्वपूर्ण हैं, लेकिन इसके लिये कार्यवाही में व्यवधान डालना अनिवार्य नहीं है। मैंने किसी भी स्थगन प्रस्ताव की सूचना को अनुमति प्रदान नहीं की है।’’  – अध्यक्ष यह सब अपनी मेज पर रखा कागज पढते हुए कहती हैं और ‘पेपर्स टु बी लेड ऑन द टेबल’  कहते हुए हेडफोन पहनती हैं।

‘प्लीज-प्लीज-प्लीज’  पुकारते हुए वह बायें हाथ से रूकने का इशारा करती हैं। बायां, विपक्ष का पक्ष है, इशारा साफ कि विपक्ष अराजक हो रहा है। कैमरा विपक्ष को नहीं देखता, सो उसके अराजक होने के परोक्ष संकेत का कोई तोड़ नहीं बनता। आरोप स्वयंसिद्ध।

शोर है, ‘वी वांट जस्टिस’  के नारे हैं और बीच-बीच में हो-ओ-ओ-ओ की एक समवेत और अप्रतिहत ध्वनि। वेल में जो दिखते हैं, केवल आज नहीं, बल्कि 16 मार्च के बाद हर रोज, वे अन्नाद्रमुक के सदस्य हैं, कावेरी मुद्दे के बहाने। बहाने इसलिये कि सुश्री जयललिता के देहावसान के बाद गुटों का शुरूआती घात-प्रतिघात थम चुका है और आखिरकार पार्टी के शीर्ष नेता बनकर उभरे तमिलनाडु के मुख्यमंत्री ई.के.पलानीसामी अपने गुट के प्रति समर्थन और उसकी ताजपोशी के लिये सार्वजनिक तौर पर प्रधान सेवक का धन्यवाद ज्ञापित कर चुके हैं। इतना ही नही, केन्द्र में सत्तारूढ राजग में प्रवेश की उसकी ललक भी किसी से छिपी नहीं है, अलबत्ता अभी वह बाहर है और शायद यही उसे फिलवक्त उपयोगी भी बना रहा है। इतना कि उनके ‘वेल’ में रहते सदन में आर्डर का दावा असंभव,  उठाये रहें 50-50 या उससे भी अधिक सदस्य प्रस्ताव के समर्थन की तख्तियां, अध्यक्ष नहीं देख-सुन-गिन सकतीं तो नहीं देख-सुन-गिन सकतीं।

‘वेल’ में सदस्य, उनकी नारेबाजी, उनका हो-ओ-ओ-ओ….यह सब प्रश्नकाल में, शून्यकाल में और दोपहर बाद सदन के पटल पर कागजात रखे जाने के दौरान भी बदस्तूर रहता है, लेकिन सब कुछ दिखाई-सुनाई पडता रहता है। इस कदर कि केन्द्रीय मंत्री किरण रिजुजू की ओर से पेपर्स पटल पर रखकर अर्जुनराम मेघवाल बैठने लगते हैं तो लोकसभाध्यक्ष उन्हें याद दिलाती हैं कि अभी उन्हें बाबुल सुप्रियो की तरफ से भी पेपर्स रखना है। इसी बीच वह लगभग बेजरूरत, बेमन से दो बार ‘प्लीज-प्लीज’ कहती हैं, जैसे कुछ याद आ गया हो। शोर बढ़ जाता है तो सेक्रेटरी जनरल का नाम दो बार पुकारती हैं, दूसरी बार माइक के थोड़ा करीब जाकर।

एक लंबे वक्फे के बाद लोकसभा अध्यक्ष फिर विपक्ष की ओर मुडती हैं, रुष्ट चेहरा, वापस सत्ता पक्ष की तरफ देखते हुए, सत्यपाल सिंह का नाम पुकारती हैं, वह मानव संसाधन विकास मंत्रालय की अनुदान मांगों पर कोई दस्तावेज प्रस्तुत करते हैं। ‘थैंक्यू’ के साथ सत्यपाल सिंह का प्रबोधन थमते ही, पहले ‘प्लीज-प्लीज’ की पुकार सुनाई पडती है और फिर कैमरा लोकसभा अध्यक्ष के चेहरे को जूम-इन में लेता है। यह अलग अध्यक्ष है। कुछ शब्द सुनाई पडते हैं, असमबद्ध से, ‘‘….ले लूं न………. क्या कर लूं ’’ और वह बायीं हथेली गहरी निराशा में अपने मुंह पर ले जाती हैं, आंखे बंद कर लेती हैं और सदन में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खडगे का नाम पुकारती हैं।

शोर उतना ही है, या शायद थोडा कम ही, लेकिन अध्यक्ष कहती हैं, ‘‘नहीं सुनाई दे रहा है खडगे जी…. बोलिये।’’ वह पूरी ताकत से बोल रहे हैं, इतनी ताकत से कि आप टेलेकास्ट में भी उनकी बात सुन सकते हैं। अध्यक्ष पहली बार गुस्से में हस्तक्षेप करती हैं, ‘‘ऐसे नहीं करते, यू कांट डू लाइक दिस, यू कांट डू लाइक दिस….’’ लेकिन कैमरे कुछ नही दिखाते कि कौन क्या आपत्तिजनक कर रहा है। यह रहस्य है, दोषी स्पष्ट नहीं है, तो विपक्ष हो सकता है, कांग्रेस भी हो सकती है, सत्ता पक्ष तो कतई दोषी नहीं है, वह तो अच्छे बच्चों की मानिंद बैठा है, कैमरों ने बार-बार दिखाया है।

 

लिज अपनी रिपोर्ट में बता चुकी हैं कि विधि द्वारा निर्धारित सुबह 11.00 बजे से 12.00 बजे तक प्रश्नकाल के एक घंटे और 12.00 बजे से जरूरी दस्तावेज सदन के पटल पर रखवाने में बीते समय को छोड दें तो कैसे लोकसभा अध्यक्ष ने सरकार में अविश्वास जैसे महत्वपूर्ण प्रस्तावों की नाटिसों को आठ दिन में केवल 16 मिनट खर्च किये। आज के 3 मिनट को भी जोड दें तो नौ दिन में 19 मिनट। कैसे वह मिनट-दो मिनट में कार्यवाही अगले दिन के लिये स्थगित कर देती रही – शुक्रवार 16 मार्च को 1 मिनट, सोमवार 19 मार्च को 2 मिनट, मंगलवार 20 मार्च को 1 मिनट, बुधवार 21 मार्च, गुरूवार 22 मार्च को फिर 2-2 मिनट, शुक्रवार 23 मार्च को 3 मिनट, मंगलवार 27 मार्च को फिर 2 मिनट और बुधवार 28 मार्च को फिर 3 मिनट।

यह लिज ने भी बताया और लोकसभा की साइट में अन-करेक्टेड डीबेट्स में तिथिवार दर्ज भी है कि कैसे ‘माननीय सदस्यों’, ‘मुझे खेद है’, ‘अपनी सीटों पर वापस जाइये’ जैसे कुछ शब्द-बंधों को हटा दें तो हर रोज लोकसभा अध्यक्ष के कहन की संरचना और सार एक ही था – मुझे केन्द्रीय मंत्रिपरिषद में अविश्वास प्रस्ताव की नोटिसें मिली हैं। मैं उन नोटिसों को सदन के समक्ष रखने के दायित्व से बंधी हूं। लेकिन जब तक सदन में व्यवस्था न हो और इन नोटिसों का समर्थन कर रहे 50 सदस्य अपनी तयशुदा सीटों के सामने खडे न हों, मेरे लिये उन्हें गिन पाना और नोटिस स्वीकार या खारिज करने का फैसला दे पाना असंभव होगा। हां, इस कहन में अविश्वास प्रस्ताव की नोटिस देनेवालों के नये-नये नाम जरूर जुडते गये – 16 मार्च को केवल वाई.एस.आर. कांग्रेस पार्टी के वाई.वी. सुब्बारेड्डी और तेलूगुदेशम पार्टी के थेटा नरसिम्हन थे, 19 मार्च को टी.डी.पी. के ही जयदेव गल्ला का नाम जुडा, 27 मार्च को अविश्वास प्रस्ताव की नयी नोटिस देनेवालों में कांग्रेस के मल्लिकार्जुन खडगे, माकपा के पी. करूणाकरन और मोहम्मद सलीम, आर.एस.पी. के एन.के. प्रेमचन्द्रन, टी.डी.पी. के श्रीनिवास केसीनेनी, उन्हीं की पार्टी के जयदेव गल्ला और किंजारूपु राम मोहन नायडू, इंडियन यूनियन मुस्लिम लीग के पी.के. कुन्हालिकुट्टी, ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तहादुल मुसलमीन के असदुद्दीन ओवैसी, वाई.एस.आर. कांग्रेस पार्टी के पी.वी. मिधुन रेड्डी और केरला कांग्रेस के जोस के. मणि के नाम आ जुडे।

शायद 6 अप्रैल भी ऐसे ही गुजर जाये और संसद का मौजूदा सत्र खत्म हो जाये, इन नोटिसों पर फैसले के बिना। सदन में व्यवस्था लौटेगी नही और ऐसे में लोकसभा अध्यक्ष का फैसला नहीं करना नियमतः गलत भी नहीं। बस एक नजीर बनेगी या एक सूझ और भविष्य में अल्पमत की भी कोई सरकार ‘आर्डर’ नहीं होने के हवाले से किसी भी अविश्वास प्रस्ताव से निबट ले सकेगी। लेकिन अभी तो पूर्ण बहुमत की सरकार है, 539 सदस्यों में अकेले भाजपा के 270 सदस्य, सहयोगी पार्टियां अतिरिक्त। सो सरकार जाने का कोई खतरा फिलहाल नहीं है। फिर अविश्वास प्रस्ताव पर चर्चा रोकने की ऐसी चालाकी का सबब? याद रहे, हार तो उत्तर प्रदेश के राज्यसभा चुनावों में भी नहीं हुई थी। बल्कि मायावती की बसपा और अजित सिंह की पार्टी और एक निर्दलीय को विपक्षी खेमे में जाने से और सपा-बसपा के जेल में बंद दो विधायकों को मतदान नहीं करने देकर परधान जी की पार्टी ने एक नौवीं सीट पर भी बसपा को हरा और एक निर्दलीय को जिता दिया था। लेकिन सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी जैसे छोटे सहयोगी दल के प्रमुख को दिल्ली बुलाकर मनाने के बाद भी राज्यसभा चुनावों में उसके दो विधायकों ने क्रास-वोट कर रसूख पर बट्टा तो लगा ही दिया था। कहीं इस बार लोकसभा में भी यही हो गया तो वह जो, सर्वश क्तिमान है, चक्रवर्ती है, उसका इकबाल तो गया। और राजा का इकबाल चला गया तो बचा क्या? चाणक्य ने तो यही कहा है।

 

(वरिष्ठ पत्रकार राजेश कुमार को संसद की कार्यवाही की रिपोर्टिंग का लंबा अनुभव है।)